नई दिल्लीः दिल्ली के शालीमार बाग के मैक्स हॉस्पिटल का बेहद शर्मनाक मामला सामने आया है. मैक्स अस्पताल की लापरवाही के चलते एक महिला के जिंदा नवजात को मृत घोषित कर दिया गया. दरअसल, महिला ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया था नवजात बच्ची की मौत पहले ही हो चुकी थी. अस्पताल ने महिला के परिजनों से 50 लाख रूपए इलाज के लिए मांगे. जब परिजन इलाज के लिए पैसे नहीं दे पाएं तो उन्होंने दूसरे जिंदा बच्चे को मुर्दों की तरह कफन में बांधकर दे दिया और बच्चे को मृत घोषित कर दिया.
जब परिजन बच्चे को दफनाने शमशान घाट जा रहे थे तो कफन में लिपटे बच्चे ने हरकत की. तब परिवार वाले देखकर हैरान रह गए और बच्चे को जिंदा पाया. फिर परिजनों ने बच्चे को दूसरे न्यू बॉर्न सेंटर में भर्ती करवाया गया. बच्चे का इलाज चल रहा है. वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने 72 घंटे के अंदर जांच की पूरी रिपोर्ट मांगी है.
आपको बता दें, ये पहला ऐसा मामला नहीं है इससे पहले भी इस तरह के मामले सामने आए हैं.
फोर्टिस हॉस्पिटल में डेंगू के ट्रीटमेंट के लिए 18 लाख का बिल-
गुरूग्राम के फोर्टिस हॉस्पिटल 7 साल की बच्ची आद्या की मौत डेंगू से नहीं बल्कि वहां हुए उसके ट्रीटमेंट से हो गई. 31 अगस्त को आद्या को डेंगू के इलाज के लिए फोर्टिस में भर्ती किया गया था. उस समय बच्ची पूरे होश में थी. लेकिन दो दिन बाद बच्ची को वेंटिलेटर पर रख दिया गया. 13 दिन तक उसी हालत में रखने के बाद परिजनों ने एमआरआई करवाने के लिए दबाव डाला. तो डॉक्टर्स ने माना कि बच्चीव को बचाया नहीं जा सकता.
15 दिन में बच्ची को 500 से अधिक इंजेक्शन लगाए गए लेकिन फिर भी बच्ची की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ.
15 सितंबर को बच्ची की आईसीयू में मौत हो गई और इसके बाद बच्ची के पेरेंट्स को 20 पन्नों को 18 लाख का बिला थमा दिया गया जिसमें 4 लाख की तो सिर्फ दवाएं ही थीं.
इसके बाद बच्ची के पिता जयंत सिंह मामले की जांच की गुहार लगाई. वहीं डॉक्टर्स ने कहा कि आद्या डेंगू शॉक सिंड्रोम से जूझ रही थी. इसलिए उसे बचाने के लिए लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखना जरूरी था. 14 सितंबर को परिवार ने मेडिकल सलाह के खिलाफ जाकर बच्ची को डिस्चार्ज कराने का फैसला लिया और बच्ची की मौत हो गई. फिलहाल मामले पर कड़ी जांच जारी है.
केरल में पहले मरने के बाद जिंदा हुई और फिर मर गई ये महिला-
केरल का एक मामला इसी साल सामने आया. 51 वर्षीय एक महिला का लिवर, किडनी और जॉन्डिस का ट्रीटमेंट चल रहा था. दो महीने के ट्रीटमेंट और वेटिंलेटर पर रहने के बाद डॉक्टर्स ने जवाब दे दिया कि अब इनका बचना मुश्किल है. ऐसे में घरवालों ने महिला को वापिस घर ले जाने की सोची जिससे महिला शांति से अपने घर में शरीर त्याग सके. जब महिला को एंबुलेंस से घर लाया जा रहा था तो अचानक रास्ते में महिला की सांस रूक गई. तब महिला को घर ले जाने के बजाय सीधा मुर्दाघर ले जाया गया जहां उन्हें 1 घंटे तक रखा गया. जब तक रिश्तेदार आते महिला फिर जिंदा हो गई. जिसे देख सब हैरान हो गए.
इसके बाद महिला को सेंट जोंस हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया. हालांकि इस महिला को बिना मेडिकल एग्जिामिनेशन के मुर्दाघर के जाया गया था. बहरहाल, हॉस्पिटल में रिकवरी करने के दौरान इस महिला के उसी शाम मौत हो गई.
तेलांगाना में जिंदा बच्चे को मृत घोषित किया-
तेलंगाना के वारंगल जिले में एमजीएम अस्पताल में एक न्यू बॉर्न बेबी को डॉक्टर्स ने मृत घोषित कर दिया गया, जबकि नवजात जिंदा था. दरअसल, जब नवजात के परिजन उसे दफन करने लगे तो नवजात ने हरकत की. परिजन जब नवजात को लेकर हॉस्पिटल पहुंचे तो डॉक्टर्स ने कहा कि ईसीजी मशीन सुबह काम नहीं कर रही थी. बहरहाल 30 घंटे के इलाज के बाद बच्चे ने दम तोड़ दिया.
डॉक्टर्स ने ये भी कहा कि ये मेडिकल प्रोसेस डिलीवरी के लिए नहीं बल्कि एबॉर्शन के लिए था. जिसमें 20 सप्ताह गर्भवती महिला का ऑपरेशन होना था और भ्रूण का वजन 450 ग्राम था.
दिल्ली के सफरदजंग अस्पताल में हुई लापरवाही-
दिल्ली के जाने-माने सरकारी सफदरजंग अस्पताल में भी इसी तरह की लापरवाही सामने आई थी. 18 जून 2017 को सुबह के समय जन्में एक नवजात को डॉक्टर ने मृत घोषित कर दिया. डॉक्टर्स ने नवजात को ठीक से चैक किए बिना जल्दबाजी में उसे सील करके और पॉलीथीन में पैक करने परिजनों को सौंप दिया. जब परिजन बच्चे को लेकर घर पहुंचे तो सील पॉलीथीन में हलचल हुई, तो परिजनों ने देखा तो बच्चा जिंदा था.
राजस्थान में भी आया था ऐसा ही मामला-
राजस्थान के बूंदी में स्थित पंडित ब्रिज सुंदर शर्मा जनरल हॉस्पिटल की नर्स से भी इसी साल अप्रैल माह में ऐसी ही लापरवाही हुई थी.
दरअसल, 24 सप्ताह की प्रीमैच्योर बेबी गर्ल जिसका वजन 350 ग्राम था, को नर्स ने मृत घोषित कर दिया था. जब नवजात बच्ची को क्रिमिनेशन के लिए लेकर जाया जा रहा था तो उससे कुछ सेकेंड पहले ही परिजनों ने बच्ची की हार्टबीट और सांसों को महसूस किया. इसके तुरंत बाद परिजन नवजात बच्ची को तुरंत हॉस्पिटल लेकर भागे. लापरवाही इस हद तक थी कि नर्स ने डॉक्टर्स और एक्सपर्ट से बिना एग्जामिनेशन के ही बच्ची को मृत घोषित कर दिया था.