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Parenting Tips : बच्चों के ओवरऑल डेवलपमेंट के लिए दादा-दादी के साथ समय बिताना क्यों जरूरी है? जानें
आजकल रिश्ते कमजोर होने लगे हैं. दादा-दादी के साथ बच्चे समय नहीं बिता पाते और उनके वो डेवलपमेंट नहीं हो पाता, जो होना चाहिए. इसलिए बच्चों को ज्यादा से ज्यादा समय दादा-दादी के पास बिताना चाहिए.

दादा-दादी के पास समय बिताने के फायदे
Source : Freepik
Parenting Tips : आजकल वर्किंग पैरेंट्स, बिजी शेड्यूल और बदलती लाइफस्टाइल के चलते दादा-दादी से बच्चों का कनेक्शन उस ढंग से नहीं बन पा रहा है. बच्चे ग्रैंड पैरेंट्स के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पा रहे हैं. पढ़ाई, खेलकूद, एक्टिविटीज और मोबाइल में बिजी रहने के चलते दादा-दादी के साथ बच्चे ज्यादा देर तक नहीं रह पा रहे हैं. दादा दादी बच्चों की लाइफ का अहम हिस्सा होते हैं. उनके साथ रहकर बच्चे काफी कुछ सीख सकते हैं और उनकी पर्सनालिटी काफी अच्छी होती है. उनकी लाइफ को ग्रो करने में दादा-दादी की सीख काफी काम आती है. आइए जानते हैं बच्चों को दादा-दादी के साथ समय क्यों बिताना चाहिए...
कल्चर को सीखते हैं बच्चे
दादा-दादी के साथ जब बच्चे ज्यादा समय बिताते हैं तो उन्हें अपने परिवार को समझने का मौका मिलता है. रीति-रिवाज और कल्चर को सीख पाते हैं. दादा-दादी का अनुभव बच्चों के काम आता है. उनके साथ बच्चे त्योहार मनाने और रिश्तेदारों के बारें में जान पाते हैं.
बच्चे संस्कारी होते हैं
दादा-दादी के साथ रहकर बच्चे संस्कार सीखते हैं. बड़ों का आदर करना, छोटों से प्यार करना, नियमित तौर पर भगवान की पूजा-अर्चना और परंपराओं को समझ पाते हैं, यह उन्हें अच्छा इंसान बनाने में मदद करती हैं.
दादा-दादी की कहानियां
आजकल के कम बच्चे ही दादा-दादी की कहानियां सुन पाते हैं. दादा दादी जो कहानियां सुनाते हैं, जो कविताएं कहते हैं उसका असर बच्चों की पर्सनालिटी पर पड़ता है. उन्हें मोरल वैल्यूज समझ आते हैं और भविष्य सुंदर बनता है.
खुद को एक्सप्रेस कर बाते हैं बच्चे
कुछ बातें पैरेंट्स को बताने से बच्चे कतराते हैं लेकिन दादा-दादी से वे खुलकर अपनी बात बता देते हैं. इससे वे किसी भी मुश्किल स्थिति से बाहर निकल आते हैं. जिससे बच्चे तनाव में नहीं आते और हमेशा खुश रहते हैं.
गुम-सुम नहीं होते अकेलापन दूर होता है
दादा-दादी के पास टाइम स्पेंड करने से बच्चे अपनी बातें शेयर करते हैं. इससे उन्हें एक दोस्त मिल जाता है और वे खुद को अकेला नहीं महसूस करते हैं. इससे बच्चे गुम-सुम नहीं हो पाते और इमोशनली मजबूत भी होते हैं. उनकी सोच पॉजिटिव होती है. जब बिजी होने के चलते पैरेंट्स बच्चों को समय नहीं दे पाते, तब दादा-दादी उस कमी को पूरी करते हैं.
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नयन कुमार झाराजनीतिक विश्लेषक
Opinion