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चाणक्य नीति के अनुसार, जहां हैं वहीं से आरंभ करें योजना को मूर्तरूप देना
विदेशी आक्रांताओं को परास्त करने की नीति पर अमल बढ़ाते हुए सर्वप्रथम गुरुकुल के अन्य शिक्षकों और विद्यार्थियों को विश्वास में लिया.

चाणक्य नीति
आचार्य के गुरुकुल में शिक्षक रहते समय ही सेल्युकल या कहें सिकंदर का आक्रमण हुआ था. इससे आहत आचार्य ने उचित समय और परिस्थितियों को इंतजार किए बगैर ही जहां वे थे वहीं से आक्रमणकारियों को धूल चटाने की नीति पर कार्य आरंभ कर दिया था.
विदेशी आक्रांताओं को परास्त करने की नीति पर अमल बढ़ाते हुए सर्वप्रथम गुरुकुल के अन्य शिक्षकों और विद्यार्थियों को विश्वास में लिया. उनका मनोबल बढ़ाया. इसके पश्चात् उन्होंने तक्षशिला राज्य के नगर वासियों तक अपनी बात को पहुंचाया. इस प्रकार आसपास के राज्यों को संदेश भिजवाया और उन्हें आक्रांताओं से भारतभूमि को आजाद कराने का सफल प्रयास किया.
आचार्य की नीति स्पष्ट थी कि परिस्थितियों को समझते हुए जरूरत के अनुसार योजना को बेहतर से बेहतर रूप प्रदान किया जाए. अगर वे उचित समय और परिस्थिति का इंतजार करते तो शायद ही वे विदेशी आक्रांताओं को परास्त कर पाते. इसी नीति से उन्होंने बाद में मगध में धननंद के साम्राज्य को ध्वस्त किया.
तुरत आरंभ कर देने की इस नीति से चाणक्य ने तेजी से सफलताएं प्राप्त कीं. उनकी यह नीति वर्तमान में अत्यंत आवश्यक प्रतीत होती है. आज के दौर में परिस्थितियां इतनी तेजी से बदल रही हैं कि हम उनके भरोसे रहकर अपनी कार्ययोजनाओं को साकार नहीं कर सकते हैं. कारण, परिस्थिति यदि अनुकूल हो भी गई तो इस बात की आशंका बनी ही रहेगी कि कब परिस्थिति प्रतिकूल हो जाए.
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नयन कुमार झाराजनीतिक विश्लेषक
Opinion