कोलकाता: देश में आंखों के कैंसर के ज्यादातर मामलों के बारे में तब पता चलता है, जब बहुत देर हो चुकी होती है. ऐसा डॉक्टर्स का मानना है.
लापरवाही से जान को भी खतरा-
डॉक्टर्स का कहना है इस प्रकार के रोग और उसके लक्षणों को लेकर लोगों को जागरूक करने की जरूरत है, ताकि इसकी रोकथाम, जानकारी और इलाज सुनिश्चित हो सके. ज्यादा देर होने से आंखों की रोशनी जाने के साथ-साथ जान को भी खतरा पैदा हो जाता है.
क्या कहते हैं डॉक्टर-
चार फरवरी को विश्व कैंसर दिवस है. आई कैंसर स्पेशलिस्ट बिक्रमजीत पाल ने कहा कि लोगों को मालूम होना चाहिए कि शरीर के अन्य अंगों की तरह आंखों में भी कैंसर हो सकता है. यही नहीं अन्य अंगों के कैंसर से आंखों पर असर पड़ सकता है.
लोगों को बहुत देर हो जाने के बाद रोग का पता चलता है, तब तक रोग गहरा जाता है और वह तकरीबन अंतिम चरण में होता है. इसके अलावा बहुत सारे मरीज मेडिकल प्रोटोकॉल का भी पालन नहीं करते हैं.
देश में आंखों में विभिन्न प्रकार के कैंसर के ट्यूमरों का उपचार करने के लिए देश में विशेषज्ञों की भी कमी है.
बच्चों में रेटिना का कैंसर-
पांच साल से कम उम्र के बच्चों में रेटिनोब्लास्टोमा यानी रेटिना का कैंसर सामान्य है. इसमें भेंगापन और आंखों की पुतली के भीतर सफेद दाग रहता है. यह रोग 20 हजार में एक बच्चे में देखने को मिलता है.
शुरुआती चरण में रोग का पता चलने पर बच्चे की दोनों आंखों की रोशनी बचाई जा सकती है, लेकिन ज्यादा देर होने से आंखों की रोशनी समाप्त होने के साथ-साथ जान को खतरा भी पैदा हो जाता है.
ये एक्सपर्ट के दावे पर हैं. ABP न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता. आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने एक्सपर्ट की सलाह जरूर ले लें.