फिल्म पुष्पा में इंस्पेक्टर भंवर सिंह शेखावत का किरदार निभाने वाले मलयालम एक्टर फहाद फाजिल एडीएचडी यानी अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर से जूझ रहे हैं. वह बचपन में ही इस खतरनाक डिसऑर्डर की चपेट में आ गए थे. दरअसल, यह डिसऑर्डर पांच से नौ साल के बच्चों में तेजी से फैलता है. अगर आप बच्चे को इससे बचा नहीं पाए तो उसे ताउम्र इसका खमियाजा भुगतना पड़ता है. आइए आपको बताते हैं कि अगर आपका बच्चा भी एडीएचडी से जूझ रहा है तो उसे कैसे संभाल सकते हैं? ये ट्रिक्स आपके काफी काम आएंगे.
माइंडफुल ब्रीदिंग बेहद काम की
अगर आपका बच्चा एडीएचडी से जूझ रहा है तो आपको उसके ब्रीदिंग पैटर्न पर काम करने की जरूरत है, जिससे वह चीजों को आसानी से समझना और रिलैक्स रहना सीख पाएगा. बटरफ्लाई लर्निंग्स से डॉ. सोनम कोठारी ने बताया कि पैरेंट्स और टीचर्स को बार-बार यह प्रैक्टिस बच्चे को करानी होगी, जिससे वह खुद को संभालना सीख सके. दरअसल, ऐसे बच्चों को कोई भी एक्टिविटी करने से पहले गहरी सांस लेने की प्रैक्टिस के बारे में बताना होगा. सांस लेने और सांस छोड़ने की प्रक्रिया के दौरान बच्चा यह सीख पाएगा कि उसे अपने इमोशंस पर कैसे काबू रखना है और अपने टारगेट पर किस तरह फोकस करना है.
S.T.O.P टेक्निक भी कमाल की
अगर ब्रीदिंग तकनीक से बच्चा इमोशंस पर काबू रखना और चीजों पर फोकस करना सीखता है तो स्टॉप टेक्निक की मदद से वह अच्छी तरह सोच-समझकर फैसले लेने को लेकर एक्टिव होता है. इसके लिए बच्चे को सिखाएं कि अगर वह कोई एक्टिविटी कर रहा है तो खुद को रोक ले. इसके बाद वह गहरी सांस ले और तीन तक गिनती गिने. इसके बाद सांस धीरे-धीरे छोड़ दे. उसका पूरा फोकस सांस लेने और छोड़ने पर होना चाहिए. इसके बाद बच्चा चीजों को ऑब्जर्व करे और उन्हें अच्छी तरह समझे. जब ये तीनों प्रोसेस पूरे हो जाएं तो वह अपने अगले कदम के बारे में अच्छी तरह सोचे, फिर आगे का काम करे.
ये मेडिटेशन भी बच्चे के लिए जरूरी
एडीएचडी से जूझ रहे बच्चे को धीरे-धीरे वॉक करने के लिए कहें. इस दौरान वह अपनी हर सांस और कदम पर फोकस करे. इससे पीड़ित बच्चों को अपनी सांस और एक्टिविटी के साथ तालमेल बैठाने में मदद मिलती है. इस प्रोसेस को वॉकिंग मेडिटेशन कहते हैं. इसके अलावा सिटिंग मेडिटेशन भी होता है, जिसमें पीड़ित बच्चे को कुछ समय के लिए एकदम शांति के साथ बैठने और ध्यान लगाने के लिए कहें. इस दौरान वह खुद को जैसे पेट में आ रहे उतार-चढ़ाव को महसूस करने की कोशिश करे. इस प्रैक्टिस से बच्चे अपने टारगेट से उस वक्त दोबारा जुड़ना सीखते हैं, जब उनका दिमाग अचानक भटक जाता है. इसके अलावा बच्चे को योग करना भी सिखाएं, जिससे काफी मदद मिलती है.
यह भी पढ़ें: टीनएजर्स पर कितनी रोक-टोक लगाना सही, जानें उन्हें कैसे दिया जाए 'स्पेस'?