Mean World Syndrome: अखबारों में आए दिन क्राइम (crime news)की खबरों से पन्ने भरे दिखते हैं. कहीं मर्डर, कहीं लूट और कहीं चोरी. लेकिन कई बार क्राइम की ऐसी खबरें लंबे समय तक लोगों का ध्यान खींचती हैं जो लंबे समय तक जेहन में बनी रहती है. खासकर मास मर्डर जैसी खबरें. इनको लेकर नए नए खुलासे जब मीडिया में आते हैं तो लोगों की दिलचस्पी जाग जाती है.. 


एक्सपर्ट कहते हैं कि मीडिया में क्राइम की सच्ची खबरों को ज्यादा देखना मेंटल हेल्थ के लिए नुकसानदेह हो सकती हैं. मीडिया में रियल और काल्पनिक क्राइम और हिंसा से जुड़ी खबरें ज्यादा देखने या पढ़ने से मीन वर्ल्ड सिंड्रोम (Mean World Syndrome)का खतरा पैदा हो सकता है.


क्या है मीन वर्ल्ड सिंड्रोम  
मीन वर्ल्ड सिंड्रोम ऐसी सिचुएशन है जिसमें जब कोई हिंसा और क्राइम को असलियत मान लेता है और खुद को उस क्राइम सीन में उलझाकर देखने लगता है. इसका दिमाग पर बुरा असर पड़ता है क्योंकि दिमाग उस क्राइम सीन पर खुद को स्थापित करता है और उसे और ज्यादा देखने की चाहत करने लगता है. दिमाग ऐसे क्राइम की घटनाओं में किलर के मूव्स, घटना और तकरीबों में उलझ जाता है और खुद को डिटेक्टिव मानकर क्राइम की कल्पना करने लगता है. ऐसे लोग क्राइम डॉक्यूमेंटरी, क्राइम और थ्रिलर मूवीज के साथ साथ ऐसी खबरों को भी खूब मनोयोग से पढ़ते हैं.


क्यों खतरनाक है ये सिंड्रोम
डॉक्टर कहते हैं कि इस मनोदशा का सबसे बुरा असर ये पड़ता है कि व्यक्ति समाज के साथ अजीबोगरीब व्यवहार करने लगता है. वो क्राइम की डरावनी दुनिया से इस कदर कनेक्ट करता है कि उसे हर जगह डर ही डर दिखने लगता है. उसे हर व्यक्ति पर शक होता है, हर कोने में अंधेरा दिखता है और वो किसी को भी क्रिमिनल मान सकता है.


इससे व्यक्ति के दिमाग में बेवजह का डर, चिंता और निराशा जन्म लेती है और वो धीरे धीरे समाज से कटने लगता है. कभी कभी ऐसे लोग जरूरत से ज्यादा सतर्क हो जाते हैं और परिवार के साथ भी अजीब व्यवहार करने लगते हैं. एक्सपर्ट कहते हैं कि 1990 के बाद टीवी पर फैंटेसी क्राइम दिखाने का चलन बढ़ा है और लोग मीन वर्ल्ड सिंड्रोम की चपेट में ज्यादा आने लगे हैं.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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