गर्भाधान के समय जब शुक्राणु अंडे के साथ फ्यूज करता है तो दोनों के कोम्रोसोम मिलकर बच्चे का जेंडर निर्धारण करते हैं.  आपके बच्चे के जननांगों को विकसित होने में कुछ सप्ताह लग सकते हैं. लेकिन गर्भावस्था के दौरान उनका लिंग नहीं बदलता है.


पुराने जमाने से ऐसी चली आ रही है महिलाओं के चलने-बैठने और उठने और पेट के आकार से जान जाते थे कि लड़का होने वाला है या लड़की. लेकिन साइंटिस्ट इन बातों को पूरी तरह से गलत मानते हैं क्योंकि इसके कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिले हैं. अपने बच्चे के लिंग का पता लगाने का एकमात्र निश्चित तरीका डॉक्टर से मिलना है।.यह 10 सप्ताह की उम्र में ही निर्धारित किया जा सकता है लेकिन आमतौर पर गर्भावस्था के 18वें और 22वें सप्ताह के बीच होता है.


एक स्वस्थ गर्भावस्था है, लेकिन जब आप गर्भवती हों तो अपने बच्चे के लिंग के बारे में उत्सुक होना स्वाभाविक है. बहुत से लोग अपने बच्चे का लिंग उसी क्षण जानना चाहते हैं जब उनका गर्भावस्था परीक्षण सकारात्मक आता है. आखिरकार, अपने नन्हे-मुन्नों से मिलने के लिए नौ महीने का इंतज़ार करना बहुत लंबा समय है.


कुछ ऐसे लड़का-लड़की का चलता है पता


दरअसल, जब बच्चा गर्भ में रहता है तो अक्सर अनुमान लगाया जाता है कि पेट में लड़का है या लड़की. लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मेडिकल साइंस यह सभी बातों को बिल्कुल दिकयानूसी मानती है. मेडिकल साइंस के मुताबिक गर्भ में लड़का है या लड़की यह पूरी तरह से पुरुष के क्रोमोसोम पर निर्भर करता है. 


गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है या लड़की ऐसे होते हैं फैसला


गर्भवती महिला के गर्भ में मौजूद बच्चे का जेंडर पूरी तरह से पुरुष के क्रोमोसोम के द्वारा तय होता है. हर किसी के पास 23 क्रोमोसोम का पेयर होता है. महिला के क्रोमोसोम XX होते हैं. वहीं पुरुष के क्रोमोसोम XY होते हैं.  जब महिला का X और पुरुष का Y क्रोमोसोम से मिलता है तो XY कोमोसोम बनता है. इससे लड़के का जन्म होता है. इसका साफ अर्थ है कि किसी भी नवजात शिशु का जेंडर लड़का या लड़की पुरुष पर निर्भर करता है. 


प्रेग्नेंसी के 18-20 सप्ताह के अल्ट्रासाउंड में जेंडर का पता चल जाता है. , जिसे एनाटॉमी स्कैन के नाम से भी जाना जाता है. भ्रूण के विकास के दौरान यह वह बिंदु होता है जब जननांगों को आम तौर पर देखा जाता है और "लड़का" या "लड़की" शब्द को बेहद गुप्त रखा जाता है. सेल-फ्री डीएनए प्रीनेटल स्क्रीनिंग कहा जाता है जो गर्भावस्था के 10 सप्ताह की शुरुआत में ही यह जांच कर लेता है कि बच्चे में कोई जेनेटिक बीमारी तो नहीं है.  इसमें जेंडर को लेकर टेस्ट किया जाता है. जिन्हें एक्स और वाई के नाम से भी जाना जाता है, जो शरीर के विकास और कार्य में भूमिका निभाते हैं. XX क्रोमोसोम वाले लोगों को जन्म के समय लड़की माना जाता है, और XY क्रोमोसोम वाले लोगों को लड़का माना जाता है. 


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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