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पोंगल 2018: पोंगल को थाई पोंगल के नाम से भी जाना जाता है, इसलिए मनाते हैं ये पर्व

नई दिल्ली: लोहड़ी के ठीक एक दिन बाद आता है मकरसक्रांति और पोंगल पर्व. तो चलिए जानते हैं कैसे मनाया जाता है पोंगल पर्व. साथ ही ये भी जानिए, क्या होता है पोंगल पर्व, कौन लोग इसे मनाते हैं और आज के समय में इसकी क्या महत्ता है.

तमिलियंस का पर्व है थाई पोंगल-   तमिल हिन्दुओं का पोंगल पर्व आमतौर पर 14 और 15 जनवरी से शुरू होता है. पोंगल पर्व चार दिन का फसल की कटाई का उत्सव है जो कि दक्षिण भारत और मुख्यतौर पर तमिलनाडू में मनाया जाता है. पोंगल तमिलियंस का सबसे महत्‍वपूर्ण त्यौहार होता है. तमिल में पोंगल को थाई पोंगल के नाम से भी जाना जाता है. पोंगल पर्व का दिन बहुत शुभ माना जाता है और ये बहुत हर्षोल्लास से मनाया जाता है.

गुडलक मंथ- थाई का मंथ यानि इस महीने को गुडलक मंथ माना जाता है और इसके आने से सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं. रोजाना ये फेस्टिवल अलग-अलग रीति-रिवाजों से अलग-अलग जगह मनाया जाता है.

कृषि-त्यौहार पोंगल- पोंगल को चावल, अनाज और अन्य-फसलों के तौर पर कृषि-त्यौहार के रूप में मनाया जाता है. इस महीने में तमिल में लोग शादी करना शुभ मानते हैं.

दुनियाभर में पोंगल का सेलिब्रेशन- इस पर्व का इतिहास कम से कम 1000 साल पुराना है. पोंगल को तमिलनाडु के अलावा देश के अन्य भागों, श्रीलंका, मलेशिया, मॉरिशस, अमेरिका, कनाडा, सिंगापुर के साथ ही अन्य कई स्थानों पर रहने वाले तमिलों द्वारा उत्साह से मनाया जाता है.

चार दिन का पर्व पोंगल- पोंगल के महत्व का अंदाज़ा इसी बात से भी लगाया जा सकता है कि ये चार दिनों तक चलने वाला है और हर दिल अलग-अलग नाम से सेलिब्रेट किया जाता है.

भोगी पोंगल- पहले दिन के पोंगल पर्व को भोगी पोंगल के नाम से जाना जाता है. इसके नाम के पीछे एक पौराणिक हिंदू कथा है. कथा के मुताबिक, पोंगल के पहले दिन को भोगी पोंगल इसलिए कहा जाता है क्योंकि देवराज इन्द्र भोग विलास में मस्त रहने वाले देवता माने जाते हैं.

इस दिन शाम के समय लोग अपने घरों से पुराने कपड़े और कूड़ा एक जगह लाकर इकट्ठा करते हैं और जलाते हैं. भोगी पोंगल भगवान के प्रति सम्मान और बुराईयों के अंत की भावना को दर्शाता है. भोगी पोंगल के दिन लोग आग के चारों और इकट्ठा होकर रात भर भोगी कोट्टम बजाते हैं जो भैस की सिंग काबना एक प्रकार का ढ़ोल होता है.

सूर्य पोंगल- दूसरे दिन के पोंगल पर्व को सूर्य पोंगल के नाम से जाना जाता है. दूसरे दिन का पोंगल भगवान सूर्य को समर्पित होता है. दूसरे दिन पोंगल नामक एक स्पेशल खीर बनाई जाती है जो कि नए धान से तैयार चावल, मूंगदाल और गुड से बनती है. इस खीर को खासतौर पर मिट्टी के बर्तन में बनाया जाता है. पोंगल खीर तैयार होने के बाद सूर्य देव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और उन्हें प्रसाद रूप में ये पोंगल और साथ ही गन्ना अर्पण किया जाता है और फसल देने के लिए धन्यवाद दिया जाता है.

मट्टू पोंगल- तीसरे दिन के पोंगल पर्व को मट्टू पोंगल के नाम से सेलिब्रेट किया जाता है. मट्टू पोंगल को केनू पोंगल के नाम से भी जाना जाता है. तीसरे दिन के पोंगल की भी हिंदू तमिल मान्यताओं में एक कथा है. कथा के मुताबिक, मट्टू भगवान शंकर का बैल है जिसे एक गलती की वजह से भगवान शंकर ने धरती पर रहकर इंसानों के लिए अन्न पैदा करने के लिए कहा और तब से ही बैल धरती पर रहकर कृषि कार्य में इंसान की सहायता कर रहा है. पोंगल के तीसरे दिन सभी किसान अभी बैलों को नहलाते हैं. उनके सिंगों में तेल लगाते हैं और अपने बैलों को सजाते हैं. इसके बाद इनकी पूजा की जाती है. बैलों के अलावा मट्टू पोंगल के दिन बछड़ों और गाय की भी पूजा की जाती है. इसके अलावा केनू पोंगल भाई-बहनों के त्यौहार के रूप में भी सेलिब्रेट किया जाता है. भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं.

कन्या पोंगल- पोंगल के आखिरी दिन यानि चौथें दिन के पोंगल को कन्या पोंगल के नाम से जाना जाता है. इसे लोग तिरूवल्लूर के नाम से भी जानते हैं. आखिरी दिन घर को अच्छी तरह से डेकोरेट किया जाता है. लोग आम और नारियल के पत्तों से घर के मेन गेट को सजाते हैं. महिलाएं घर के बाहर रंगोली बनाती है. पोंगल पर्व के आखिरी दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं. एक-दूसरे के घर मिठाई देने जाते हैं. कन्या पोंगल के दिन बैलों की लड़ाई भी करवाई जाती है जिसे जलीकट्टू के नाम से जाना जाता है.

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