History of Saree: सबसे पहले कब पहनी गई थी साड़ी, कैसे बन गई इंडियन कल्चर का हिस्सा?
Saree Story: इंडियन कल्चर की बात हो और साड़ी का जिक्र न हो, ऐसा होना नामुमकिन है. क्या आपको पता है कि साड़ी सबसे पहले कब पहनी गई थी?
भारतीय संस्कृति में कपड़ों का भी काफी ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है. यही वजह है कि अगर कोई महिला साड़ी पहनती है तो वह ट्रेडिशनल ड्रेस कहलाती है, लेकिन कभी सोचा है कि जिस साड़ी को भारतीय संस्कृति से जोड़ा जाता है, उसे पहली बार कब पहना गया था? इतिहास के पन्नों के हिसाब से किस काल में साड़ी का जिक्र सबसे पहले मिलता है? कैसे यह इंडियन कल्चर का हिस्सा बनी, आइए जानते हैं.
कहां से आया साड़ी शब्द?
सबसे पहले सवाल उठता है कि 6 मीटर के कपड़े को आखिर साड़ी ही क्यों कहा गया? दरअसल, जब जमाना मॉडर्न नहीं हुआ था, उस वक्त पुरुष और महिलाएं अपने शरीर के निचले हिस्से को एक कपड़े से ढंकते थे, जिसे धोती कहा जाता था. इसी धोती ने महिलाओं के मामले में साड़ी का रूप ले लिया. वैसे साड़ी शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के सट्टिका शब्द से मानी जाती है. इसका मतलब कपड़े की पट्टी होता है.
ऋग्वेद में भी साड़ी का जिक्र
वैसे तो साड़ी को लेकर तमाम दावे हैं, लेकिन बात वेदों की करें तो वहां भी साड़ी का जिक्र मिलता है. जानकारों की मानें तो सबसे पहले यजुर्वेद में साड़ी का जिक्र किया गया है. इसके अलावा ऋग्वेद में भी यज्ञ आदि के वक्त अर्धांगिनी को साड़ी पहनाने का रिवाज बताया गया है. कहा जाता है कि इस रिचुअल के चलते साड़ी धीरे-धीरे भारतीय परंपरा में रच-बस गई.
हड़प्पा संस्कृति में भी थी साड़ी
दुनिया की प्राचीन सभ्यताओं से उस वक्त के कल्चर का पता चलता है. कहा जाता है कि खुदाई के दौरान जब सिंधु घाटी सभ्यता और हड़प्पा संस्कृति की खोज हुई, उस वक्त आर्कियोलॉजिस्ट्स को एक मूर्ति भी मिली थी. इस मूर्ति पर साड़ी जैसा डिजाइन भी बना हुआ था. ऐसे में माना जाता है कि उस वक्त भी साड़ी चलन में थी.
महाभारत में भी साड़ी का किस्सा
महाभारत में चीर हरण प्रसंग का जिक्र किया गया है. इस किस्से में दुर्योधन द्वारा द्रौपदी के चीर हरण का प्रसंग है, जिसकी लंबाई श्रीकृष्ण बढ़ा देते हैं. जानकारों की मानें तो महाभारत काल के इसी चीर को साड़ी कहा गया.
अंग्रेजों के जमाने में ऐसी थी साड़ी
अंग्रेजों के जमाने की पुरानी तस्वीरें हों या पुरानी फिल्में, दोनों ही मामलों में महिलाओं को साड़ी जैसे कपड़े में लिपटा हुआ देखा जा सकता है. उस वक्त साड़ी के साथ ब्लाउज पहनने का चलन नहीं था. माना जाता है कि रवींद्र नाथ टैगोर के भाई सत्येंद्र नाथ टैगोर की पत्नी ज्ञानदानंदिनीने सबसे पहले ब्लाउज पहना था. वह समाज सुधारक भी थीं.
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