नई दिल्ली: दूषित मानसकिता को दूर करने के लिए महाराष्ट्र में अब किसी भी महिला को वर्जिनिटी टेस्ट के लिए बाध्य करना दंडनीय अपराध होगा. प्रदेश में कुछ जगहों पर यह परंपरा पिछले काफी दशकों से चली आ रही है. इन समुदायों में नवविवाहित महिलाओं को यह साबित करना होता था कि शादी से पहले वह कुंवारी हैं या नहीं.


इसपर प्रदेश के गृह राज्यमंत्री रंजीत पाटिल ने बुधवार को बताया कि उन्होंने इस मुद्दे पर कुछ सामाजिक संगठनों के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात भी की है. शिवसेना प्रवक्ता नीलम गोरहे भी इस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थीं. मंत्री ने कहा, "वर्जिनिटी टेस्ट को यौन हमले की तरह समझा जाएगा.... उन्होंने विधि एवं न्याय डिपार्टमेंट के साथ बातचीत करने के बाद यह बताया कि अब एक परिपत्र जारी किया जाएगा और इसे दंडनीय अपराध भी घोषित किया जाएगा."


महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाला यह रिवाज कंजरभाट और कई दूसरे समुदायों में अभी भी मौजूद है. इस मानसिकता को दूर करने के लिए कुछ युवकों ने ऑनलाइन अभियान भी चलाया हुआ है. पाटिल ने यह भी कहा कि उनका डिपार्टमेंट यौन हमले के मामलों की हर दो महीने पर समीक्षा करेगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि अदालतों में ऐसे मामले कम लंबित रहें.


रिपोर्ट के मुताबिक, कंजरभाट समुदाय में सुहागरात के समय कमरे के बाहर पंचायत के लोग मौजूद रहते हैं. वहीं लोग बेडशीट को देखकर यह तर करते हैं कि दुल्हन वर्जिन है या नहीं. अगर दूल्हा खून का धब्बा लगी चादर लेकर कमरे से बाहर आता है तो दुल्हन टेस्ट पास कर लेती है. लेकिन अगर खून के धब्बे नहीं मिलते तो पंचायत सदस्य दुल्हन के किसी और के साथ रिलेशनशिप होने का आरोपी ठहरा देते हैं.


इससे दो साल पहले एक महिला ने 'स्टॉप द V टेस्ट' नाम से एक आंदोलन शुरू किया था. दिसंबर 2017 में नवविवाहित तमाईचिकर और उनके पति विवेक ने इस प्रथा का विरोध किया. इस कैंपेन को कई युवाओं का समर्थन मिला.


55 साल की लीलाबाई ने बताई आपबीती
बीते कई दशकों में बड़ी संख्या में महिलाओं ने इस कूरीति को झेला है. इनमें से ही एक महिला 55 साल की लीलाबाई ने बताया कि उन्हें भी इस टेस्ट से करीब चार दशक पहले होकर गुजरना पड़ा था. लीलाबाई ने बताया कि उस समय उनकी उम्र 12 साल थी. वो बताती हैं कि उस समय वो जवान थीं और उन्हें इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि यह मेरे साथ क्या और क्यों हो रहा है.


लीलाबाई इस प्रथा के खिलाफ कई सालों तक अपना विरोध जताती रही हैं. हालांकि, उस दौरान वह इस प्रथा को रोकने के लिए कुछ नहीं कर पाईं. यही वजह थी कि वह अपनी बेटी को भी इससे नहीं बचा सकीं. लेकिन वह अब अपने कंजरभट समाज में इस प्रथा का विरोध जोरशोर से कर रही हैं. इस प्रथा के विरोध में लोगों के खड़े होने के बाद इस समाज में भी दो धड़े बंट गए है. खासकर जब विवेक टामईचिकर ने इस प्रथा के विरोध में लोगों को जागरूर करने के लिए एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया.