breastfeeding Myths: ममता का सुख किसी महिला की जिंदगी का खूबसूरत मोड़ है, अगर ये पहला नहीं है तो. हालांकि, इसका ये मतलब नहीं है कि ये किसी परी की कहानी जैसा है. इसके पीछे कुछ चुनौतियां और समस्याएं भी होती हैं. जन्म के बाद मां के सामने क्या करने और क्या नहीं करने की चुनौती सबसे आम होती है. उनमें से कुछ सुझाव मददगार होते हैं, जबकि दूसरे मिथक के अलावा कुछ नहीं होते हैं. जानिए ब्रेस्टफीडिंग के इर्द गिर्द क्या हैं मिथक और गलतफहमी.
ब्रेस्टफीडिंग से दर्द होता है- आम तौर पर अगर सही तरीके से ब्रेस्टफीडिंग कराया जाए, तो ये बहुत ज्यादा दर्द नहीं देता. पीड़ादायक निप्पल और तेज दर्द सभी गलत आसन के संकेत हैं. इसलिए, आप सुनिश्चित करें कि अपने बच्चे को पास रखें और सही से पकड़ें. अगर दर्द बना रहता है, तो डॉक्टर से मिलना हमेशा बेहतर विकल्प है.
सादा भोजन खाने को प्राथमिकता- हालांकि, ब्रेस्टफीडिंग करानेवाली मां को हमेशा अपने खाने पर ध्यान देना चाहिए, लेकिन ये जरूरी नहीं है कि आपको हमेशा सादा भोजन खाना चाहिए. संतुलित डाइट का सेवन एक मां के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना किसी और इंसान के लिए.
यात्रा करना मना है- अक्सर बुजुर्गों से ब्रेस्टफीडिंग करानेवाली मां को ये नसीहत देते हुए सुना जाता है कि उसे बार-बार यात्रा नहीं करना चाहिए. हालांकि, इसके पीछे कोई वैज्ञानिक तथ्य नहीं है जो ऐसे दावे का समर्थन करे. आराम, फिर भी, हमेशा एक अच्छा विकल्प है.
एक साल काफी है- बहुत सारी मां को एक साल से ज्यादा अपने बच्चे के लिए ब्रेस्टफीडिंग नहीं कराने का सुझाव दिया जाता है. इस दावे के पीछे भी समर्थन में कोई विज्ञान शामिल नहीं है. वास्तव में, डॉक्टरों की सलाह है कि मां और बच्चे दोनों के लिए दो साल तक ब्रेस्टफीडिंग फायदेमंद है.
जन्म के 3-4 दिनों बाद पर्याप्त दूध नहीं होता है- शुरुआती कुछ दिनों में शिशु को बहुत ज्यादा तरल की जरूरत नहीं होती और उसका किडनी तरल की बड़ी मात्रा को शुरू में संभालने में सक्षम नहीं होता. मां के ब्रेस्ट में आम तौर से बहुत महत्वपूर्ण तरल कोलोस्ट्रम की सिर्फ कम मात्रा होती है. कोलोस्ट्रम प्रोटीन और मिनरल्स में अधिक और फैट, कार्बोहाइड्रेट्स और कुछ विटामिन्स में कम होता है और आदर्श रूप से बच्चे की जरूरत के लिए मुनासिब है.
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