Welfare of Cancer Patients Day: कैंसर नाम से ही डर लगता है. मगर बॉडी में इसका बनना छुपे रुस्तम की तरह होता है. कैंसर स्पेशलिस्ट के अनुसार, जो लोग नियमित तौर पर जांच कराते हैं. उन्हें ही कैंसर की जानकारी हो पाती है. बाकि को तीसरी या चौथी(last stage of cancer) स्टेज पर पता चलता है. ब्लड कैंसर भी ऐसे ही कैंसर में से एक है. ब्लड में होने वाली चेंजिग का इफेक्ट बॉडी पर नहीं दिखता और जब दिखना शुरू होता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. ब्लड बार बार कम हो रहा है, कम बन रहा है. या फिर ब्लड जांच में अधिक इंफेक्शन आया है तो समझ लीजिए यह ब्लड कैंसर का संकेत है. डॉक्टरों का कहना है कि ऐसा होने पर तुरंत जांच कराएं.
क्यों होता है ब्लड कैंसर
आज वर्ल्ड रोज डे है. कैंसर की अवेयरनेस को लेकर मनाए जाने वाले दिन पर आज ब्लड कैंसर के प्रकार(types of blood cancer), लक्षण, कारण और बचाव जान लेते है. ब्लड कैंसर की शुरुआत बॉडी में मौजूद कोशिकाओं में होने वाले बदलाव से जुड़ी है. यह बदलाव ब्लड या अस्थि मज्जा(bone marrow) में होता है. इसे ब्लड कैंसर का प्राइमरी इंफेक्शन माना जाता है. यही इंफेक्शन बाद में पूरे शरीर में फैल जाता है. फिर एक ऐसी स्थिति आती है, जब रक्त कैंसर की ये कोशिकाएं खत्म न होकर और बढ़ती ही जाती हैं.
कितनी तरह का होता है ब्लड कैंसर
ल्यूकेमिया, लिम्फोमा, माइलोमा कैंसर को स्पेशली 3 तरह का माना जाता है. इनको थोड़ा डीपली समझ लेते हैं.
1- ल्यूकेमिया: ल्यूकेमिया कैंसर भी खुद में चार तरह का होता है.
एक्यूट ल्यूकेमिया
जब ब्लड और बोनमैरो के सेल्स बहुत तेजी से बढ़ने लगते हैं और ब्लड व बोनमैरो में इकट्ठा होने लगते हैं. यही स्थिति एक्यूट ल्यूकेमिया की होती है.
क्रोनिक ल्यूकेमिया
शरीर में कुछ अविकसित सेल्स के बनने की प्रक्रिया तेज हो जाती है. यह समय के साथ बहुत तेजी से बढ़ता है. इलाज न मिलने पर बहुत पेनफुल होता है.
लिम्फोसाईटिक ल्यूकेमिया
इस स्थिति में बोनमैरो के सेल्स व्हाइट सेल्स में बदलना शुरू हो जाते है. व्हाइट सेल्स की संख्या बहुत तेजी से लाखों में पहुंच जाती है.
मैलोजनस ल्यूकेमिया
बोनमैरो कोशिकाओं के द्वारा रेडब्लड सेल्स और व्हाइट ब्लड़सेल्स के अलावा बहुत तेजी से प्लेटलेट्स का निर्माण होने लगता है.
2. लिम्फोमा
लिम्फोसाइट्स की संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है. ब्लड जांच कराने पर इसका पता चल जाता है. दवा और रेडिएशन थेरेपी से इसका विस्तार कुछ स्लो हो जाता है. अधिक बढ़ने पर सर्जरी ही इसका एकमात्र उपचार है.
माइलोमा
प्लाज्मा कोशिकाएं, बोन मैरो में एक प्रकार की खून की सफेद कोशिकाएं होती हैं. इस स्थिति में प्लाज्मा कोशिकाओं का एक ग्रुप कैंसर सेल्स लेकर तेज़ी से बढ़ने लगता है. यह हड्डियों, इम्यून सिस्टम, किडनी और ब्लड रेड सेल्स को नुकसान पहुंचा सकती है.
Symptoms भी जान लीजिए
थकान अधिक रहना, भूख कम लगना, पेट में सूजन आना, मुंह, गले, स्किन और फेफड़ों में इंफेक्शन होना, बिना किसी वजह के वजन कम होना, बार बार बुखार आना, हड्डी और मशल्स में अधिक दर्द होना, उल्टी-दस्त होना, जबड़े में सूजन, स्किन पर खुजली और धब्बे(spot) बनना ब्लड कैंसर के लक्षण हैं.
लक्षण हैं तो डॉक्टर को दिखाएं
बॉडी यदि ब्लड कैंसर जैसे इंडिकेशन दे रही है तो तुरंत डॉक्टर को दिखाए. डॉक्टर ब्लड व अन्य जांच कराकर कैंसर होने या न होने की पुष्टि कर देता है. बाद में कीमोथेरेपी, रेडिएशन थेरेपी और दवाओं से इलाज शुरू कर दिया जाता है. डॉक्टर यह भी देखता है कि कैंसर पहली, दूसरी या फिर एडवांस स्टेज में है. उसी के आधार पर मरीज का इलाज किया जाता है.
शरीर क्या संकेत देता है जब कैंसर का पता लगता है