लॉकडाउन ने हमारी जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया है. हमारे रहने, खाने, सोने के तरीके को बदल दिया है. इस बदलाव का हमारे मन और शरीर पर नकारात्मक असर पड़ा है. ये नकारात्मकता कई तरह की बीमारियों को बुलावा दे रही है. लॉकडाउन की वजह से कई लोगों को मौत का डर सताने लगा है. ये बेहद गंभीर बात है. यहां हम आपको बता रहे हैं कि मौत के डर को मात कैसे देनी है.

ABP न्यूज की खास सीरीज 'मन का विश्वास कमजोर हो ना' के एक्सपर्ट पैनल में विशेष संवाददाता इंद्रजीत राय, न्यूरोलॉजिस्ट नवदीप कुमार और मनोवैज्ञानिक मनीषा सिंघल ने लॉकडाउन में मौत के डर की मनोवैज्ञानिक समस्या के बारे में बताया. इंद्रजीत राय ने कहा, "बहुत लंबे वक्त तक आदमी कट जाता है तो ऐसी प्रवृति इंसान के भीतर आ सकती है कि कहीं उसे कोई बीमारी ना पकड़ ले. बीमारी के चलते उसकी या उसके परिजनों की या उसके माता-पिता की या फिर जो भी परिवार के सदस्य हैं. उनमें से किसी की मौत हो जाए. तो मौत के डर की प्रवृति उसके अंदर पैदा होने लगती है."

मनोवैज्ञानिक मनीषा सिंघल ने बताया, "काफी भावनात्मक उतार-चढ़ाव चल रहा है. काफी लोगों में हैं. अपनी प्रतिक्रिया को रोकिए. आप सोच सकते हैं कि अगर किसी दूसरे तरीके से प्रतिक्रिया देता हूं तो क्या वो सही नहीं होगा. जब मौत का डर आपके दिमाग में घर कर लेता है। तो उस डर को दिमाग से निकाले बगैर समाधान मुमकिन नहीं है."

न्यूरोलॉजिस्ट डॉ नवदीप कुमार ने बताया, "लोग देरी से सो रहे हैं. रात को लेट सो रहे हैं सुबह लेट उठ रहे हैं इसकी वजह से सोने का समय बदल गया है. सुबह आप लेट उठेंगे तो रात में नींद नहीं आएगी. स्लीप और वेक हॉर्मोन्स के बीच असंतुलन हो जाता है, सोने का समय बदलने की वजह से. उससे आपके व्यवहार में कई तरह के नकारात्मक बदलाव आ जाते हैं. अपने बारे में सोचें, अपने भविष्य के बारे में सोचें. परिवार में अपने रिश्तों के बारे में सोचें."

यानी कि मौत के डर से मुक्ति पाने के लिए एक्सपर्ट की सलाह है- सही समय पर सोएं, ज्यादा चिंता ना करें, किसी भी डर को खुद पर हावी ना होने दें, जिंदगी को खुलकर जिएं, अपने व्यवहार पर काबू रखें, पॉजिटिव रहें.