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Cervical Cancer: अब महज 100 रुपये में होगा 6000 वाला टेस्ट, एम्स ने तैयार की सर्वाइकल कैंसर जांचने की बीकेवी नैनो तकनीक
सर्वाइकल कैंसर महिलाओं में होने वाली खतरनाक बीमारी है. इसकी वजह से हर साल बड़ी संख्या में महिलाएं अपनी जान गंवा देती हैं. इसका सबसे बड़ा कारण है इस कैंसर का सही समय पर पहचान न हो पाना.
Cervical Cancer: सर्वाइकल कैंसर महिलाओं में होने वाली एक खतरनाक बीमारी है. अकेले भारत में ही हर घंटे करीब 9 महिलाओं की जान इस कैंसर की वजह से हो रही है. इसका कारण समय पर इसकी पहचान न हो पाना और इलाज में देरी है. हालांकि, इस दिशा में अब बड़ी खोज हुई है. एम्स के डॉक्टरों ने एक ऐसी तकनीकी बना ली है, जिससे सर्वाइकल कैंसर का 6,000 रुपए में होने वाला टेस्ट (Cervical Cancer Test) मात्र 100 रुपए में हो जाएगा. मैग्नेटिक नैनोपार्टिकल क्वांटम डाट्स कपल्ड इम्यूनो-नैनो फ्लोरेसेंस ऐसे (MNQDCINFA) तकनीक का इस्तेमाल कर (AIIMS) के डॉक्टरों ने सर्वाइकल कैंसर के टेस्ट की नई तकनीक और किट बनाया है, जो पैप स्मीयर से बेहतर और इम्यूनोफ्लोरेसेंस-हिस्टोपैथोलाजी (बायोप्सी) की तरह ही 100% प्रभावी होगी.
बड़े लैब के बिना ही होगी जांच
एम्स में तैयार इस किट को लेकर दावा किया जा रहा है कि इससे सिर्फ 100 रुपए में ही सर्वाइकल कैंसर की जांच हो जाएगी, जो अभी 6 हजार रुपए तक में होती है। सबसे बड़ी बात कि इसके लिए किसी बड़े लैब में जाने की जरूरत भी नहीं होगी. अभी सर्वाइकल कैंसर की स्क्रीनिंग के लिए ज्यादातर अस्पतालों में पैप स्मीयर टेस्ट की जाती है. इसकी रिपोर्ट करीब दो हफ्ते में आती है. रिपोर्ट पॉजिटिव पाए जाने पर सर्वाइकल कैंसर की पुष्टि के लिए इम्यूनोफ्लोरेसेंस-हिस्टोपैथोलाजी टेस्ट होती है. मतलब इसकी रिपोर्ट तैयार होने में काफी वक्त लग जाता है.
कितना प्रभावी सर्वाइकल कैंसर का नया किट
एम्स के इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप सुविधा केंद्र में सर्विकल कैंसर की जांच की आसान तकनीक बनाने के लिए एनाटॉमी और गायनी विभाग के डॉक्टरों ने मिलकर यह किट तैयार किया है. एनाटॉमी विभाग के डॉ. सुभाष चंद्र यादव ने बताया कि इस किट का पैप स्मीयर टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए 600 पॉजिटिव सैंपल और 400 निगेटिव सैंपल पर ट्रायल भी किया गया है. इसकी हिस्टोपैथोलाजी जांच रिपोर्ट से तुलना भी की गई, जिसमें 100 प्रतिशत सटीकता मिली है. इस तकनीक में दो तरह के साल्यूशन इस्तेमाल किए गए हैं.
सर्वाइकल कैंसर का नया किट कैसे काम करता है
इस तकनीक में 25 नैनो मीटर के छोटे-छोटे गोल्ड चुंबक लेकर सैंपल को मसलकर साल्यूशन में मिलाया जाता है. कैंसर के लिए रिस्पॉन्सिबल E-75 प्रोटीन सॉल्यूशन से चिपक जाते हैं, फिर यूवी लाइट छोड़ा जाता है. अब अगर इस सैंपल का रंग बदलकर आरेंज यानी नारंगी हो जाए तो इसका मतलब मरीज कैंसर की चपेट में है. अगर सैंपल का रंग नहीं बदलता है तो इसका मतलब ुसे कैंसर नहीं है. इस टेस्ट के लिए सैंपल पैप स्मीयर की तरह ही लिया जाएगा. देश के किसी इलाके में एएनएम भी इसका टेस्ट कर सकेंगी. टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव होने पर अलग से हिस्टोपैथोलाजी टेस्ट की जरूरत नहीं होगी.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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