Aja Ekadashi Vrat Katha: अजा एकादशी की संपूर्ण व्रत कथा
Aja Ekadashi Vrat Katha in Hindi: अजा एकादशी को करने से जितना फायदा मिलता है उतना ही लाभ इसकी कथा को सुनकर भी मिलता है. आइए जानते है इसके पीछे की पौराणिक कथा.
Aja Ekadashi Katha: एकादशियों में सबसे उत्तम एकादशी भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष के अवसर पर मनाई जाती है, कृष्ण जन्माष्टमी(Janamashtmi) के 4 दिन बाद इस एकादशी का अपना महत्व होता है. व्रतराज ग्रंथ के मुताबिक, भादो मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी(Aja Ekadashi)कहते हैं. सभी एकादशियों की तरह अजा एकादशी भी भगवान विष्णु को समर्पित है. ऐसे में इस व्रत की कथा सुनने मात्र से ही आपको पुण्य की प्राप्ति होती है.
अजा एकादशी की कथा सुनने से फायदा
सनातन धर्म(Sanatan Dharma) में अजा एकादशी(Aja Ekadashi) का अपना महत्व है. इस दिन व्रत रखने से कई प्रकार के दुखों से राहत मिलती है. माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से इस व्रत को रखता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है. आइए जानते है अजा एकादशी से जुड़ी वास्तविक कथा, जिससे पढ़ने और सुनने मात्र से आपके सभी पाप खत्म हो सकते हैं.
अजा एकादशी की व्रत कथा, भगवान राम के पूर्वज से जुड़ी है
दरासल अजा एकादशी व्रत की कथा भगवान श्रीराम (Ram) के पूर्वंज इक्ष्वाकु वंश के राजा हरिश्चन्द्र(Raja Harishchandra) की है. राजा हरिश्चंद्र सत्यवादी राजा थे. जो अपने मुख से निकले वचनों और अपनी कही वाणी को पूरा करने के लिए अपनी अर्धांगिनी तारामती(Taramati) और पुत्र राहुल रोहिताश्व तक को बेच देते हैं और खुद भी एक चाण्डाल(Chanadala) की सेवा करने लग जाते हैं.
गौतम ऋषि(Gautam Rishi) के कहने पर राजा हरिश्चन्द्र ने अजा एकादशी का व्रत किया, तब जाकर उन्हें कष्टों से छुटकारा मिला. आइए जानते हैं इस कथा को विस्तार से, जिसे भगवान श्रीकृष्ण(Shri Krishna) ने युधिष्ठिर(yudhishthir) समेत पांडवों को सुनाई थी.
अजा एकादशी की व्रत कथा
युधिष्ठिर ने कहा, "हे वासुदेव! मैनें पुत्रदा एकादशी के बारे में सविस्तार वर्णन सुना. अब कृपा करके मुझे अजा एकादशी के बारे में विस्तार से बताएं. इस एकादशी(Ekadashi) को क्या कहते हैं और इस व्रत को करने के नियम हैं? इस व्रत को करने से किस तरह का फल मिलता है?
श्रीकृष्ण ने कहा कि, "हे कुंती पुत्र! भाद्रपद की एकादशी को अजा एकादशी कहते हैं. इस व्रत को करने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिलती है. इस लोक और परलोक में कल्याण करने वाली इस एकादशी व्रत के समान दुनिया में कोई दूसरा व्रत नहीं है. अब ध्यान से इस कथा को सुनिए.
“पौराणिक काल में भगवान राम के वंशज में अयोध्या नगरी के राजा हरिश्चन्द्र नाम का एक राजा था. अपनी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के कारण राजा के दूर-दूर तक चर्चे थे.
एक बार सभी देवताओं ने राजा की परीक्षा लेने की योजना बनाई, राजा ने सपना देखा की ऋषि विश्वामित्र को उन्होंने अपना सारा वैभव दे दिया है. अगली सुबह राजा जब उठा तो सच में विश्वामित्र राजा के द्वार पर खड़े थे. विश्वामित्र ने राजा हरिश्चन्द्र से कहा, कल रात जो तुमने सपने में मुझे अपना सारा राज-पाठ दान कर दिया है.
राजा ने सत्यनिष्ठा की भावना के साथ अपनी तमाम संपत्ति विश्वामित्र को दान कर दी. दान दक्षिणा देने के लिए राजा हरिश्चन्द्र ने अपनी पत्नी, बेटा और खुद को बेच दिया. राजा हरिश्चन्द्र को डोम जात के एक व्यक्ति ने खरीद लिया, जो श्मशान घाट में दाह-संस्कार का काम करवाता था. राजा हरिश्चन्द्र एक चाण्डाल के सेवक बन गए. राजा ने चाण्डाल के लिए कफन लेने का कार्य भी किया, किंतु इस आपत्तिजनक काम करने के बाद भी उन्होंने कभी सच का मार्ग नहीं छोड़ा.
इस काम को करते-करते कई वर्ष बीत जाने के बाद राजा हरिश्चन्द्र को काम पर काफी अफसोस होने लगा, और वह उसे निकालने का रास्ता तलाशने लगे. राजा हरिश्चन्द्र हर वक्त इस काम से मुक्ति के रास्ते तलाशने की कोशिश करते. एक बार राजा की मुलाकात गौतम ऋषि से हुई, राजा ने गौतम ऋषि को प्रणाम कर उन्हें अपनी दुःख-भरी बात बताई.
राजा की दुःख-भरी बातों को सुनकर गौतम ऋषि को भी दुःख हुआ और उन्होंने राजा को बताया,“हे राजन! भादो माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी आती है जिसे अजा एकादशी भी कहा जाता है. तुम उस व्रत को विधि-विधान के साथ करो और रात के वक्त जागरण भी, इससे तुम्हारे सभी तरह के पाप का नाश हो जाएगा. गौतम ऋषि इतनी बात कहकर अंतर्धान हो गए.
अजा एकादशी के आने पर राजा ने महर्षि गौतम के कहे के मुताबिक ही नियमपूर्वक व्रत और रात को जागरण किया. इस व्रत को करने से राजा को सभी पापों से मुक्ति मिल गई. उस वक्त स्वर्ग में जश्न मनाया जाने लगा फूलों की बारिश होने लगी. राजा हरिश्चन्द्र ने अपने सामने ब्रह्मा, विष्णु, महेश और देवेन्द्र देवताओं को अपने सामने पाया. राजा ने अपने मृत पुत्र और पत्नी को वस्त्रों और आभूषणों से लदा देखा.
व्रत की वजह से राजा को दोबारा उसका राज्य मिल गया, असल में एक ऋषि के द्वारा राजा की परीक्षा लेने के लिए ये सब खेल रचा गया था, लेकिन अजा एकादशी के व्रत के कारण ऋषि द्वारा रची गई माया खत्म हो गई और आखिरी वक्त में हरिश्चंद्र अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक में चले गए.
इस कथा को सुनने के बाद श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा,“हे राजन! ये सब अजा एकादशी व्रत का असर था. जो भी मनुष्य इस व्रत कथा का विधि-विधान के साथ पालन करता है और रात के वक्त जागरण तो उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है और अंत में वे स्वर्ग लोक को प्राप्त करता है. कहा जाता है कि इस एकादशी को करने से अश्वमेध यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है.
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