कहीं आपको भी तो हर वक्त नहीं सताता रिजेक्शन का डर?अगर हां, तो इस गंभीर समस्या की चपेट में हैं आप
रिजेक्शन ट्रॉमा एक तरह की मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया है. इसमें व्यक्ति को हर वक्त रिजेक्ट होने का डर सताने लगता है. ये समस्या अचानक से नहीं होती है.कुछ जिंदगी के बुरे अनुभव इसके लिए जिम्मेदार होते हैं
दुनिया का हर व्यक्ति चाहता है कि लोग उसकी बातों को सुने. उसे पसंद करें. खास कर कोई अपना करीबी उन्हें सुने.उनकी बातों पर सहमति जताए. लेकिन जब लोग उनकी बातों को नकारने लगते हैं तो व्यक्ति को रिजेक्शन फील होने लगता है. कई लोग इस रिजेक्शन को दिल पर नहीं लेते हैं लेकिन कई बार कई लोग इस रिजेक्शन को मन में बैठा लेते हैं और ये इस कदर उन पर हावी हो जाती है कि उनकी निजी जिंदगी, दिनचर्या बुरी तरह से प्रभावित होने लगती है. इस स्थिति को रिजेक्शन ट्रॉमा कहा जाता है. आगे जानेंगे कि क्या है रिजेक्शन ट्रॉमा. क्यों होता है.इसके लक्षण और बचाव क्या है?
क्या है रिजेक्शन ट्रॉमा?
रिजेक्शन ट्रॉमा एक तरह की मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया है. इसमें व्यक्ति को हर वक्त रिजेक्ट होने का डर सताने लगता है. ये यह समस्या अचानक से नहीं होती है. कई बार बचपन के खराब अनुभव.बीते कुछ महीना या सालों में मिलने वाले रिजेक्शन, काम में रिजेक्शन, अपने करीबी के स्वभाव में बदलाव, रिलेशनशिप में धोखा, भी इसका कारण हो सकता है. कई बार तो यह समस्या इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि व्यक्ति हर वक्त तनाव में रहने लगता है, किसी से मिलना जुलना भी पसंद नहीं करता है. व्यक्ति को हर बात यह डर लगा रहता है कि अगर उसे कुछ ऐसा फिर से हो जाए तो लोग उसे रिजेक्ट कर देंगे.व्यक्ति खुद में ही कमी निकालने लगता है.उसे ऐसा लगने लगता है कि उसकी खुद की गलती की वजह से लोग उसे रिजेक्ट कर रहे हैं.इस समस्या में व्यक्ति इस कदर ट्रॉमा में हो जाता है कि कई बार लोग उसे ना भी रिजेक्ट कर रहे हो तो भी उसे वहम हो जाता है.
क्या है इसके लक्षण?
- व्यक्ति के आत्मसम्मान में लगातार गिरावट आने लगती है. कॉन्फिडेंस बिल्कुल लो हो जाता है.खुद पर संदेह करने लगता है. हर बुरी चीजों के लिए वह खुद को जिम्मेदार ठहराने लगता है.
- रिजेक्शन ट्रॉमा से पीड़ित लोग अक्सर दूसरे लोगों से मिलने से कतराने लगते हैं.अपने अनुभवों को शेयर करने से बचने लगते हैं. उन्हें ऐसा लगता है कि अगर वह फिर से कुछ कहेंगे तो फिर से लोग उन्हें रिजेक्ट कर देंगे.
- रिजेक्शन ट्रॉमा से पीड़ित लोगों को रिजेक्शन के बाद उदासी,क्रोध, डर, शर्मिंदगी जैसी भावनाओं का अनुभव हो सकता है. ऐसे में व्यक्ति दूसरे पर भरोसा नहीं कर पता है.
- रिजेक्शन ट्रॉमा में व्यक्ति को जिम्मेदारी लेने में कठिनाई होने लगती है. व्यक्ति खुद को किसी भी काम के लिए सही नहीं मानता है.नए कामों से डरने लगता है.
- रिजेक्शन ट्रॉमा में लंबे समय तक रहने से व्यक्ति अवसाद में रहने लगता है. उसको हर समय किसी बात को लेकर तनाव सताने लगता है.
कैसे करें बचाव
- आत्म जागरूकता से व्यक्ति को रिजेक्शन ट्रॉमा को कम करने में मदद मिलती है.व्यक्ति को खुद ही समझना होगा कि कैसे नकारात्मक विचार को दूर रखना है.
- नेगेटिव विचारों को दूर रखने के लिए कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी लेने से मदद मिल सकती है.
- मोटिवेशनल स्पीकर को सुनने से आत्मविश्वास जागता है और व्यक्ति रिजेक्शन से उभर कर किसी भी कार्य के लिए आगे बढ़ता है.
- ट्रॉमा से निकालने में आपके करीबी आपकी मदद कर सकते हैं.आपको ये एहसास दिला सकते हैं कि आप उनके लिए इम्पॉर्टेंट हैं और आपकी बातें उनके लिए माएने रखते हैं.
Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.
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