कौन छीन रहा जुगनुओं की जिंदगी, उनके अस्तित्व पर क्यों मंडरा रहा खतरा?
एक स्टडी के अनुसार, इंसानों ही नहीं जुगनुओं पर भी प्रदूषण से खतरा मंडरा रहा है. इससे उनका अस्तित्व संकट में आ गया है. यही कारण है कि शहरों ही नहीं अब गांवों में भी इन टिमटिमाते कीटों की संख्या घट गई.
Fireflies and Pollution : जुगनुओं की टिमटिमाहट देख ऐसा लगता है मानो धरती पर तारे उतर आए हैं. आपने कई बार इन्हें पकड़ने की कोशिश भी जरूर की होगी. यूं तो जुगनू शहरों में कम ही दिखाई पड़ते हैं लेकिन अब गांवों में भी इनकी संख्या कम होती जा रही है. रात में झाड़ियों के झुरमुट और पेड़ों पर चमकने वाले इन छोटे कीटों (Fireflies) के अस्तित्व पर अब खतरा मंडरा रहा है. इसका कारण प्रदूषण और हरियाली कम होना है. एक रिसर्च में इसे लेकर बेहद चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. आइए जानते हैं इस रिसर्च के बारें में...
इस वजह से कम हो रहे जुगनू
बायो इंडिकेटर्स में से एक जुगनू रात में चमकते हैं. देखने में पतले और चपटे स्लेटी रंग के होते हैं. इनकी आंखें बड़ी और पैर छोटे-छोटे होते हैं. दो छोटे-छोटे पंख की मदद से ये उड़ते हैं. जुगनू जमीन अंदर और पेड़ों की छालों में अंडे देते हैं. यह मुख्य रूप से वनस्पति और छोटे कीटों को खाते हैं. जुगनू हमारे फल-सब्जियों को कीटों से बचाने का भी काम करते हैं. हालांकि, इन पर भी प्रदूषण का खतरा बढ़ रहा है, जो इनके अस्तित्व को खत्म कर रहा है.
क्या कहती है रिसर्च
जुगनुओं को लेकर अभी तक ज्यादा रिसर्च नहीं हुए हैं. भारतीय वन्य जीव संस्थान (WII) ने इस पर एक स्टडी की है. संस्थान के शोधकर्ताओं ने SGRR यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर इस तरह का पहला रिसर्च पेपर पब्लिश किया है. दून घाटी में किए गए शोध में पाया गया है कि शहरी क्षेत्र में जुगनुओं की संख्या वन्य क्षेत्रों की तुलना में काफी कम हो गया है.
बढ़ता प्रदूषण और कम हरियाली इसके लिए जिम्मेदार है. ये रिसर्च पेपर रिसर्च स्कॉलर निधि राणा ने भारतीय वन्य जीव संस्थान के तत्कालीन वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. वीपी उन्याल और SGRR यूनिवर्सिटी के जन्तु विज्ञान के विभागाध्यक्ष डॉ. रयाल के मार्गदर्शन में किया है. शोध को देश के प्रतिष्ठित इंडियन फॉरेस्टर जनरल में पब्लिश किया गया है.
जुगनुओं की 6 प्रजातियों पर मंडरा रहा खतरा
निधी राणा के अनुसार, दून घाटी में जुगनुओं 6 प्रजातियां पाई गई हैं. जहां जुगनुओं की संख्या शहरों से काफी ज्यादा है. शहरी क्षत्र में जुगनुओं की संख्या वन्य क्षेत्रों के मुकाबले न के बराबर हैं. इससे पता चलता है कि बढ़ते प्रदूषण और घटती हरियाली के कारण जुगनुओं के अस्तित्व पर संकट है. अगर यही स्थिति बनी रहती है तो आने वाली पीढ़ी जुगूनुओं को नहीं देख पाएगी.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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