दुनिया के सबसे खूबसूरत रिश्तों की बात हो और मां-बेटी के रिश्ते का जिक्र न हो, ऐसा होना नामुमकिन है. यह रिश्ता सिर्फ प्यार और विश्वास ही नहीं, बल्कि दोस्ती पर भी टिका होता है. बेटी के लिए मां ही उसकी पहली गुरु भी होती है. आइए आपको बीजेपी की दिवंगत नेता सुषमा स्वराज और उनकी बेटी बांसुरी स्वराज का हवाला देते हुए बताते हैं कि मां-बेटी का रिश्ता कैसा होना चाहिए?


मां-बेटी को खुलकर करनी चाहिए बातचीत


सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी स्वराज इस वक्त सुर्खियों में हैं, क्योंकि वह नई दिल्ली लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में ताल ठोंक रही हैं. बता दें कि बांसुरी पहली बार चुनावी मैदान में हैं और उन्होंने अपने इंटरव्यू में अपनी दिवंगत मां का जिक्र किया. बांसुरी बताती हैं कि मां उनसे हर मसले पर एकदम खुलकर बात करती थीं, जिसकी वजह से वह यहां तक पहुंच सकीं. आपको भी अपनी बेटी से हर मसले पर खुले मन से बात करनी चाहिए, जिससे आपका बॉन्ड काफी ज्यादा मजबूत होगा.


थोड़ी गरम तो थोड़ी नरम रहना जरूरी


बांसुरी की मानें तो उनकी मां के कुछ नियम बेहद सख्त थे. बांसुरी के घर में एक नियम था कि उन्हें सुषमा स्वराज से हिंदी तो अपने पिता स्वराज कौशल से अंग्रेजी में बात करनी होती थी, जिसके चलते बांसुरी दोनों ही भाषाओं की जानकार हो गईं. अगर आप अपनी बेटी को काबिल बनाना चाहती हैं तो कुछ मामलों में आपको सख्त होना चाहिए. हालांकि, सख्ती इतनी ज्यादा भी नहीं हो कि बेटी बागी होने लगे. यह बात गौर करने लायक है कि बेटी के साथ दोस्ताना व्यवहार भी रखना चाहिए, जिससे वह अपने मन की बात आसानी से आपसे कह सके.


बेटी का हर वक्त दें साथ


बांसुरी की जिंदगी में एक वक्त ऐसा भी आया था, जब उनका नाम विवादों में आ गया था. दरअसल, बांसुरी स्वराज आईपीएल के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी की लीगल टीम में थीं. ललित मोदी ने उस वक्त ट्विटर (अब एक्स) पर आठ लोगों को टैग करके बधाई दी थी, जिनमें बांसुरी भी शामिल थीं. बांसुरी के लिए यह काफी बुरा दौर था, जिसके बाद सुषमा स्वराज उनके पक्ष में उतर आई थीं. उन्होंने ट्वीट करके ट्रोल्स को लताड़ा था और कहा था कि बांसुरी वकील हैं और वह अपना काम कर रही थीं. इसके अलावा वह किसी को नहीं जानती थीं. अगर आपकी बेटी भी किसी तरह की मुसीबत में हो तो आपको हर हाल में उसका साथ देना चाहिए. इससे मां-बेटी का ऐसा रिश्ता बनेगा, जिसकी मिसाल हर कोई देगा.


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