नई दिल्ली: भारत में पांच वर्ष से कम आयु के 21 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. देश में बाल कुपोषण 1998-2002 के बीच 17.1 प्रतिशत था, जो 2012-16 के बीच बढ़कर 21 प्रतिशत हो गया. दुनिया के पैमाने पर यह काफी ऊपर है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 25 सालों से भारत ने इस आंकड़े पर ध्यान नहीं दिया और न ही इस स्थिति को ठीक करने की दिशा में कोई उल्लेखनीय प्रगति हुई है.
क्या कहते हैं आंकड़े-
ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीआई) 2017 में शामिल जिबूती, श्रीलंका और दक्षिण सूडान ऐसे देश हैं, जहां बाल कुपोषण का आंकड़ा 20 प्रतिशत से अधिक है. इस सूचकांक के चार प्रमुख मानकों में से कुपोषण भी एक है.
आंकड़े बताते हैं कि पोषण की कमी का नतीजा होता है बाल कुपोषण और ऐसे बच्चे इंफेक्शन के आसानी से शिकार हो जाते हैं, इनका वजन तेजी से कम होने लगता है और इन्हें स्वस्थ होने में बहुत समय लगता है.
क्या कहते हैं डॉक्टर-
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा कि कुपोषण का एक मतलब यह भी है कि ऐसे बच्चे अपनी लंबाई के अनुपात में हल्के होते हैं. एक स्वस्थ बच्चे का वजन हर साल आम तौर पर दो-तीन किलोग्राम बढ़ना चाहिए. समस्या तब गंभीर मानी जा सकती है, जब एक बच्चे का वजन और ऊंचाई का माप विश्वस्तर पर स्वीकृत आदर्श माप से कम होता है. वजन कम होना और स्टंटिंग दो अलग समस्याएं हैं, जो ऐसे बच्चों में पाई जाती हैं.
कुपोषण के कुछ लक्षण-
कुपोषण के कुछ लक्षणों में शरीर में वसा की कमी, सांस लेने में कठिनाई, शरीर का कम तापमान, कमजोर प्रतिरक्षा, ठंड लगना, सेंसिटिव त्वचा, घाव भरने में अधिक समय लगना, मांसपेशियों में कमजोरी, थकान और चिड़चिड़ापन शामिल हैं.
गंभीर कुपोषण वाले बच्चों को कुछ भी नया सीखने में बहुत अधिक समय लगता है. इनका बौद्धिक विकास कम होता है. इन्हें मानसिक कार्य करने में कठिनाई होती है और पाचन समस्याओं का सामना करना पड़ता है. यह स्थिति जीवन में लंबे समय तक बनी रहती है.
कुपोषण की रोकथाम के कुछ उपाय-
- रोटी, चावल, आलू और अन्य स्टार्चयुक्त खाद्य पदार्थ भोजन का प्रमुख हिस्सा होते हैं. इनसे हमें ऊर्जा और कार्बोहाइड्रेट पाचन के लिए कैलोरी प्राप्त होती है.
- दूध और डेयरी खाद्य पदार्थ - वसा और वास्तविक शर्करा के महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं.
- फलों और सब्जियों का अधिक सेवन किया जाना चाहिए. बेहतर पाचन स्वास्थ्य के लिए विटामिन और खनिजों के महत्वपूर्ण स्रोत के साथ-साथ फाइबर का सेवन भी होना चाहिए.
- मांस, मुर्गी पालन, मछली, अंडे, सेम और अन्य गैर-डेयरी प्रोटीन के स्रोत शरीर का निर्माण करते हैं और कई एंजाइमों के कार्यो में सहायता करते हैं.
- गर्भावस्था के दौरान मां को पर्याप्त पोषण मिलना चाहिए और स्तनपान पर जोर दिया जाना चाहिए.
नोट: ये रिसर्च के दावे पर हैं. ABP न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता. आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें.