Male Infertility: बड़ी संख्या में युवा पुरुष और महिलाएं दोनों ही अलग तरह की इनफर्टिलिटी संबंधी समस्याओं का सामना कर रहे हैं. पुरुषों में जहां स्पर्म काउंट कम होना या सीमेन क्वालिटी का सही ना होना इसकी बड़ी वजह बना हुआ है, वहीं महिलाओं में यूट्रस सिस्ट बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रही हैं. पुरुषों में लो सीमन क्वालिटी और स्पर्म काउंट कम होने की जितनी विकट समस्या पिछले कुछ साल से देखने को मिल रही है, ऐसी स्थिति इससे पहले कभी नहीं रही.


यही कारण है कि आईवीएफ आज के समय में बच्चे की चाहत पूरी करने का एक ऐसा उपाय बन गई है, जिसकी जरूरत बड़ी संख्या में पड़ रही है. इसी के चलते आपको जगह-जगह आईवीएफ क्लीनिक्स देखने को मिलने लगे हैं. हालांकि तकनीक के माध्यम से लाइफ को आगे बढ़ाने में कोई बुराई नहीं है. लेकिन जिन कारणों के चलते पुरुषों में बहुत तेजी से इंफर्टिलिटी संबंधी समस्या बढ़ रही है, उन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता.


50 प्रतिशत तक घट गई है फर्टिलिटी


मीडिया में प्रकाशित अलग-अलग हेल्थ रिपोर्ट्स के मुताबिक 70 के दशक से लेकर अब तक पुरुषों की फर्टिलिटी दर में करीब 50 प्रतिशत की कमी आई है. साल 1973 से लेकर 2018 के बीच पुरुषों ने पिता बनने की क्षमता को 50 प्रतिशत तक खो दिया है. इसका कारण है, बहुत तेजी से घटता स्पर्म काउंट. माना जा रहा है कि हर साल करीब 1.16% की दर से पुरुषों का स्पर्म काउंट कम होता है. लेकिन 1973 से 2020 के बीच यह दर  2.64 प्रतिशत हो गई है. ऐसे में सवाल बनता है कि आखिर स्पर्म काउंट में इस गिरावट की वजह क्या है?


पुरुषों में क्यों बढ़ रही है इंफर्टिलिटी?



  • आपको जानकर हैरानी होगी कि किसी पुरुष की फर्टिली तभी से प्रभावित होने लगती है, जब वो एक भ्रूण के रूप में मां के गर्भ में होता है. यदि कोई महिला प्रेग्नेंसी के दौरान बहुत अधिक प्रदूषण वाली जगहों पर रहती है तो गर्भ में पल रहे बच्चे पर इसका बहुत बुरा असर पड़ता है. क्योंकि गर्भ के अंदर ही उसे टॉक्सिन्स का एक्सपोजर मिलने लगता है.

  • इसके साथ ही प्रेग्नेंसी के दौरान मां जिन फूड्स का सेवन करती है, उनका असर भी बच्चे पर पड़ता है. ऐसे में हॉर्मोनल इंबैलेंस बढ़ाने वाले फूड्स खाने से या पेस्टीसाइट्स युक्त फूड खाने से गर्भ में पल रहे बच्चे (बेटे) की आने वाली लाइफ प्रभावित हो रही होती है.

  • साइंस की तरक्की के साथ जो केमिकल्स इंसानों की सुविधा के लिए इजात किए गए हैं, वे अब अपना असर दिखाने लगे हैं और ये हॉर्मोनल इंबैलेंस को बढ़ाकर रिप्रोडक्शन कैपिसिटी को कम कर रहे हैं. प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भवती महिला द्वारा यूज किए जाने वाले कॉस्मेटिक प्रॉडक्ट्स भी इनमें शामिल हैं. जैसे, लिपस्टिक. 

  • खेतों में यूज होने वाले पेस्टिसाइट्स और दूसरे सिंथेटिक मटीरियल्स जैसे खाद इत्यादि. ये सभी अपना असर दिखा रहे हैं. एट्राजीन नाम के हर्बिसाइडर (घास सुखाने वाला केमिकल) पुरुषों में स्पर्म क्वालिटी घटाने का काम करता है. इसका उपयोग फसलों के बीच उग रही गैरजरूरी घास को सुखाने के लिए किया जाता है.

  • डेली लाइफ में प्लास्टिक की वस्तुओं, प्लास्टिक टिफिन, प्लास्टिक पानी बॉटल इत्यादि का बुरा असर प्रजनन क्षमता को कम कर रहा है. क्योंकि इनका बुरा असर मेल हॉर्मोन टेस्टोस्टेरॉन और सीमेन हेल्थ को प्रभावित कर रहा है.

  • ये जानकर आपको हैरानी होगी कि गद्दे और फोम से बने दूसरे फर्नीचर का यूज करने से भी पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन का स्तर प्रभावित होता है.  पैक्ड फूड, कॉस्मेटिक्स, प्लास्टिक इत्यादि के जरिए जो कार्सिजेनिक यानी कैंसर बढ़ाने वाले तत्व शरीर में जाते हैं, ये स्पर्म की हेल्थ को भी खराब करते हैं.

  • मोटापा, खराब लाइफस्टाइल, फिजिकल ऐक्टिविटीज की कमी, अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड का सेवन, ये ऐसे कारण हैं जो इनफर्टिलिटी की समस्या बढ़ाने में आग में घी का काम करते हैं. इनके कारण पुरुषों में स्पर्म काउंट घट जाता है.

  • लैपटॉप, सेल फोन और मॉडेम के कारण होने वाला रेडिऐशन भी पुरुषों में इनफर्टिलिटी की समस्या को बढ़ा रहा है.क्योंकि इससे स्पर्म की क्वालिटी घट जाती है, स्पर्म्स की शेप बदल जाती है और स्पर्म की स्पीड भी कम हो जाती है.

  • इनफर्टिलिटी इस यहां तक सीमित नहीं है कि इसके कारण कोई पुरुष पिता बनने की क्षमता खो देता है बल्कि इसके आगे भी इसके कई बुरे प्रभाव देखने को मिलते हैं. क्योंकि ये पुरुषों की लाइफ को कम करता है और मृत्युदर बढ़ाने का काम करता है. जिन पुरुषों को हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज या कैंसर की समस्या होती है,उनमें इंफर्टिलिटी रेट और भी बढ़ जाता है.


 


Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों व दावों को केवल सुझाव के रूप में लें, एबीपी न्यूज़ इनकी पुष्टि नहीं करता है. इस तरह के किसी भी उपचार/दवा/डाइट और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.


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