खत्म हो जाता है इमोशन, सुनाई देती है डरावनी आवाज़, हर वक्त भ्रम में जीते हैं इस बीमारी के मरीज
सिजोफ्रेनिया विकार से ग्रस्त व्यक्ति को अपनी बातें जाहिर करने में परेशानी होती है. जो भी व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित होता है, वो भ्रम जैसी दुविधा में जीता हैं.
What Is Schizophrenia: सिजोफ्रेनिया एक तरह की क्रॉनिक मानसिक बीमारी है. यह बीमारी होने पर व्यक्ति अपने सोचने समझने और रिएक्शन करने की क्षमता खो देता है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक पूरी दुनिया में लगभग 2.4 करोड लोग इस गंभीर मानसिक रोग से पीड़ित हैं, वहीं भारत में इस बीमारी के मरीजों की संख्या करीब 40 लाख के आसपास है. इस आर्टिकल में हम विस्तार से जानेंगे सिज़ोफ्रेनिया क्या है? इसके कारण इसके लक्षण और इसके उपचार क्या है.
क्या है सिजोफ्रेनिया
सिजोफ्रेनिया एक ग्रीक शब्द है जिसका मतलब होता है स्प्लिट माइंड. ये एक मनोरोग है जो किसी व्यक्ति में मानसिक विकार के बारे में बताता है. इस विकार से ग्रस्त व्यक्ति को अपनी बातें जाहिर करने में परेशानी होती है. जो भी व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित होता है, वह भ्रम जैसी दुविधा में जीता हैं. इस बीमारी में व्यक्ति अपने मन के भाव चेहरे पर प्रकट नहीं कर पाता है और कई केस में व्यक्ति के चेहरे और मन के भाव के बीच में बहुत अंतर होता है,कुछ लोगों को गलतफहमी होती है कि सिजोफ्रेनिया का मतलब होता है स्प्लिट पर्सनैलिटी या फिर मल्टीपल पर्सनैलिटी डिसऑर्डर लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. इस बीमारी से पीड़ित लोग ना तो खतरनाक होते हैं या ना ही किसी को नुकसान पहुंचाते हैं. इनका बर्ताव सामान्य आबादी की ही तरह होता है.इस बीमारी से पीड़ित लोग इलाज का विरोध करते हैं. वो ऐसा मानते ही नहीं है कि उन्हें कोई समस्या है.इस बीमारी में मुख्य रूप से दिमाग का पहला हिस्सा यानी कि फ्रंट लॉब और बीच का हिस्सा शामिल होता है. इन दोनों हिस्सों में केमिकल चेंजेज होते रहते हैं जो व्यक्ति को रोगी बना देते हैं. इस बीमारी में मिड ब्रेन में डोपामाइन का स्तर अधिक हो जाता है जबकि फोरब्रेन में इसकी मात्रा की कमी हो जाती है.
सिजोफ्रेनिया के लक्षण
सिजोफ्रेनिया के लक्षणों को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा जाता है. इनमें पॉजिटिव लक्षण. नेगेटिव लक्षण और डिस ऑर्गेनाइज्ड लक्षण शामिल हैं.
1.पॉजिटिव लक्षण की बात करें तो इसमें व्यक्ति को डिल्यूजन हो जाता है. पीड़ित व्यक्ति बार-बार ऐसा सोचता है कि कोई उसे मारना चाहता है. कोई उसके खिलाफ साजिश कर रहा है. लोग उसके खाने में जहर मिलाना चाहते हैं. वगैरा-वगैरा. इसके अलावा हैल्यूसिनेशन की भी समस्या होती है. पीड़ित व्यक्ति को अजीब अजीब सी आवाजें सुनाई पड़ती है.
2.नेगेटिव लक्षण में रोगी की भावनाएं लगभग खत्म हो जाती है. इस तरह की परिवार में किसी की मृत्यु भी हो जाए तो उन्हें कोई दुखिया पीड़ा का अनुभव नहीं होता. सामाजिक रुप से लोगों से मिलना जुलना भी पसंद नहीं आता. परिवार के लोगों से भी धीरे-धीरे बातचीत कम हो जाता है और मरीज अकेला रहना शुरू कर देता है.
3.डिसऑर्गेनाइज्ड लक्षणों में मरीज के कामों का कोई उद्देश्य नहीं होता. वो एक काम लगातार करता रहता है. ब्रश करने और नहाने जैसी दैनिक क्रियाएं करने पर भी ऐसे मरीजों का ध्यान नहीं जाता. किसी के भी सामने कहीं भी कपड़े खोल देते हैं. ऐसे मरीज घर में कहीं भी यूरिन पास कर सकते हैं. महीनों तक कंघी नहीं करते.गंदगी और इसमें से फर्क नहीं पड़ता.
सिजोफ्रेनिया का इलाज
इस बीमारी के इलाज के लिए काउंसलिंग साइकोथेरेपी और थेरेपी सेशन की मदद ली जा सकती है. साइकोलॉजिकल काउंसलिंग से सिजोफ्रेनिया के लक्षण को ठीक करने में मदद मिलती है. कई बार सिजोफ्रेनिया के मरीजों को दवा की भी जरूरत पड़ती है जो कि डॉक्टर मरीज की स्थिति के अनुसार देता है.
Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.
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