नई दिल्ली: देशभर में श्री कृष्ण जन्मष्टमी का त्यौहार धूम धाम के साथ मनाया गया. कोरोना महामारी की वजह से इस साल मंदिरों में कृष्ण के भक्तों की भीड़ नहीं दिखी. मथुरा में जन्माष्टमी के मौके पर मंदिरों को बेहतरीन तरीके से सजाया गया. रात 12 बजे चांदी के कमल पर भगवान श्रीकृष्ण दिखाई दिए. इसके बाद उनकी आरती और जलाभिषेक किया गया. मथुरा में कान्हा का जन्म होते ही पूरा जन्मस्थान परिसर बधाइयों और कान्हा के जयकारों से गूंज उठा. बाल गोपाल के जन्मोत्सव पर आइये जानें उनसे जुड़े 10 अनजाने रोचक तथ्य.


श्रीकृष्ण के 10 अनजाने रोचक तथ्य


1- भगवान श्रीकृष्ण ने कई अभियान और युद्धों का संचालन किया था, लेकिन इनमें तीन सबसे ज्यादा भयंकर थे. पहला- महाभारत, दूसरा- जरासंध और कालयवन के विरुद्ध तीसरा- नरकासुर के विरुद्ध


2- भगवान श्रीकृष्ण के खड्ग का नाम नंदक, गदा का नाम कौमौदकी और शंख का नाम पांचजन्य था, जो गुलाबी रंग का था.


3- भगवान श्रीकृष्ण के परमधामगमन के समय ना तो उनका एक भी केश श्वेत था और ना ही उनके शरीर पर कोई झुर्री थीं.


4- भगवान श्रीकृष्ण की परदादी 'मारिषा' और सौतेली मां रोहिणी (बलराम की मां) 'नाग' जनजाति की थीं.


5- भगवान श्रीकृष्ण से जेल में बदली गई यशोदापुत्री का नाम एकानंशा था, जो आज विंध्यवासिनी देवी के नाम से पूजी जातीं हैं.


6- भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधा का वर्णन महाभारत, हरिवंशपुराण, विष्णुपुराण और भागवतपुराण में नहीं है. उनका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण, गीत गोविंद और प्रचलित जनश्रुतियों में रहा है.


7- भगवान श्रीकृष्ण की त्वचा का रंग मेघश्यामल था और उनके शरीर से एक मादक गंध निकलती थी.


8- भगवान श्रीकृष्ण की मांसपेशियां मृदु थीं, परंतु युद्ध के समय वे विस्तॄत हो जातीं थीं. इसलिए सामान्यतः लड़कियों के समान दिखने वाला उनका लावण्यमय शरीर युद्ध के समय अत्यंत कठोर दिखाई देने लगता था. ठीक ऐसे ही लक्ष्ण कर्ण और द्रौपदी के शरीर में देखने को मिलते थे.


9- भगवान श्रीकृष्ण के जीवन का सबसे भयानक द्वंद्व युद्ध सुभुद्रा की प्रतिज्ञा के कारण अर्जुन के साथ हुआ था, जिसमें दोनों ने अपने अपने सबसे विनाशक शस्त्र क्रमशः सुदर्शन चक्र और पाशुपतास्त्र निकाल लिए थे. लेकिन बाद में देवताओं के हस्तक्षेप से दोनों शांत हुए.


10- भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवतगीता के रूप में आध्यात्मिकता की वैज्ञानिक व्याख्या दी, जो मानवता के लिए आशा का सबसे बड़ा संदेश थी, है और सदैव रहेगी.