किसी भी कंपनी में काम कर रहे लोग खुश रहें, अपने काम को ईमानदारी से करें और कंपनी तरक्की करती रहे...पूरा मकसद इसी पर है. हेल्थ और वेलनेस प्लान के जरिए कंपनियां इसी बात पर जोर देती हैं कि कर्मचारियों की सेहत बनी रहे और वो खुश रहें. स्ट्रेस उनसे दूर रहे और एंप्लाई अपनी सोशल लाइफ का बैलेंस बेहतर कर सकें. इसके लिए कंपनियां, एंप्लाई से जुड़े हेल्थ मैनेजमेंट, स्ट्रेस मैनेजमेंट, मेंटल हेल्थ थेरेपी, अच्छे वर्क प्लेस, हेल्दी फूड और रिवॉर्ड एंड इंसेंटिव को लेकर लगातार काम करती हैं. लेकिन सवाल ये है कि एंप्लाई के हेल्थ और वेलनेस प्लान का असर उसके काम में दिख रहा है या नहीं? ये कैसे पता चलता है.


HR की जिम्मेदारी बेहद अहम
जब भी कोई HR, कर्मचारियों के लिए हेल्थ और वेलनेस प्रोग्राम शुरू करता है तो पहले लोगों से बात करके ये समझने की कोशिश की जाती है कि आखिर कर्मचारियों के प्राइमरी मुद्दे क्या हैं? हर कंपनी और उसके वर्किंग नेचर के हिसाब से कर्मचारियों की समस्याएं अलग-अलग हो सकती हैं. उदाहरण के लिए



  • सेल्स के काम से जुड़ी कंपनी में टार्गेट पूरा करने का प्रेशर हो सकता है. इस प्रेशर से हो सकता है कर्मचारी अपने परिवार या सोशल लाइफ पर ध्यान न दे पा रहा हो.

  • प्रोडक्शन के काम से जुड़ी कंपनी में काम के घंटे, कम सैलरी जैसे मुद्दे हो सकते हैं जिसकी वजह से तनाव बढ़ता है.

  • IT कंपनियों में शिफ्ट 24 घंटे चलती हैं, ऐसे में एंग्जायटी या चिड़चिड़ाहट लोगों में बढ़ सकती है. हेल्थ की दिक्कतें हो सकती हैं.

  • मीडिया कंपनी के लिए न्यूज का प्रेशर बेहद होता है, तो कई बार परिवार के लिए समय निकालने में दिक्कत होती हैं.

  • कोरोना जैसी महामारी के दौरान, किसी भी कंपनी में अपने कर्मचारी और उसके परिवार को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी सबसे ऊपर हो जाती है.


इस तरह से हर कंपनी के कर्मचारियों की समस्याएं अलग होती हैं. अब जिम्मेदारी आती है HR पर, कि वह अपने कर्मचारियों से बात करके ये समझे कि हेल्थ और वेलनेस प्रोग्राम के जरिए कौन सी चीजों को पहले ठीक किया जाए. ताकि एंप्लाई, कंपनी से जुड़ाव महसूस कर सकें.


कैसे पता चलता है कि एंप्लाई को हेल्थ एंड वेलनेस प्रोग्राम का फायदा मिल रहा है
हेल्थ एंड वेलनेस प्रोग्राम न सिर्फ हेल्थ, बल्कि वर्क लाइफ और सोशल बैलेंस को बनाने में मदद करता है. फोर्ब्स में प्रकाशित 2018 के एक सर्वे के मुताबिक वेलनेस प्रोग्राम से कर्मचारियों का मनोबल बढ़ते ही उनकी आदतों में धीरे-धीरे सुधार होने लगता है. इन पॉइंट के जरिए आप इस बात को समझ सकते हैं.



  • काम में गलतियां कम हो जाती हैं

  • प्रोडक्टिविटी का लेवल बढ़ जाता है

  • जिन कामों को बार-बार टाला जा रहा हो, उनमें अच्छे नतीजे आते हैं

  • कई कर्मचारी जो देर से ऑफिस आते हैं, उनका समय पर आना बेहतर हो जाता है

  • गैरजरूरी छुट्टियां कम हो जाती हैं, उपस्थिति बढ़ जाती है

  • साथियों के प्रति, सीनियर्स के प्रति अगर व्यवहार रूड रहा हो तो उसमें सुधार आता है

  • कस्टमर की शिकायत कम हो जाती हैं

  • कंपनी से जुड़ाव बढ़ने लगता है


कैसे हेल्थ एंड वेलनेस प्रोग्राम कंपनी और कर्मचारियों को जोड़ता है
हेल्थ एंड वेलनेस प्रोग्राम निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है. कंपनी में किसी भी एंप्लाई के लिए हेल्थ से जुड़े इमरजेंसी ऑप्शन क्या है ये बताते रहना, उनके लिए स्ट्रेस मैनेजमेंट की क्लास रखना, उनके स्किल बेहतर करने के लिए कोर्स करवाना ये सभी चीजें एक जरूरी प्रक्रिया का हिस्सा हैं. इसके साथ ही कुछ और चीजें हैं जो कर्मचारियों को कंपनी से जोड़े रखने में मदद करती हैं.



  • अच्छा मैनेजर बनने की ट्रेनिंग

  • कर्मचारियों को फीडबैक और गाइडेंस देना

  • अच्छे और क्वालिफाइड मैनेजर हायर करना

  • शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म गोल अचीव करने पर रिवॉर्ड देना

  • कंपनी के भीतर ही पोटेंशियल जॉब के लिए ऑफर करना


जैसा कि हमने कहा कि एक कंपनी को बेहतर बनाने में उसके कर्मचारियों का ही योगदान होता है. इसलिए सबसे जरूरी है कि कंपनी, कर्मचारियों को समझे और उसके बाद ही अपने हेल्थ और वेलनेस प्रोग्राम को डिजाइन करें. नई-नई चीजें करें और उन्हें इंगेजिंग बनाएं. यकीनन इससे कंपनी की रिटेंशन और रिक्रूटमेंट प्रक्रिया बेहतरीन हो जाएगी.


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