आजकल के बच्चे बहुत कम उम्र में ही बड़े हो जा रहे हैं. इसकी एक बड़ी वजह यह है कि पेरेंट्स उनके बचपन को समय से पहले ही छीन रहे हैं. कई पेरेंट्स अपने बच्चों पर पढ़ाई, एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज और दूसरी जिम्मेदारियों का इतना दबाव डाल देते हैं कि उनके पास खेलने-कूदने और अपने बचपन का आनंद लेने का समय ही नहीं बचता. लेकिन क्या आपको पता है कि इस बोझ से बच्चों पर कितना प्रेशर होता है? वे अपना बचपन जी ही नहीं पाते. 


एक्सपर्ट्स की राय
मनोवैज्ञानिक और शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों को उनका बचपन जीने का पूरा हक है. उनका मानना है कि बचपन में खेलकूद और मस्ती करने से बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हैं. इसके अलावा, इससे उनका सामाजिक विकास भी बेहतर होता है. कई पेरेंट्स चाहते हैं कि उनका बच्चा हर क्षेत्र में सबसे आगे रहे. इसी चाहत में वे अपने बच्चों पर कम उम्र से ही बहुत ज्यादा जिम्मेदारियां और उम्मीदें लाद देते हैं. यह सही नहीं है.


पेरेंट्स को नहीं करना चाहिए यह काम 
बच्चों की मनोवैज्ञानिक और शारीरिक क्षमता उतनी नहीं होती कि वे सभी चीजों को बखूबी निभा सकें. ज्यादा प्रेशर देने से वे मानसिक तनाव का शिकार हो सकते हैं. उनके खेलने-कूदने और बचपन का आनंद लेने का समय कम हो जाता है. जब बच्चे हर वक्त पढ़ाई और अन्य गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं, तो उनकी रचनात्मकता और खुश रहने की क्षमता पर असर पड़ता है. उन्हें उनके बचपन को जीने का पूरा मौका मिलना चाहिए. खेलकूद, मस्ती और दोस्ती में बिताया गया समय उनके संपूर्ण विकास के लिए बेहद जरूरी है. पेरेंट्स को चाहिए कि वे बच्चों को बिना दबाव के, आराम से और उनकी रुचियों के अनुसार चीजें सिखाएं. इससे बच्चे न सिर्फ खुश रहेंगे, बल्कि उनका विकास भी बेहतर तरीके से होगा. 


पेरेंट्स क्या कर सकते हैं?



  • खेलने का समय दें: बच्चों को रोज कुछ समय खेलने और मस्ती करने के लिए दें.

  • बिना दबाव के पढ़ाई: बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करें, लेकिन उन पर ज्यादा दबाव न डालें.

  • संतुलित दिनचर्या: बच्चों की दिनचर्या में पढ़ाई, खेल और आराम सभी को शामिल करें.

  • बच्चों से बात करें: उनसे उनकी पसंद-नापसंद और परेशानियों के बारे में बात करें.


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