सत्ता समाज और शास्त्र के मर्मज्ञ तक्षशिला के आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य सत्यवचन और मौन में विश्वास रखते थे. राजनीतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए वे कभी असत्य कथन का सहारा नहीं लेते थे. वे झूठे कथनों को दोहरी मार करने वाली दोधारी तलवार मानते थे. अर्थात् वे झूठ को चहुंओर विनाश का कारण बनने वाला मानते थे.
झूठ से बचने के लिए आचार्य चाणक्य मौन का सहारा लेते थे. कोई भी उनसे एक शब्द भी उनकी इच्छा केे विरुद्ध नहीं कहलवा सकता था. यही कारण, चाणक्य के मित्र और करीबी उन्हें वज्र कुटिल कहते थे. आचार्य ने सिकंदर के सैन्य क्षेत्रों को तक्षशिला के छात्रों और युवाओं की सेना से ध्वस्त कराया. जंगल में भटकते राहजनी करने वालों और डाकुओं को मातृभूमि की सेवा में लगाया. योजनाबद्ध ढंग से सारे संघर्ष को सफलता दिलाई. कभी मिथ्या वचनों और संदेशों से किसी को भी भ्रमित नहीं किया. कारण, इससे उनके सहयोगी उलझन में पड़ सकते थे. आचार्य की साख की प्रभावित हो सकती थी. यही कारण था कि आचार्य सदा सत्य ही बोलते थे. उनके अनुयायी उनकी बात को पत्थर की लकीर मानते थे.
तक्षशिला से मगध लौटकर सम्राट धननंद के खिलाफ रणनीतिक संघर्ष में उन्होंने कभी कोई बात ऐसी जाहिर नहीं कि जिससे वे या उनके करीबी मुश्किल में पड़ें. सत्ता के चतुर अधिकारियों के बीच रहकर चाणक्य ने रणनीति पर अमल किया. मित्रों के लाख उकसाने के बावजूद वे सदैव मौन रहे. इससे वे स्वयं की और मित्रों की रक्षा कर सके. सत्ता के समर्थक उनके एक झूठ और चूक का इंतजार करते रह गए. आचार्य ने धननंद की सत्ता पलट डाली.