World Heart Day 2021: स्टेरॉयड का संबंध दिल की बीमारी के ज्यादा जोखिम से क्यों है? जानिए
World Heart Day 2021: लंबे समय तक स्टेरॉयड का संबंध वजन बढ़ाने के जोखिम से जुड़ता है जिससे मोटापा, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रोल के मामले और हार्ट अटैक होते हैं.
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World Heart Day 2021: स्टेरॉयड का इस्तेमाल इन दिनों बहुत आम हो गया है. हालांकि, उसका इस्तेमाल करना नुकसानदेह नहीं है. स्टेरॉयड सूजन से लड़ने के लिए जानी जाती हैं और अक्सर अस्थमा, पाचन से संबंधित इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज और अर्थराइटिस समेत कई स्थितियों के लिए लिखी जाती है. लेकिन, सूजन रोधी दवा की शक्ल में आनेवाले स्टेरॉयड का प्रतिकूल प्रभाव जाना जाता है. वर्षों से कहा जा रहा है कि स्टेरॉयड किडनी और लिवर के नुकसान की वजह बन सकता है. ये हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और मोटापा का जोखिम बढ़ाते हैं. स्वास्थ्य की सभी तीनों स्थितियां दिल की बीमारी के जोखिम फैक्टर हैं. इसलिए ध्यान देना जरूरी है कि स्टेरॉयड की अधिक खुराक से दिल की बीमारी का जोखिम भी बढ़ सकता है, दिल की बीमारी में स्ट्रोक, हार्ट फेल्योर और हार्ट अटैक शामिल हैं.
स्टेरॉयड का इस्तेमाल दिल की बीमारी के लिए जोखिम
कई बार अंग प्रत्यारोण करानेवाले मरीजों को स्टेरॉयड का सुझाव दिया जाता है. थोड़े समय के लिए स्टेरयॉड का इस्तेमाल अस्थमा और एलर्जी की स्थितियों में मरीज की मदद करता है. लेकिन लंबे समय तक स्टेरॉयड के इस्तेमाल की जरूरत में मेडिकल पेशेवर से चर्चा करने का सुझाव दिया जाता है. बातचीत स्टेरॉयड के फायदों और जोखिम पर हो सकती है.स्टेरॉयड से शरीर को होनेवाले रिस्पॉन्स की मॉनिटरिंग करना भी मरीज के लिए महत्वपूर्ण है.
लंबे समय तक स्टेरॉयड का संबंध वजन बढ़ाने के जोखिम से जुड़ता है जिससे मोटापा, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रोल के मामले और हार्ट अटैक होते हैं. हालांकि, इसके विपरीत बहुत सारे मरीजों को स्टेरॉयड ऑटो इम्यून स्थिति को काबू करने के लिए जरूरी हो जाता है. ऑटो इम्यून की स्थिति में इम्यून सिस्टम शरीर के हेल्दी सेल्स पर हमला करता है. ऑटो इम्यून की स्थितियों का संबंध ज्यादा सूजन लेवल के कारण हार्ट अटैक और स्ट्रोक के अधिक जोखिम से जुड़ता है.
कार्डियोवैस्कुलर बीमारी के जोखिम को कैसे करें कम?
फोर्टिस एस्कॉर्ट्स नई दिल्ली में डॉक्टर विनय जेटली के मुताबिक, लंबे समय तक स्टेरॉयड पर निर्भर रहनेवाले सभी मरीजों को नियमित अपने मेडिकल विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए. ये हार्ट अटैक होने के जोखिम को कम करता है और जोखिम कारकों को दूर और नियंत्रित करने में मदद करता है. उसके अलावा, लाइफस्टाइल में बदलाव और जोखिम फैक्टर में सुधार की रणनीतियां जैसे नियमित व्यायाम, डाइट को अनुकूलन बनाना, स्मोकिंग छोड़ना, ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर की नियमित मॉनिटरिंग अपनाए जा सकते हैं.
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