बार-बार ख्यालों में खो जाते हैं...कहीं आपको डे ड्रीमिंग डिसऑर्डर तो नहीं...जानिए इससे होने वाले नुकसान
Day Dreaming Disorder: ख्यालों में खो कर लोग ऐसे ऐसे सुख का अनुभव करते हैं जो असल जिंदगी में मुमकिन ही नहीं होता. व्यक्ति ऐसा सोचने में घंटों निकाल देता है. ऐसे लोग ड्रीमिंग डिसऑर्डर के शिकार होते हैं.
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Day Dreaming Disorder: ख्यालों में खोना बहुत ही आम बात है. आप हम और अमूमन सभी लोग कभी ना कभी खयालों में तो जरूर ही खोते हैं. ऐसा एक दो मिनट करना तो ठीक है, लेकिन लंबे वक्त तक खयालों में खोना एक बीमारी है. वैज्ञानिक इसे फैंटेसी डिसऑर्डर के नाम से पुकारते हैं. लोग ख्यालों में खो कर ऐसी दुनिया बनाते हैं जिसमें उन्हें फर्जी सुख का अनुभव होता है. ख्यालों में खो कर लोग ऐसे ऐसे सुख का अनुभव करते हैं जो असल जिंदगी में मुमकिन ही नहीं होता,व्यक्ति ऐसा सोचने में घंटों निकाल देता है. ऐसे लोग ड्रीमिंग डिसऑर्डर के शिकार होते हैं.
रिसर्च में ये बात आई सामने
ब्रिटेन में डे ड्रीमिंग को लेकर एक शोध किया गया यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स की एसोसिएट लेक्चरर ने शोध में बताया है कि दुनिया भर में 20 करोड़ लोग इसका शिकार हुए हैं. इसे मलाडाप्टिव डे ड्रीमिंग कहा जाता है, आम भाषा में आप इसे ख्यालों में खोने का नशा कह सकते हैं.ऐसे लोग दिन-दिन भर ख्यालों में खोए रहना पसंद करते हैं और इस चक्कर में वो कई सारी चीजों को अवॉइड कर देते हैं. डे ड्रीमिंग इंसानों के जीवन को बुरी तरह से प्रभावित करने लगती है.रिसर्च के मुताबिक जो लोग ख्यालों में खोए रहते हैं उनका किसी भी काम में मन नहीं लगता, वो बस उस खयालों में ही डूबे रहना चाहते हैं. अगर वो स्टूडेंट है तो पढ़ाई पर फोकस नहीं कर पाते.नौकरी वाले लोग ऑफिस में ठीक से काम नहीं पूरा कर पाते है. अगर घर गृहस्ती वाले लोग हैं तो वह घर का भी काम ठीक से नहीं कर पाते. इससे काम में देरी होती चली जाती है. ऐसे लोगों को दिन में आधे से ज्यादा वक्त खयालों में ही खो ना पसंद होता है, जिसके कारण वह धीरे-धीरे अपनी जिम्मेदारियों से भी बचने लगते हैं और घर परिवार रिश्ते में दरार पड़ने लगती है. और तो और रात के वक्त ख्यालों में खोए रहने से वक्त बीत जाता है सुबह हो जाती है.व्यक्ति की नींद भी पूरी नहीं हो पाती. इससे सेहत पर भी काफी नकारात्मक असर पड़ता है.
डे ड्रीमिंग से इन बीमारियों का खतरा
दरअसल लोग स्ट्रेस और परेशानी से बचने के लिए अपनी एक फैंटेसी की दुनिया क्रिएट करते हैं . इससे उन्हें असल जिंदगी में हो रहे स्ट्रेस ट्रॉमा और सोशल आइसोलेशन से निपटने में मदद मिलती है. मगर ये आदत बन जाती है आप नेगेटिव इमोशंस से बचने के लिए ऐसी दुनिया बनाते हैं जहां आपको अच्छा लगने लगता है और फिर यह इच्छा बढ़ती जाती है और ऐसे आप अपने आप को बर्बाद कर सकते हैं.इससे व्यक्ति को डिप्रेशन, बेचैनी और ओसीडी यानी ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर जैसी समस्या होने लगती है . रिपोर्ट की मानें तो डे ड्रीमिंग से जुड़ने वाले 50 फ़ीसदी अधिक मरीज ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर से परेशान है.
क्या है इसका इलाज
इस समस्या से बचने के लिए बिहेवियर थेरेपी, टॉक थेरेपी का सहारा लिया जाता है. इस समस्या से ग्रसित लोगों को काउंसलिंग की जरूरत होती है. साइकेट्रिस्ट इस समस्या का निदान करके दवाओं से इसे कंट्रोल करते हैं.
Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.
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