वक्त से पहले डिलीवरी होने से मां के स्ट्रोक बढ़ने का होता है खतरा, रिसर्च से हुआ खुलासा
पूर्ण गर्भावस्था का समय 40 सप्ताह के करीब होता है, जबकि 37 सप्ताह से पहले डिलीवरी को वक्त से पहले जन्म समझा जाता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि बच्चे का जन्म जितना जल्दी, मां को स्ट्रोक का खतरा उतना ही ज्यादा होगा.
ये हैरानी की बात नहीं है कि वक्त से पहले जन्मे बच्चों को ज्यादा स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है. लेकिन नए रिसर्च के मुताबिक समान असर उनकी मां पर भी हो सकता है. अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन जर्नल सर्कुलेशन में प्रकाशित रिसर्च में बताया गया है कि जिन महिलाओं की डिलीवरी वक्त से पहले होती है, उनको स्ट्रोक का ज्यादा खतरा होता है.
समय से पहले डिलीवरी महिलाओं को बढ़ाती है स्ट्रोक का खतरा
शोधकर्ता डॉक्टर केसी क्रम्प कहते हैं, "मैं निश्चित नहीं हूं कि इसके बारे में बहुत ज्यादा जागरुकता है." पूर्ण गर्भावस्था का समय 40 सप्ताह के करीब होता है, जबकि 37 सप्ताह से पहले डिलीवरी को वक्त से पहले जन्म समझा जाता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि पूर्व के रिसर्च में वक्त से पहले डिलीवरी और स्ट्रोक के साथ हाई ब्लड प्रेशर के बीच संबंध का संकेत मिला था, जो स्ट्रोक का प्रमुख जोखिम कारक है. इसलिए उनकी दिलचस्पी आगे रिसर्च करने में पैदा हुई.
न्यूयॉर्क सिटी के आईकैन स्कूल ऑफ मेडिसीन के शोधकर्ताओं ने स्वीडन से डेटा हासिल किया. ये लगभग 22 महिलाओं पर रिसर्च का नतीजा था जिन्होंने 1973 और 2015 के बीच बच्चों को जन्म दिया था. शोधकर्ताओं ने डेटा का विश्लेषण कर पता लगाया कि इस दौरान महिलाओं को स्ट्रोक का सामना हुआ. रिसर्च के अंत में 36,372 प्रतिभागी (1.7 फीसद) स्ट्रोक के दौर से गुजरीं. स्ट्रोक के जोखिम कारक जैसे धूम्रपान, मोटापा और डायबिटीज को मद्देनजर रखते हुए शोधकर्ताओं ने पाया कि वक्त से पहले जन्म के चलते महिलाओं में स्ट्रोक की संभावना 42 फीसद तक बढ़ गई.
जल्दी डिलीवरी से स्ट्रोक का भी बढ़ता है उतना खतरा-रिसर्च
रिसर्च से नतीजा निकला कि प्रेगनेन्सी के दौरान जितना जल्दी डिलीवरी होगा, स्ट्रोक का खतरा उतना ही बढ़ेगा. शोधकर्ताओं ने बताया कि ऐसी महिलाओं को स्ट्रोक का खतरा डिलीवरी के 10 साल बाद सबसे ज्यादा होता है, लेकिन बाद में 40 साल तक संभावना बनी रहती है. उन्होंने बताया कि उनके लिए सबसे ज्यादा हैरतअंगेज खोज ये थी कि ये खतरा कितने लंबे समय तक बरकरार रहता है. उनका कहना था कि रिसर्च के नतीजे इस्कीमिक स्ट्रोक और रक्तस्रावी स्ट्रोक दोनों पर लागू होते हैं.
उन्होंने कहा कि आगे रिसर्च में ऐसे सवालों के जवाब तलाश किए जा सकते हैं जो हमारे रिसर्च से स्पष्ट नहीं होते, मिसाल के तौर पर समय से पहले जन्म से स्ट्रोक का खतरा क्यों बढ़ता है. उनकी सलाह है कि डॉक्टरों को चाहिए कि महिलाओं का मार्गदर्शन करें और बताएं कि उन्हें स्वस्थ डाइट, शारीरिक गतिविधि में शामिल और स्मोकिंग से दूर रहें और हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और हाई कोलेस्ट्रोल की पहचान के लिए नियमित चेकअप कराएं, ताकि संकेत मिलने पर स्ट्रोक के खतरे को कम करने के लिए रोकथाम संबंधी इलाज शुरू किया जा सके.
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