शोधकर्ताओं का कहना है कि इंसानी गतिविधियों से रोग फैलानेवाले मच्छरों की तादाद में व़ृद्धि हो रही है. उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के क्रूगर नेशनल पार्क के अंदर और पार्क के बाहर इंसानों की घनी आबादी वाले इलाके से सैंपल इकट्ठा किया. सैंपल में दोनों इलाकों के वातावरण में मच्छरों की मौजूदगी का बड़ा अंतर पाया गया.


रोग वाहक मच्छरों की संख्या में इजाफा


अमेरिका की ओरेजॉन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बताया कि इंसानी गतिविधि वाले इलाके में उन मच्छरों की प्रजाति ज्यादा थी जो मलेरिया और जीका फैलाने के जिम्मेदार थे. ओरेजॉन स्टेट यूनिवर्सिटी के कॉर्ल्सन कॉलेज ऑफ वेटेरिनरी मेड़िसीन की असिस्टेंट प्रोफेसर और शोध की सह लेखिका डॉक्टर ब्रियान्ना बीचलर ने कहा, “ऐसा लगता है कि बीमारी के वाहक मच्छरों की प्रजातियां मानव परिवर्तित वातावरण में निश्चित रूप से बढ़ती हैं.”


उन्होंने बताया कि लोग इस बात का ज्यादा ख्याल रखते हैं कि शेर के विकास के लिए किस तरह के वातावरण की जरूरत है. लेकिन जब बात मच्छरों की आती है तो ऐसा नहीं होता है. हम उन्हें प्रजातियों के समूह के तौर पर नहीं समझ पाते हैं. और न ही इस बात का ध्यान रखते हैं कि कैसे उनका पारिस्थितिकी अन्य प्रजातियों के बीच अलग होता है.


इंसानी मौजूदगी से आ रहे हैं दबाव


अलग वातावरण में मच्छरों के व्यवहार की तुलना करने के लिए शोधकर्ताओं ने इंसानी मौजूदगी से होनेवाले पांच दबावों का निरीक्षण किया. ऑर्गनोफॉस्फेट कीटनाशक की बहुतायत, सुपोषण यानी किसी जलाशय को पोषक तत्वों से समृद्ध करना. सुपोषण की प्रक्रिया में जलाशय में पौधे और शैवाल का विकास होता है. आबादी का घनत्व, बायोमास को अनियंत्रित करना जिसमें घरेलू और जंगली जानवर शामिल होते हैं. इसके अलावा वनस्पति की हानि भी पांच दबावों में  प्रमुख रूप से है.


2016-17 में दक्षिण अफ्रीका के बारिश के मौसम में शोधकर्ताओं ने 39 अलग प्रजातियों से 3 हजार 918 मादा मच्छरों को पकड़ा. ये मच्छर पार्क के अंदर और पार्क के बाहर से इकट्ठा किए गए थे. बीचलर ने कहा, “हम मच्छरों को पूरी तरह कम कर सकते हैं. मगर ज्यादा प्रभावी होगा विशेष प्रजातियों को कम करना. ये उसी सूरत में होगा जब हम उनके आवास में बदलाव ला दें.” हालांकि उन्होंने ये भी कहा है कि इसके पीछे कारण का अभी स्पष्ट पता नहीं चला है और इस बारे में अतिरिक्त शोध की जरूरत है.


नए इलाकों में दाखिल हो रहे हैं मच्छर


उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन से मच्छरों का फैलाव बदल सकता है. इसी के साथ बीमारी के फैलाव में बदलाव आ सकता है. इसलिए ये जानना दिलचस्प होगा कि मच्छरों के फैलाव में बदलाव से पहले कैसे उनकी प्रजातियों को निशाना बनाया जाए. उन्होंने ये भी विस्तार से बताया कि कैसे ये रोग वाहक मच्छर खास कर मलेरिया, जीका और चिकनगुनिया का कारण बननेवाले मच्छर पिछले कुछ साल से नए इलाकों में दाखिल हो रहे हैं. शोध के जरिए ही मच्छरों के बर्ताव और पैटर्न में हो रहे बदलाव को समझने में मदद मिल सकती है.


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