आईआईटी मद्रास के रिसर्च में रहस्य से पर्दा उठाया गया है कि कैसे वायरस से लदी हवा की बूंदें यात्रा करती हैं और गहरे फेफड़े में जमा हो जाती हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि सांस को रोकना या सांस लेने की कम दर कोविड-19 से संक्रमित होने और हवा से फैलनेवाले वायरस के खतरे को बढ़ा सकता है. रिसर्च के खोज को अंतरराष्ट्रीय पत्रिका फिजिक्स ऑफ प्लूड्स में प्रकाशित किया गया है. रिपोर्ट में वजह बताते हुए कहा गया है कि कुछ लोगों को वायुजनित बीमारियों का खतरा अन्य लोगों के मुकाबले ज्यादा क्यों होता है.


रिसर्च से सांस रोकने के नुकसान का बड़ा खुलासा


शोधकर्ता ने अपने रिसर्च में पाया कि वायरस से लदी बूंदें फेफड़ों की गहराई में पहुंचकर सांस की दर में गिरावट के साथ बढ़ती हैं. खास लोगों में जैविक कारणों के चलते सांस लेने की दर कम होती है कि क्योंकि उन्हें योगा और एथलेटिक अभ्यास के जरिए ऐसा करने के लिए प्रशिक्षित किया गया होता है. रिसर्च को सांस संबंधी संक्रमण के लिए बेहतर थेरेपी और दवाइयों को विकसित करने का मार्ग प्रशस्त करने के लिए किया गया था. वायुजनित संक्रमण जैसे कोरोना वायरस छींक या खांसी के दौरान निकली छोटी हवा की बूंदों के जरिए तेजी से फैलता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि ब्रांकिओल्स फेफड़ों के अंदर वायु मार्ग होते हैं.


कोविड-19 की चपेट में आने का बढ़ाता है खतरा


ये छोटी थैलियों तक हवा की आपूर्ति करते हैं जहां कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन का आदान-प्रदान होता है. टीम ने तरल और फ्लोरोसेंट कणों से फेफड़ों में साक्ष्य और गति का पता लगाने के लिए एयरोसोल बनाया. शोधकर्ता टीम के प्रमुख प्रोफेसर महेश पचंगुला ने कहा, "हमारे फेफड़ों की शाखायुक्त संरचना होती है." उन्होंने कहा कि कोविड-19 ने फेफड़े संबंधी बीमारियों की हमारी समझ की कमी को उजागर किया है. उनका रिसर्च रहस्य से पर्दा उठाता है कि कैसे वायरस से लदी हवा की बूंदें यात्रा करती हैं और फेफड़ों की गहराई में जमा हो जाती हैं. लिहाजा, इस सिलसिले में अभी और रिसर्च की जरूरत है.


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