How To Build Confidence In Kids: हर पैरेंट्स चाहते हैं कि उनका बच्चा बड़ा होकर कॉन्फिडेंट बने और एक अच्छी पर्सनैलिटी डवलप करे. बच्चों को कॉन्फिडेंट बनाने के लिये कई बार दोनों पैरेंट्स जॉब करते हैं, उनका अच्छे स्कूल में एडमिशन कराते हैं लेकिन शायद जाने-अनजाने में कुछ बातों का ख्याल नहीं रख पाते जिससे बच्चे में आत्म विश्वास कम होने लगता है. बच्चे में आत्मविश्वास बढ़ाने के लिये सबसे जरूरी है उसे क्वालिटी टाइम देना. भौतिक सुवधायें थोड़ी कम हों या ज्यादा लेकिन जिन बच्चों के पैरेंट्स उनको पूरा समय देते हैं और सही पेरेंटिंग करते हैं उनके बच्चो का आत्मविश्वास ज्यादा होता. खासतौर पर 5 साल तक के बच्चों का कॉन्फिडेंट डवलप करने के लिये तो इन बातों पर जरूर गौर फरमायें.


अकेले रहने वाले बच्चों में होता है कम कॉन्फिडेंस
5 साल तक के बच्चों के पैरेंट्स अगर वर्किंग है और बच्चे नैनी, डे केयर या क्रैच में रहते हैं तो उनका कॉन्फिडेंस कम हो जाता है. पैरेंट्स के साथ ना रहने से बच्चों में एडजस्टमेंट करने की फीलिंग आने लगती है. कई बार उनके अंदर ये सेंस डवलप होने लगता है कि मेरे पैरेंट्स साथ नहीं तो वो हर बात पर जिद करने या मनमाने की बजाय थोड़ा एडजस्टिंग रूट की तरफ चले जाते हैं. साथ ही इन बच्चों का ज्यादा वक्त पैरेंट्स के बिना बीतता है और कई बार नैनी या डे केयर वाली फैसिलिटी में ड्यूटी तो पूरी होता है लेकिन छोटे बच्चों को जो प्यार और भरोसा पैरेंट्स के साथ रहने से मिलता है वो नहीं मिल पाता इसलिये बच्चों का कॉन्फिडेंस कम होने लगता है.


बचपन से ही कम ना करें आत्मविश्वास
ये बात बड़े बच्चों के लिये इतना जरूरी नहीं है क्योंकि 5 साल के बाद के बच्चे कम से कम 6-7 घंटे स्कूल में बिताते हैं और बाकी शाम के वक्त पढ़ाई, ट्यूशन, स्पोर्ट्स या दूसरी एक्टिविटी हो जाती है जिसमें वो बिजी रहते हैं. लेकिन 5 साल तक के बच्चों के स्कूल टाइमिंग 3 से 4 घंटे के लिये होती हैं और उसमें भी अगर स्कूल के बाद उनको डे केयर या नैनी के साथ रहना पड़ता है तो उनके दिमाग में उतना आत्मविश्वास नहीं बढ़ता जितना पैरेंट्स के साथ रहने वाले बच्चों में बढ़ता है. 5 साल तक के बच्चों की उम्र ऐसी होती है जिसमें वो हर बात इतनी अच्छी तरह कह भी नहीं पाते. अगर आपको बचपन से ही बच्चे का कॉन्फिडेंस हाई रखना है तो कम से कम 5 साल तक उसके फ्री टाइम में साथ रहें. 


बच्चों की आलोचना न करें
5 साल तक के बच्चों को मैनर्स सिखायें लेकिन हर छोटी बड़ी बात के लिये उनकी आलोचना ना करें. उनको हर वक्त किसी दूसरे बच्चे से कंपेयर ना करें. कई बार उनकी उम्र के बच्चे उनसे ज्यादा समझदार और अच्छा बर्ताव करने वाले हो सकते है लेकिन इसका मतबल ये नहीं कि अपने बच्चों को इसके लिये बार बार बोला जाये. हर बच्चे की अपनी एक Individuality होती है और लर्निंग स्टेज भी अलग होती है. इसलिये बेहतर है कि दिमाग से तुलना करना हटा दें 


बच्चों को कॉन्फिडेंट करें
बच्चे को साइकलॉजिकल तौर पर भी इस बात का हमेशा भरोसा दिलायें कि आप उनके साथ हैं. डांटने या चिल्लाने पर भी ऐसी बातें बच्चे को ना बोलें जिससे वो इनसिक्योर फील करे. कई बार पैरेंट्स बच्चों को डांटने में इस तरह की बातों का उपयोग करते हैं कि पुलिस ले जायेगी या हम कहीं चले जायेंगे तो ध्यान रखें कि इन सब बातों को बच्चे के सामने बिल्कुल ना बोलें. ऐसी बातों से बच्चे का आत्मविश्वास कम होता है. 
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