जीवन में उतार-चढ़ाव आना बिल्कुल स्वाभाविक है. चाहे वो पढ़ाई, करियर या रिश्तों से जुड़ा हो. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण ये है कि हम इन चुनौतियों और मुश्किलों से कितनी अच्छी तरह निपट पाते हैं. रिजेक्शन जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है, और बच्चों को इससे निपटने का सही तरीका सिखाना माता-पिता और शिक्षकों की जिम्मेदारी होती है. इससे उन्हें आत्मविश्वास बनाए रखने, सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने और चुनौतियों का सामना करने की शक्ति मिलती है. आइए जानते हैं बच्चों को कैसे रिजेक्शन से डील करना सिखाएं..


सकारात्मकता बनाए रखें
बच्चों को समझाएं कि रिजेक्शन जीवन का एक हिस्सा है.
माता-पिता को अपने बच्चों को समझाना चाहिए कि रिजेक्शन जीवन का एक सामान्य हिस्सा है और इसे कमजोरी या खुद को नीचा दिखाने वाली बात नहीं समझना चाहिए. बल्कि इसे एक अवसर के रूप में देखा जा सकता है जो हमें आगे बढ़ने और सीखने के लिए प्रेरित करता है. यदि हम सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएं तो रिजेक्शन से निपटना आसान हो जाता है. 


खुलकर बातचीत करें: बच्चों को समझाएं कि रिजेक्शन हर किसी के जीवन में आता है और यह व्यक्तिगत असफलता नहीं है. उनसे उनकी भावनाओं के बारे में खुलकर बात करें. रिजेक्शन जैसी स्थितियों में बच्चे अक्सर अपने आप को दोष देते हैं और सोचते हैं कि शायद मेरे ही अंदर कोई कमी है. लेकिन माता-पिता का काम है कि वे बच्चों को समझाएं कि रिजेक्शन तो हर किसी के साथ कभी न कभी हो ही जाता है. 


बच्चों को पहले की कामयाबी बताएं 
माता-पिता को बच्चों के सामने उनकी सकारात्मक बातों को रखना चाहिए. जैसे, उन्हें याद दिलाना चाहिए कि वह पिछली बार परीक्षा में कितने अच्छे नंबर लाए थे. या फिर कल क्रिकेट मैच में उसने कितनी अच्छी बल्लेबाजी की थी. इस तरह बच्चों को याद दिलाना चाहिए कि एक रिजेक्शन उनकी सारी क्षमताओं को दर्शाता नहीं है. वे बहुत कुछ कर सकते हैं और उनमें और भी बहुत सकारात्मक गुण हैं. ऐसे में उनका आत्मविश्वास बना रहेगा. 


रोल मॉडल्स का उदाहरण दें 
सफल लोगों की कहानियां साझा करें जिन्होंने रिजेक्शन का सामना किया और उससे ऊपर उठे. यह बच्चों को प्रेरित करेगा और उन्हें दिखाएगा कि असफलता से सीखना और आगे बढ़ना संभव है. 


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