नई दिल्लीः अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक मास की कृष्णपक्ष वाली अष्टमी के दिन आता है और अहोई अष्टमी बहुत महत्वपूर्ण व्रत है जो कि महिलाओं द्वारा संतान की भलाई के लिए व्रत किया जाता है. अहोई अष्टमी का व्रत भी बहुत कठोर होता है. कभी-कभी किसी को संतान का सुख नहीं मिलता तो अहोई अष्टमी का पर्व संतान के लिए विशेष है. संतान फिक्र नहीं करती तो भी इस व्रत को करने की मान्यता है. आम मान्यता है कि अहोई अष्टमी संतान के लिए होता है लेकिन अब संतान को भी मां की भलाई के लिए इस दिन कुछ खास करना चाहिए.
कब है अहोई अष्टमी का व्रत
इस बार ये व्रत 21 अक्टूबर को आ रहा है और करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद अहोई अष्टमी का व्रत आता है.
किनकी होती है पूजा
इस व्रत में माता पार्वती की पूजा की जाती है और शाम को व्रत पूरा करके तारे देखकर जल देने के बाद व्रत खोला जा सकता है.
चांदी की अहोई
इस व्रत में चांदी की अहोई बनवाकर उसकी पूजा की जाती है और इसमें चांदी के मनके डाले जाते हैं जो हर साल के व्रत के हिसाब से बढ़ते जाते हैं. पूजा के बाद इस माला को माताएं गले में पहनती हैं.
Diwali 2019: जानें- कब मनाए जाएंगे धनतेरस, छोटी- दीवाली, बड़ी दीवाली, गोवर्धन पूजा और भाईदूज
कैसे करें अहोई अष्टमी का व्रत
अहोई अष्टमी की कथा का साहित्य ले आएं और अहोई अष्टमी का कैलेंडर भी ले आएं. इसके अलावा पंचामृत बनाएं. बच्चे आज मां के भोजन का इंतजाम करें और मां की पसंद की चीजें बनाएं. पूजा पूरी होने के बाद मां को भोजन खिलाएं. पहले मान्यता थी कि पुत्र की भलाई के लिए ये व्रत रखा जाता है लेकिन अब समय बदल चुका है. अहोई अष्टमी की पूजा में पुत्र और पुत्री दोनों का तिलक करें और सिर्फ पुत्र के भविष्य की मंगल कामना करना ठीक नहीं है.
अहोई अष्टमी पर व्रत का मुहूर्त
अहोई अष्टमी की पूजा शाम 05:42 से 06:59 बजे तक होगी और तारा देखकर पूजा करने का समय शाम 06:10 बजे से होगा. कई लोग चंद्रोदय देखकर पूजा करने को कहते हैं लेकिन ये ध्यान रखें कि अहोई अष्टमी पर चंद्रोदय देरी से होता है. उस दिन करीब रात 12 बजे के करीब चंद्रोदय होता है. तो आप तारे देखकर जल देने के बाद बच्चों का तिलक कर सकती हैं.