बार-बार हीमोग्लोबिन कम हो रहा है तो हो सकता है इस गंभीर बीमारी का खतरा, जानें इसके लक्षण
बार-बार हीमोग्लोबिन कम होने से ब्लड कैंसर और बोन मैरो कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा हो सकता है. आइए जानते हैं इसके बारे में ...
Blood Cancer : बार-बार हीमोग्लोबिन का स्तर कम होना एक गंभीर समस्या हो सकती है. हीमोग्लोबिन एक प्रोटीन होता है जो लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाता है और शरीर में ऑक्सीजन सप्लाई करता है. हीमोग्लोबिन का स्तर कम होना ब्लड कैंसर या बोन मैरो कैंसर एप्लास्टिक एनीमिया जैसी कुछ गंभीर बीमारियों का संकेत हो सकता है. हीमोग्लोबिन एक प्रोटीन होता है जो लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाता है और शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाता है. बार-बार हीमोग्लोबिन 12-13 ग्राम प्रति डेसीलीटर से कम रहना असामान्य होता है. आइए जानते हैं इसके बारे में
जानें कैसे होता है कैंसर
ब्लड कैंसर एक गंभीर बीमारी है जो ब्लड और बोन मैरो में होने वाले कैंसर को कहते हैं. यह एक छिपा हुआ कैंसर होता है जिसके लक्षण शुरुआत में नजर नहीं आते और जब लक्षण दिखना शुरू होते हैं तो अकसर कैंसर काफी फैल चुका होता है. ब्लड कैंसर के कुछ संकेत हैं - बिना किसी वजह के वजन कम होना, बुखार आना, रात को पसीना आना, लिम्फ नोड्स में सूजन, हड्डियों में दर्द और थकावट महसूस होना. अगर ब्लड के टेस्ट में बार-बार एनीमिया, ब्लड का कम बनना या ज्यादा इन्फेक्शन आने पर तुरंत ब्लड कैंसर की जांच करा लेनी चाहिए.
जानें क्यों होता है कैंसर
ब्लड कैंसर की शुरुआत आमतौर पर ब्लड या अस्थि मज्जा में मौजूद स्टेम कोशिकाओं में बदलाव से होती है. इन कोशिकाओं में जेनेटिक म्यूटेशन होने से वे अनियंत्रित ढंग से बढ़ने लगती हैं, जिसे ब्लड कैंसर का प्राइमरी इंफेक्शन कहते हैं. ये असामान्य कोशिकाएं तेजी से बढ़ती रहती हैं और सामान्य ब्लड कोशिकाओं की जगह ले लेती हैं, जिससे ब्लड की कमी, इन्फेक्शन और रक्तस्राव जैसी समस्याएं शुरू हो जाती हैं.
ब्लड में होने वाला कैंसर तीन प्रकार का होता है
- ल्यूकेमिया - यह सबसे आम प्रकार का ब्लड कैंसर है. इसमें श्वेत रक्त कोशिकाओं की अधिक वृद्धि होने लगती है.
- लिम्फोमा - यह लिम्फ नोड्स और लिम्फेटिक टिश्यूज में कैंसर के कारण होता है. इससे लिम्फोसाइट्स नामक श्वेत रक्त कोशिकाएं बेकाबू हो जाती हैं.
- मायलोमा - यह प्लाज्मा कोशिकाओं में कैंसर की वजह से होता है. प्लाज्मा कोशिकाएं एंटीबॉडीज बनाती हैं और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता से जुड़ी होती हैं.