Ajmer Urs 2025: रजब का चांद दिखने के बाद शुरू हुआ 813वां उर्स, जानिए अजमेर शरीफ दरगाह में होने वाली धार्मिक रस्में
Ajmer Urs 2025: रजब का चांद दिखने के बाद अजमेर में 813वें उर्स का आगाज 31 दिसंबर 2024 से हो गया है. ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती (Khwaja Moinuddin Chishti) की पुण्यतिथि को ही उर्स के नाम से जाना जाता है.
Ajmer Urs 2025: अजमेर शरीफ में आयोजित होने वाला उर्स एक प्रसिद्ध विश्वव्यापी धार्मिक तीर्थयात्रा है, जिसमें दुनियाभर से आए लोग हजरत ख्वाजा गरीब नवाज के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं. राजस्थान के अजमेर स्थित ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती (Khwaja Moinuddin Chishti) की 813वें उर्स की शुरुआत बुधवार को रजब (इस्लामी माह) का चांद नजर आने के बाद हो चुकी है और इसी के साथ उर्स की धार्मिक रस्में भी शुरू हो चुकी हैं.
बता दें कि अजमेर शरीफ की दरगाह (Dargah Sharif Ajmer) को 13वीं सदी के सूफी संत, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का अंतिम विश्राम स्थल माना जाता है. यह भारत के सबसे पवित्र धार्मिक स्थलों में एक है. अजमेर शरीफ दरगाह में सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की समाधि है. इन्हें ख्वाजा गरीब नवाज के नाम से भी जाना जाता है. मोईनुद्दीन चिश्ती एक करिश्माई और दयालु आध्यात्मिक उपदेशक थे, जिन्हें आध्यात्मिक चमत्कार करने की ख्याति प्राप्त थी. अजमेर शरीफ का दरगाह सदियों से श्रद्धा का स्थल है, जोकि हिन्दु-मुस्लिम सभी को आकर्षित करता है.
उर्स शरीफ उत्सव क्या है?
उर्स शरीफ का उत्सव हर साल राजस्थान के अजमेर स्थित ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर मनाया जाता है. मोइनुद्दीन चिश्ती की पुण्यतिथि को उर्स के नाम से जाना जाता है. यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक घटना है जो बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती है. यह उत्सव छह दिनों तक चलता है और इसमें विभिन्न अनुष्ठान और आध्यात्मिक समारोह शामिल होते हैं.
उर्स कब मनाया जाता है (Urs 2025 Date)
अजमेर शरीफ में उर्स हर साल इस्लामिक कैलेंडर रजब में मनाया जाता है. चांद दिखने के बाद ही उर्स की शुरुआत होती है. यदि किसी कारण चांद दिखाई नहीं देता है तो फिर अगले दिन से छह दिनों के लिए उर्स की रस्में शुरू होती हैं. छठे दिन को उर्स-ए-छठी शरीफ कहा जाता है. इस साल 813वें उर्स महोत्सव की शरुआत 31 दिसंबर 2024 से हो चुकी है. उर्स के दौरान दरगार परिसर में रातभर जिक्र और कव्वाली होती है. देश-दुनिया से लाखों श्रद्धालु इस दौरान अजमेर पहुंचते हैं.
उर्स की रस्में और तारीख
27 दिसंबर 2024 को अजमेर दरगाह में झंडे की रस्में हुई. 29 दिसंबर को ख्वाजा गरीब नवाज की मजार से सालाना संदल उतारा गया. 31 दिसंबर 2024 को रजब का चांद दिखने पर ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स का आगाज हुआ. रजब का चांद दिखने पर अलसुबह दरगाह में स्थित जन्नती दरवाजा भी आम जायरीनों के लिए खोल दिया गया. अजमेर उर्स का समापन 7 जनवरी 2025 को होगा.
4 जनवरी को जुम्मे की नमाज अदा होगी. 7 जनवरी को छोटे कुल की रस्म होगी और 10 जनवरी को बड़े कुल की रस्म दरगाह में खादिम समुदाय की ओर से निभाई जाएगी.
उर्स में कौन सी रस्में होती हैं (Urs Rituals)
उर्स में झंडा चढ़ाने की रस्म काफी पुरानी है. इस परंपरा की शुरुआत साल 1928 में पेशावर के हजरत सैयद अब्दुल सत्तार बादशाह जान रहमतुल्ला अलैह ने की थी. इसके बाद 1944-1991 तक भीलवाड़ा के लाल मोहम्मद गौरी के परिवार ने इस परंपरा को निभाई. इसके बाद मोईनुद्दीन गौरी ने 2006 तक झंडा चढ़ाया और अब फखरुद्दीन गौरी पुरखों की इस परंपरा को निभा रहे हैं. चादर चढ़ाने के दौरान सूफीयाना कलाम और 25 तोपों की सलामी भी होती है. झंडा के साथ ही मजार में चादर भी चढ़ाए जाने की रस्म है. विभिन्न देशों से ख्वाजा के लिए चादर आती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) भी पिछले 10 सालों से अजमेर के लिए चादर भेज रहे हैं. प्रधानमंत्री द्वारा अजमेर में चादर भेजने का सिलसिल 1947 के समय से अबतक चल रहा है, जिसमें देश के अमन चैन और भाईचारे की दुआ की जाती है.
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