नई दिल्लीः डिलीवरी नॉर्मल होगी या सीजेरियन. पूरे नौ महीने तक गर्भवती महिला के घर में इसी पर चर्चा होती है. लेकिन अफसोस मुट्ठी भर महिलाओं को ही प्राकृतिक रूप से बच्चे के जन्म देने का सौभाग्य मिल पाता है. दरसअल, ऐसा होता है कुछ लालची डॉक्टर्स के चलते. आज हम ऐसे ही लालची डॉक्टर्स की पोल खोलने जा रहे हैं. एबीपी न्यूज ने नॉर्मल और सीजेरियन डिलीवरी पर पड़ताल की जो कि बेहद चौंकाने वाली थी. आप भी जानिए, इसके बारे में.


क्या कहते हैं नेशनल फैमिली हेल्थ के सर्वे-   नेशनल फैमिली हेल्थ (NFHS-4) सर्वे के मुताबिक, सरकारी अस्पतालों में जहां 10% सीजेरियन डिलीवरी होती है, वहीं प्राइवेट हॉस्पिटल्स में 31.1% डिलीवरी सीजेरियन होती हैं. ऐसे में प्राइवेट अस्पतालों में तीन गुना ज्यादा सीजेरियन डिलीवरी होती है.


आपके मन में सवाल उठेगा कि आखिर इसके पीछे क्या कारण हैं? तो आपको बता दें, NFHS-4 में स्वास्थ्य सेवाओं में निजीकरण के बढ़ते दबदबे और अस्पतालों की ज्यादा मुनाफा कमाने की नीति इसकी बड़ी वजह है. सीधे शब्दों में कहें तो निजी अस्पतालों ने जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी को कारोबार में बदल दिया है जो 23 हजार करोड़ से ज्यादा का है.


क्या कहते हैं आंकड़े- देश में 2.7 करोड़ बच्चे हर साल पैदा होते हैं. इन बच्चों में 17.2 फीसदी बच्चे सीजेरियन से पैदा होते हैं. इस तरह हर साल 46.44 लाख बच्चे सीजेरियन से पैदा होते हैं. वहीं अगर बात निजी अस्पताल में सीजेरियन डिलीवरी के औसत खर्चे की करें तो वो 50 हजार होता है. इस तरह 23,220 करोड़ रुपये सिर्फ सीजेरियन डिलीवरी से निजी अस्पताल कमा रहे हैं.


सेहत के नजरिए से नॉर्मल और सीजेरियन डिलीवरी में क्या फर्क होता है. इस बारे में एबीपी न्यूज़ ने दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल की गायनोकॉलोजिस्ट माला श्रीवास्तव ये बात की. डॉ. माला ने बताया कि सीजेरियन डिलीवरी के दौरान ब्लीडिंग हो सकती है. आपको इंफेक्शन हो सकता है. ऐसे में ये भी रिस्क रहता है कि दूसरी बार डिलीवरी भी सीजेरियन के जरिए हो. इसमें कोई शक नहीं कि सीजेरियन डिलीवरी के कई कॉम्पलीकेशंस होते हैं. यहां तक की एनेस्थेसिया कॉम्पलीकेशंस हो सकते हैं.


कुछ ये सवाल भी- इन सबसे अलावा कुछ सवाल उठते हैं कि पहले के मुकाबले सीजेरियन डिलीवरी बढ़ने का क्या कोई दूसरा कारण भी है? आखिर सरकारी अस्पतालों में ज्यादा नॉर्मल डिलीवरी क्यों होती हैं? सीजेरियन डिलीवरी बढ़ने का क्या कोई वैज्ञानिक और सामाजिक पहलू भी है? और ये किस आधार पर तय होता है कि डिलीवरी नॉर्मल होगी या सीजेरिन?


क्या कहती हैं डॉक्टर- इन सवालों के जवाब में नोएडा हॉस्पिटल के मेट्रो अस्पताल की गायनोकॉलोजिस्ट डिपार्टमेंट हेड बेला रविकांत का कहना है कि फीजिकल वर्क कम हो गया है. महिलाएं 3 से 4 घंटे तक लैपटॉप में बैठी रहती हैं. वजन बढ़ जाता है. महिलाएं हेल्दीव फूड्स नहीं खाती. महिलाओं की उम्र. इन सभी के कारण उनकी बॉडी में फ्लैक्सिबिलिटी भी कम हो जाती है. उनका मोमेंट बहुत अधिक नहीं होता. बेबी का हेड ठीक से डवलप नहीं हो पाता जिससे बच्चे की डिलीवरी आसानी से नहीं हो पाती.


आंकड़ों में पाया गया कि जिन राज्यों में साक्षरता दर ज्यादा है वहां पर सीजेरियन के जरिए ज्यादा बच्चे पैदा किए जा रहे हैं.


सीजेरियन डिलीवरी को लेकर डॉ. के तर्क- माला श्रीवास्तव का कहना है कि कोई परिवार नहीं चाहता कि बच्चे या मां को कोई तकलीफ हो. जैसे ही लगता है कि मां या बच्चे को कोई तकलीफ हो रही है तो सीजेरियन की सलाह दी जाती है. अब फैमिली भी सीजेरियन के लिए आसानी से तैयार हो जाती है. डॉ. माला बताती हैं कि कई सिचुएशंस में प्रेग्‍नेंसी 32-33 वीक्स में ही टर्मिनेट करनी पड़ती है. इससे मां भी सेफ रहती है और बच्चे भी. ऐसे में बच्चे और मां की मृत्युदर भी कम हुई है.


WHO के आंकड़ें- विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, 2010 तक देश में सिर्फ 8.5 फीसदी सीजेरियन डिलीवरी होती थीं. इसमें सरकारी और निजी अस्पताल शामिल हैं. जो 2015-16 में बढ़कर 17.2 फीसदी हो गया है. जबकि इसे 10 से 15 फीसदी के बीच ही होना चाहिए.


ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर 5-6 सालों में ऐसा क्या हो गया जिसने सीजेरियन डिलीवरी के मामलों को बढ़ा दिया. इस सवाल के जवाब में दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल की गायनोकॉलोजिस्ट हेड डॉ. पुष्पा सिंह का कहना है कि लोगों में सब्र नहीं है उन्हें जल्दी रिजल्ट चाहिए. कुछ लोग मां को तड़पता हुआ नहीं देखते और जल्दी डिलीवरी करने के लिए सीजेरियन की रिक्वेस्ट करते हैं. जबकि कुछ लोगों को एक खास डेट पर ही बच्चा चाहिए होता है. इन कारणों से भी सीजेरियन डिलीवरी बढ़ रही है.


ऑपरेशन से हुए बच्चों को होती हैं ये बीमारियां- कई स्टडी में भी ये बात साबित हो चुकी है कि नॉर्मल डिलीवरी से पैदा हुए बच्चे ज्यादा सेहतमंद होते हैं. सीजेरियन डिलीवरी से पैदा हुए बच्चों में मोटापे, एलर्जी और टाइप वन डायबिटीज होने का खतरा ज्यादा होता है.


स्वास्थ्य मंत्रालय के डायरेक्टर जनरल डॉ. जगदीश प्रसाद का कहना है कि पैसों के लिए सीजेरियन डिलीवरी रोकने के लिए दोनों तरह की डिलीवरी का खर्चा एक समान या इनके बीच बहुत कम अंतर कर दिया जाएं तो ये बेहद फायदेमंद हो सकता है.