Nimesulide Banned on Animals : खत्म हो रहे गिद्धों को बचाने के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने जानवरों के इलाज के लिए निमेसूलाइड (Nimesulide) और इसके फॉर्मूलेशन को बैन कर दिया है. जानवरों के लिए अब ये दवा न बनाई जाएगी, ना ही इसका डिस्ट्रीब्यूशन और इस्तेमाल होगा. मंत्रालय ने 30 दिसंबर 2024 को इसकी जानकारी दी.


दरअसल, निमेसुलाइड एक नॉन स्टेरॉयडल एंटी इन्फ्लेमेटरी ड्रग (NSAID) है. इसका इस्तेमाल जानवरों मे दर्द, सूजन, बुखार और रेस्पिरेटरी सिस्टम के इंफेक्शन के इलाज में होता है. इलाज के दौरान अगर किसी जानवर की मौत हो जाती है, तो उसे फेंक दिया जाता है. जिनके मृत शरीर को खाने वाले गिद्ध (vultures) और अन्य जीवों की मौत तक हो जाती है.




पहले भी बैन हो चुकी हैं कई दवाएं




गिद्धों को संरक्षित करने के लिए पहले भी कई दवाएं प्रतिबंधित हो चुकी हैं. 2006 में डाइक्लोफेनेक सोडियम और 2023 में कीटोप्रोफेन और ऐसेलोफेनक के फॉर्मूलेशन के इस्तेमाल पर रोक लग चुकी है. इंसानों में यूज होने वाली डाइक्लोफिनेक सोडियम के मल्टी डोज वाइल को भी साल 2012 में बैन कर दिया गया था, क्योंकि इसका इस्तेमाल जानवरों में हो रहा था. अब मार्केट में इंसानों के लिए सिंगल डोज वाइल ही उपलब्ध है.


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बैन होने का क्या है कारण




एक्सपर्ट्स के अनुसार, 1980 के दशक में भारत में गिद्धों की संख्या करोड़ों में हुआ करती थी.  1990 आते-आते गिद्धों की 99 प्रतिशत आबादी ही समाप्त हो गई. इसका पता लगाते-लगाते ही 10 साल गुजर गए. इसके बाद जब मौत के कारण सामने आए तो देश में ऐसी दवाओं पर रोक लगाने की मांग उठने लगी. सरकार बारी-बारी से इन दवाओं को बैन कर रही है.




क्या सिर्फ गिद्धों पर ही होता है साइड इफेक्ट्स




एक्सपर्ट्स का कहना है कि जानवरों में ऐसी दवा के इस्तेमाल से सिर्फ गिद्ध ही नहीं बल्कि उन मृत जानवरों के मांस खाने वाले अन्य पक्षियों और जानवरों पर भी इसके साइड इफेक्ट्स देखे गए हैं. मंत्रालय का मानना भी है कि इन दवाईयों के मलैकजीकैम जैसे कई सुरक्षित विकल्प भी बाजार में उपलब्ध हैं. जिन्हें बढ़ावा देकर और ऐसी दवाईयों पर रोक लगाकर जानवरों को संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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