समाज से कोई भी हमेशा के लिए अलग-थलग नहीं रह सकता है. लेकिन कोरोना वायरस महामारी ने लोगों को दूर रहने पर मजबूर कर दिया है. घरों में रहने से उनका दोस्तों, परिचितों या सहकर्मियों से साक्षात बातचीत का दायरा सीमित हो गया है. इसका नतीजा उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है.


समाज से अलग-थलग रहने के क्या हो सकते हैं परिणाम?


अमेरिकन जर्नल ऑफ साइकेट्री में प्रकाशित एक शोध में लोगों के स्वभाव और व्यवहार पर खुलासा हुआ है. शोध में बताया गया है कि परिवार और दोस्तों से दूर रहकर स्वास्थ्य पर किस तरह के गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं. दावा किया गया है कि खुद को सामाजिक तौर पर अलग-थलग रखने से मानसिक बीमारी जैसे डिप्रेशन में इजाफा हो सकता है. ये जानकारी महामारी के दौर के लिए बिल्कुल प्रासंगिक है.


शोध के मुताबिक सामाजिक संबंधों की बहाली और बराबर मेल-मिलाप जैसे दोस्तों और परिजनों से मुलाकात डिप्रेशन का खतरा कम कर सकता है. इसके अलावा किसी शख्स के मूड को सकारात्मक ढंग से प्रभावित भी कर सकता है. शोधकर्ताओं ने ‘मेंडेलियन रेंडोमाइजेशन’ तकनीक का इस्तेमाल करते हुए मूड को प्रभावित करनेवाले प्रमुख कारकों को समझने की कोशिश की. उन्होंने बताया कि मूड के ज्यादा खराब होने की सूरत में डिप्रेशन का खतरा बढ़ जाता है.


डिप्रेशन को कम करने के लिए साक्षात बातचीत जरूरी


प्रमुख कारणों में जीवन शैली, सामाजिक जिंदगी और पर्यावरण समस्याओं पर भी उन्होंने विचार किया. शोधकर्ताओं ने ब्रिटेन के एक लाख लोगों के डेटा का अध्ययन किया तो उन्हें टीवी देखने और डिप्रेशन के खतरे के बीच संबंध का पता लगा. हालांकि डिप्रेशन अकेलापन और खालीपन के एहसास से भी हो सकता है. इसलिए शोधकर्ताओं ने बताया कि बराबर सामाजिक मेलजोल और बातचीत करने से डिप्रेशन के खतरे को कम किया जा सकता है.


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