11 साल से सुन नहीं पा रहा था, डॉक्टर्स ने ये थैरेपी दी और सुनाई देने लगी आवाज
11 साल का आइसम जन्म से ही बहरा था. उसे कभी कोई आवाज सुनाई नहीं देती थी. लेकिन फिलाडेल्फिया के डॉक्टरों ने उसे एक खास जीन थेरेपी दी. इसके बाद चमत्कार हुआ. आइए जानते हैं इसके बारे में यहां..
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दुनिया में करोड़ों लोग ऐसे हैं जो जन्म से ही सुन नहीं पाते हैं उनके लिए एक नई उम्मीद जगी है. हाल ही में 11 साल के आइसम डैम नामक लड़के का एक अनूठा इलाज हुआ जिसमें उसके कान के जीन को बदला गया. इस जीन थेरेपी के बाद आइसम ने पहली बार आवाजें सुनीं. आइसम की सफलता से दुनियाभर के करोड़ों बहरे लोगों के लिए एक नई आशा जगी है. डॉक्टर आशा कर रहे हैं कि आने वाले समय में इसी तरह की जीन थेरेपी से अन्य बहरे लोगों का भी इलाज संभव हो पाएगा. आइए जानते हैं इसके बारे में..
जीन थेरेपी से सुनने की शक्ति मिली
आइसम का जन्मजात रूप से बहरेपन था क्योंकि उसमें एक बहुत ही दुर्लभ आनुवंशिक त्रुटि थी. फिलाडेल्फिया के बाल चिकित्सा अस्पताल (सीएचओपी) ने आइसम को एक ऐसी जीन थेरेपी दी जो अमेरिका में पहली बार की गई. इस इलाज के 4 महीने बाद आइसम के एक कान में सुनने की क्षमता में बहुत सुधार हुआ है. अब वह हल्के से लेकर मध्यम बहरेपन की स्थिति में है और पहली बार जीवन में आवाजे सुन पा रहा है. सीएचओपी के डॉक्टरों का कहना है कि यह शोध दुनिया भर के करोड़ों आनुवंशिक रूप से बहरे लोगों के लिए उम्मीद की एक किरण है.
जानें कैसे करता है ये काम
आइसम के बहरेपन का मुख्य कारण उसके कान की कोशिकाओं में ओटोफेरलिन नामक प्रोटीन का न होना था. यह प्रोटीन आवाज को समझने के लिए जरूरी होता है. 4 अक्टूबर 2023 को आइसम की सर्जरी हुई. इसमें उसके कान में एक वायरस की मदद से नया ओटोफेरलिन जीन डाला गया. इससे उसकी कान की कोशिकाएं फिर से सक्रिय हो गईं और वह आवाज सुनने लगा. चार महीने बाद आइसम की सुनने की क्षमता बहुत बढ़ गई.
FDA की मिली मंजूरी
आइसम का जन्म मोरक्को में हुआ था. बाद में वह स्पेन चला गया. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, चूंकि आइसम ने अपनी भाषा सीखने की उम्र मोरक्को में बिता दी थी, ऐसे में स्पेनिश भाषा सीखने में उसे परेशानी हो सकती है. इसलिए, भले ही आइसम की सुनने की क्षमता में सुधार हुआ है, लेकिन नई भाषा सीखने की उम्र की सीमा पार कर जाने से उसे बोलने में कठिनाई हो सकती है. आइसम पर हुए इस जीन थेरेपी के अध्ययन को अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) ने मंजूरी दी थी.
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