Tokophobia: प्रेग्नेंसी वैसे तो एक बेहद खूबसूरत एहसास है, लेकिन मां बनना और 9 महीने के गर्भावस्था का सफर कई बार महिलाओं के लिए एक बड़ा डर बन जाता है. किसी गर्भवती महिला को दर्द में देखकर कई महिलाएं चिंतित हो जाती हैं, जिसकी वजह से वे कंसीव करने से डरने लगती हैं. उन महिलाओं की तादाद भी काफी बड़ी है, जिनमें नॉर्मल डिलीवरी का खौफ देखा जाता है. प्रेग्नेंसी से जुड़ीं कई बातें महिलाओं को खौफजदा कर देती हैं. हालांकि क्या आप जानते हैं कि यह डर सिर्फ डर नहीं है, बल्कि एक तरह का फोबिया है, जिसको टोकोफोबिया कहा जाता है. दुनिया भर में कई महिलाएं प्रेग्नेंसी को लेकर टोकोफोबिया से गुजरती हैं.
टोकोफोबिया क्या है?
टोकोफोबिया गर्भावस्था और बच्चे के जन्म से जुड़ा एक डर है. प्रेग्नेंसी और डिलीवरी के बारे में चिंतित होना पूरी तरह से सामान्य बात है. हर प्रेग्नेंट महिला को कुछ हद तक इस बात की टेंशन होती है कि ये सब कैसे गुजरेगा या आगे क्या होगा. एनसीटी के मुताबिक, प्रेग्नेंट महिलाओं में टोकोफोबिया की विश्वव्यापी दर 10 में 1 से ज्यादा है. जबकि पिताओं में किए गए शुरुआती शोध से मालूम चलता है कि 10 में से 1 पुरुष भी टोकोफोबिया का शिकार होता है. एनसीबीआई बताता है कि टोकोफोबिया को प्राइमरी या सेकेंडरी के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है.
प्राइमरी टोकोफोबिया में वे महिलाएं आती हैं, जिन्हें प्रेग्नेंसी का कोई पिछला एक्सपीरियंस नहीं है और इनमें बच्चे के जन्म को लेकर काफी डर होता है. जबकि सेकेंडरी टोकोफोबिया को पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) का ही एक रूप माना जाता है. ये टोकोफोबिया का सबसे कॉमन रूप है और उन महिलाओं में देखा जाता है, जिनके बच्चे के जन्म का पिछला अनुभव काफी दर्दनाक रहा हो. कई महिलाएं सुरक्षा के डर से नॉर्मल डिलीवरी की बजाय सी-सेक्शन यानी ऑपरेशन को महत्व देना पसंद करती हैं, ताकि उन्हें कोई शारीरिक परेशानी या दर्द ना हो.
टोकोफोबिया के लक्षण
1. बार-बार बुरे सपनों का आना
2. तेजी से गहरी सांसें लेना
3. पसीना आना और कांपना
4. चिंता और घबराहट होना
5. रोना
6. मतली या उल्टी आना
7. संभोग से बचने का प्रयास करना
8. अपने पार्टनर और बच्चों से आइसोलेटेड महसूस करना
9. मृत्यु के विचार आना
टोकोफोबिया का इलाज
टोकोफोबिया से पीड़ित महिलाओं को अक्सर एंटी-डिप्रेसेंट या एंटी-एंजायटी मेडिसिन दी जाती है. रिसर्च से मालूम चलता है कि प्रेग्नेंसी के दौरान स्पेसिफिक साइकोलॉजिकल और इमोशनल सपोर्ट से इस डर को कम किया जा सकता है. इसके लिए कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी, हिप्नोथेरेपी और EMDR यानी आई मूवमेंट डिसेन्सिटाइजेशन रिप्रोसेसिंग भी रेकमेंडेड थेरेपी हैं. CBT (कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी) से आपको बच्चे के जन्म से जुड़े उन पहलुओं की पहचान करने में काफी मदद मिल सकती है, जो टोकोफोबिया को बढ़ावा देने का काम करते हैं. आप मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल के साथ बातचीत करके भी इस समस्या से बाहर निकल सकते हैं.
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