बच्चों की परवरिश में मां के साथ-साथ पिता का भी बड़ा योगदान होता है. अध्ययनों से पता चलता है कि जहां मां और पिता दोनों मिलकर अनुशासन बनाए रखते हैं, वहां बच्चे भी अनुशासित होते हैं और उनका आत्मविश्वास भी बढ़ता है. जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, पिता की भी कुछ खास जिम्मेदारियां होती हैं. 


मनोवैज्ञानिक प्रभाव
बाल मनोवैज्ञानिक का कहना है कि मां चाहे कितनी भी मेहनत क्यों न करें, कुछ बातें ऐसी होती हैं जो सिर्फ पिता ही अपने बच्चों को सिखा सकते हैं. इसमें पिता का तरीका और सोच शामिल होती है. बच्चे अक्सर अपने पिता को देखकर सीखते हैं और उनकी नकल करते हैं. पिता का व्यवहार और उनके नजरिए से बच्चों को बहुत कुछ सीखने को मिलता है, जैसे कि जिम्मेदारी लेना, दृढ़ निश्चयी होना और सही फैसले कैसे लें. 

साइलेंट लर्निंग
जब बच्चे अपने पिता को जिम्मेदारी से काम करते और परिवार को संभालते देखते हैं, तो वे भी वही सीखते हैं. बच्चे देखते हैं कि कैसे प्यार और जिम्मेदारी के साथ काम करना चाहिए. इससे वे भावनात्मक रूप से मजबूत होते हैं. वे समझते हैं कि कठिन समय में भी परिवार को कैसे संभालना है. इस प्रकार, पिता का व्यवहार उनके लिए एक महत्वपूर्ण सीख बन जाता है. 

बच्चों के साथ संवाद
जब बच्चे किशोर होते हैं, उनके शरीर में बहुत सारे बदलाव होते हैं. यह समय उनके लिए और आपके लिए भी थोड़ा मुश्किल हो सकता है. इसलिए उन्हें यह समझाना जरूरी है कि ये सभी बदलाव सामान्य हैं. आपको भी यही अनुभव हुए थे. उनके वजन के बढ़ने या घटने पर उन्हें ताने न दें. इससे उन्हें सकारात्मक सहारा मिलेगा और वे खुद को समझ पाएंगे.


अच्छा उदाहरण बनें
बच्चे अपने पिता की नकल करते हैं और उनसे सीखते हैं. इसलिए, पिता के लिए यह जरूरी है कि वे हमेशा अच्छे व्यवहार की मिसाल बनें. जब पिता अच्छे से पेश आते हैं, समझदारी से बात करते हैं, और सभी का ख्याल रखते हैं, तो बच्चे भी यही आदतें सीखते हैं. इस तरह, पिता अपने बच्चों को अच्छा इंसान बनने की राह दिखाते हैं. यह बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण सीख होती है. 

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