वास्तु शास्त्र में दिशाओं का विशेष महत्व होता है. दिशा अनुरुप ही कोई कार्य किया जाए तो उसमें अपार सफलता हासिल की जा सकती है. वहीं कहा जाता है कि हर दिशा एक विशेष देव को निमित्त है. तो चलिए बताते हैं आपको दिशा के देवताओं के बारे में. 


वराह पुराण में इन दिशाओं के देवों की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है. उनके मुताबिक - जब ब्रह्मा सृष्टि के विचार में चिंतनरत थे, तो उसी समय उनके कान से 10 कन्याओं की उत्पत्ति हुई. तब ब्रह्मा ने उनसे कहा कि तुम जिस ओर जाना चाहो जा सकती हो जल्द ही तुम लोगों को तदनुरूप पति भी दूंगा।' तब उन कन्याओं ने 1-1 दिशा की ओर प्रस्थान किया। और ब्रह्मा जी ने 8 दिग्पालों को बुलाकर प्रत्येक को 1-1 कन्या प्रदान कर दी. और सभी दिग्पाल अपनी-अपनी दिशाओं में नियुक्त हो गए. जो इस प्रकार हैं - 


उत्तर दिशा


वास्तु के मुताबिक उत्तर दिशा धन के देवता कुबेर की मानी जाती है. इसीलिए धन संबंधी सभी विशेष कार्य इसी दिशा में करने उचित माने गए हैं. साथ ही तिजोरी व अलमारी इसी दिशा में रखी जाए तो घर में आर्थिक संपन्नता आती है. 


उत्तर पूर्व दिशा


इस दिशा को ईशान कोण के नाम से भी जाना जाता है. जिसके देवता सूर्य माने गए हैं.चूंकि सूर्य.. रोशनी, तेज व शक्ति के द्योतक हैं. इसीलिए इस दिशा से बुद्धि व विवेक संबंधी मामले प्रभावित होते हैं. 


पूर्व दिशा


इंद्र देव को इस दिशा का स्वामी बताया गया है.  यूं तो सूर्य पूर्व दिशा से उदित होता है इसीलिए सूर्य को ही इस दिशा का मालिक माना जाता है लेकिन वास्तु में पूर्व दिशा का प्रतिनिधित्व  देवराज इंद्र ही करते हैं. 


दक्षिण पूर्व दिशा 


इसके देवता अग्नि देव हैं जो पृथ्वी पर मौजूद हर अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं. इससे पेट व स्वास्थ्य संबंधी मामले प्रभावित होते हैं. 


दक्षिण दिशा


इस दिशा के देवता यम माने गए हैं. जिन्हें मृत्यु के देव की संज्ञा दी जाती है. यही कारण है कि दक्षिण दिशा को अशुभ दिशा माना गया है. हालांकि ऐसा कदापि नहीं है बल्कि यम धर्मराज हैं जो इस धरा पर धर्म की स्थापना करते हैं. यह दिशा खुशियों, प्रसन्नता व सफलता की द्योतक मानी जाती है.


दक्षिण-पश्चिम दिशा


निरती इस दिशा के देव माने जाते हैं जिन्हें विशेष तौर पर दैत्यों का स्वामी कहा जाता है. कगते हैं निरती देव की आराधना से आपसी रिश्तों में मजबूती आती है.


पश्चिम दिशा


वरुण देव को पश्चिम दिशा का स्वामी माना गया है जो जल से जुड़े सभी तत्वों को प्रभावित करते हैं. इस धरा पर वर्षा होने या ना होने का कारण वरुण देव को ही माना गया है. इस दिशा की पूजा से सौभाग्य और ऐश्वर्य में बढ़ोतरी होती है.


उत्तर पश्चिम दिशा


इस दिशा के स्वामी पवन देव हैं जो हवा को संचालित करते हैं. संपूर्ण जगत में वायु देव को संचालित करने का जिम्मा पवन देव के हाथों में ही है.