Connection Between Adipurush and Hanuman Ji: आदिपुरुष आदि और अंत से रहित है. आदिपुरुष दो शब्दों के मेल से बना है ‘आदि’ और ‘पुरुष’, जिसका अर्थ है ‘पहला पुरुष’ या मूल पुरुष. हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आदिपुरुष को ही संपूर्ण सृष्टि का रचनाधार माना गया है.


आदिपुरुष नाम को लेकर इनदिनों चर्चा होने का कारण यह भी है कि, रामायण महाकाव्य पर बनी फिल्म ‘आदिपुरुष’ 16 जून को रिलीज होने वाली है. इस फिल्म को लेकर चारों ओर चर्चा है. फिल्म में भगवान राम को आदिपुरुष का नाम दिया गया है. लेकिन भगवान राम को यह नाम आखिर दिया किसने है.



आदिपुरुष का अर्थ होता है पहला पुरुष. यानी सृष्टि, जगत, वंश या साम्राज्य की शुरुआत करने वाला. हिंदू धर्म ग्रथों में और वेदों में भगवान ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का निर्माण बताया गया है. लेकिन भागवत के अनुसार, ब्रह्मा जी भगवान विष्णु की नाभि से प्रकट हुए थे और इसके बाद उन्होंने जगत की रचना की. इसलिए वैष्णव संप्रदाय के लोग भगवान विष्णु को सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ मानते हैं.


सृष्टि में जब भगवान विष्णु का प्राकट्य हुआ तब चारों ओर केवल जल ही जल था. भगवान विष्णु को स्वयं अपने आदिपुरुष होने का आभास नहीं था. तब भगवान विष्णु ने आदिपुरुष को जानने के लिए तपस्या की और इस तरह से जल यानी नीर में निवास करने के कारण वे नारायण कहलाए. तपस्या के दौरान ही भगवान विष्णु की नाभि से कमल पर ब्रह्मा जी प्रकट हुए और ब्रह्मा जी ने प्रकट होने के बाद भगवान विष्णु को आदिपुरुष बताया. क्योंकि उनसे पहले इस सृष्टि में किसी और पुरुष का प्रकाट्य नहीं हुआ था. ऐसे में सृष्टि के पहले पुरुष यानी आदिपुरुष के रूप में भगवान विष्णु का आगमन हुआ. लेकिन सवाल यह है कि जब भगवान विष्णु आदिपुरुष हैं तो फिर भगवान राम को क्यों वर्तमान में आदिपुरुष कहा गया है.


 इस कारण आदिपुरुष कहलाए राम


बता दें कि श्रीराम भगवान विष्णु के 10 अवतारों में एक हैं. रामजी से पहले भगवान विष्णु के जो भी अवतार हुए सभी ने सृष्टि को स्थापित और व्यवस्थित करने का काम किया. लेकिन भगवान राम ने मनुष्यों के लिए आदर्श व्यवस्था और मानवीय मूल्यों की आधारशिला रखी. यही कारण है कि वर्तमान समय में भगवान राम को आदिपुरुष की संज्ञा दी गई, जिसका अर्थ है आदि और अंत से रहित.


आदिपुरुष और हनुमान जी का संबंध


आदिपुरुष और हनुमान जी के बीच क्या संबंध है. इसका सरल जवाब है भगवान राम और हनुमान के बीच का अनोखा संबंध. ऐसा संबंध जो एक प्रिय भक्त और भगवान के बीच होता है. हनुमान जी भगवान राम के परमभक्त थे. कहा जाता है कि उनका जन्म ही राम जी की सेवा के लिए हुआ था. हनुमान जी का जन्म भगवान शिव के 11वें रुद्रावतार के रूप में हुआ था. भगवान राम उन्हें अपना छोटा भाई मानते थे. इसलिए रामायण में हनुमान जी की प्रशंसा करते हुए तुलसीदास जी ने लिखा है-‘ रघुपति कीन्ही बहुत बडाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई’ यानी तुम भरत के समान ही मेरे प्रिय भाई हो. इसलिए ऐसा कहा जाता है कि आज भी जहां, रामायण का पाठ होता है या राम कथा का सत्संग होता है. वहां वानर रूप या अदृष्य रूप में हनुमान जी उपस्थित होते हैं.


राम यानी आदिपुरुष और हनुमान जी के संबंध के बारे में इतना ही कहा जा सकता है कि, एक भगवान विष्णु के अवतार तो दूजे भोले भंडारी के स्वरूप. दोनों एक दूजे बिन अधूरे और एक दूजे संग संपूर्ण.


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