मां को रहना होगा चिंता और डिप्रेशन से दूर, बच्चे हो सकते हैं भावनात्मक तनाव से ग्रस्त
एक रिसर्च में इस बात का खुलासा हुआ है कि चिंता और डिप्रेशन से जूझ रही मां के बच्चे बड़े होने पर भावनात्मक तनाव से ग्रस्त हो सकते हैं. रिसर्च में अपने बच्चे के स्वस्थ भविष्य के लिए माताओं को गर्भावस्था के दौरान कम तनाव लेने की सलाह दी गई है.
नई दिल्लीः एक ताजा अध्ययन में यह बात सामने आई है कि बच्चों के दिल की धड़कन पर उसकी मां के तनाव का बूरा असर पड़ सकता है. रिसर्च में सामने आया है कि चिंता और डिप्रेशन से जूझ रही मांओं के बच्चे बड़े होने पर भावनात्मक तनाव से ग्रस्त कर सकते हैं.
रिसर्च में अपने बच्चे के स्वस्थ भविष्य के लिए माताओं को गर्भावस्था के दौरान कम तनाव लेने की सलाह दी गई है. हाल ही के एक अध्ययन में पाया गया है कि चिंता और डिप्रेशन से जूझ रही माताओं के बच्चे मानक तनाव परीक्षण दिए जाने पर स्वस्थ माताओं के बच्चों की तुलना में काफी कमजोर होते हैं. शोधकर्ताओं ने पाया कि इन शिशुओं में दिल की धड़कन काफी बढ़ जाती है, जिससे बच्चे के बड़े होने पर उसे भावनात्मक तनाव हो सकता है.
बता देंक कि गर्भावस्था के दौरान और प्रसव से पहले के समय में मूड डिस्ऑर्डर संबंधी कई लक्षण जैसे चिड़चिड़ापन, बदलते मूड, हल्के डिप्रेशन आमतौर पर मांओं में देखे गए हैं. ऐसा 10-20% महिलाओं में होता है.वहीं बच्चे के जन्म के बाद शुरुआती महीनों में मां और बच्चे का परस्पर संपर्क स्वस्थ विकास में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है.
रिसर्च में यह बात सामने आई है कि जिन मांओं में विशेष रूप से डिप्रेशन, चिंता, और बच्चे के जन्म के बाद के डिप्रेशन से बच्चे के नकारात्मक काफी हद तक बढ़ जाती है. जो बच्चों में बढ़ती उम्र के साथ असुरक्षा का कारण माना जा सकता है.
एक अन्य रिसर्च में जर्मन शोधकर्ताओं ने पाया है कि उस अगर प्रसव के दौरान और बच्चे के जन्म के बाद मां अपने डिप्रेशन और चिंचा से ध्यान हटाती है तो चिंतित और उदास माताओं के बच्चों में हृदय गति में काफी कम रहती है. स्वस्थ माताओं के बच्चों की तुलना में डिप्रेशन का शिकार मां के बच्चों की दिल की धड़कन औसतन 8 बीट प्रति मिनट अधिक थी.
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