व्रत के दिन किया क्रोध बिगाड़ सकता है उसका फल, सुख-समृद्धि के लिए कैसे करें व्रत
Vrat : घर- परिवार के कार्यों के साथ- साथ नौकरी, व्यापार, कला-कौशल आदि का सफलतापूर्वक संपादन किया जा सकता है, इसलिए व्रत नियम पूर्वक करना चाहिए.
Vrat : मनुष्य अदृश्य शक्तियों का भंडार है, किंतु उसकी शक्तियां आंतरिक विकारों के कारण कमजोर हो जाती हैं. जिसके कारण उसको अपने जीवन में किसी न किसी व्याधि या समस्या का सामना करना पड़ता है. व्रत कमजोरी का नहीं बल्कि बल का सूचक है. ईश्वर स्वयं व्रत की मूर्ति है.
ईश्वर को प्रसन्न करके उनके आशीर्वाद से अपने कांटों भरे मार्ग को सुगम करना अनिवार्य हो जाता है.अंततः समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए, सत्कर्म, सद्गति एवं पाप मुक्ति के लिए व्रत आदि का सहारा लेना पड़ता है. व्रतों को नियमपूर्वक करने से व्यक्ति को जीवन में कई लौकिक और पारलौकिक लाभ प्राप्त होते हैं, साथ ही वह जिस समस्या से जूझ रहा होता है वह या तो समाप्त हो जाती है या व्रत करने से इतना आत्मबल मिल जाता है कि वह हंसते हुए उस समस्या का सामना कर लेता है. व्रत के प्रभाव से मनुष्य की आत्मा, बुद्धि व विचार शुद्ध होते हैं, संकल्प शक्ति बढ़ती है. शरीर के अंतः स्थल में परमात्मा के प्रति भक्ति, श्रद्धा और तल्लीनता का संचार होता है . घर- परिवार के कार्यों के साथ- साथ नौकरी, व्यापार, कला-कौशल आदि का सफलतापूर्वक संपादन किया जा सकता है, इसलिए व्रत नियम पूर्वक करना चाहिए.
व्रत करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है -
संकल्प लेना जरूरी
व्रत प्रारम्भ करने से पूर्व संकल्प लेना बहुत आवश्यक है. संकल्प का अर्थ है किसी प्रयोजन को दृढ़ निश्चय करना. संकल्प के बिना व्रत अधूरा है. अतः किसी कार्य विशेष के लिए, कितनी संख्या में और कब तक व्रत करना है, इसका संकल्प व्रत प्रारंभ करने के पूर्व कर लेना चाहिए. व्रत शुभ मुहूर्त में आरंभ करें ताकि यह बिना बाधा के पूर्ण हो सके.
व्रत के दिन क्रोध न करें
व्रत के दिन क्रोध, निंदा आदि न करें. व्रत के दिन छोटी छोटी बातों को लेकर झुंझलाना या क्रोधित होने की गलती कतई न करें. यदि आपका व्रत है तो किसी की भी बुराई न करें. क्षमा, सत्य, दया, दान, शौच, इंद्रिय- निग्रह, देव पूजा, अग्नि हवन, संतोष, अस्तेय आदि का पालन करना किसी भी व्रत के लिए अनिवार्य है, ऐसा शास्त्रकारों ने कहा है . इस दिन मन में जिस देवी देवता का व्रत धारण किया है उनका ध्यान व जाप मन में निरंतर चलता रहना चाहिए तभी इसका पूरा फल मिल सकता है. इसके अतिरिक्त व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य रूप से करें. बड़े बुजुर्ग, माता- पिता व गुरुजनों के चरण छूकर उनका आशीर्वाद लें. जो भी व्रत करें , शास्त्र व पुराण में बताई गई विधि के अनुसार ही करें. उसमें अपनी सुख- सुविधा के लिए परिवर्तन न करें.
क्या करें सूतक में
व्रत के बीच में यदि परिवार में किसी जन्म होने के कारण सूतक लग जाता है या फिर मृत्यु के कारण सूतक लगता है तो दोनों ही स्थिति में व्रत पुनः प्रारंभ करना चाहिए. इसके अतिरिक्त यदि स्त्री व्रती हो और वह व्रत के दिन मासिक धर्म (पीरियड) हो जाए तो केवल उस दिन के व्रत की संख्या न ले. ऐसे में व्रत तो करे, किंतु पूजन नहीं. मानसिक ध्यान करने में कोई दिक्कत नहीं है.
पितरों का स्मरण करना चाहिए
यदि किसी व्रत में किसी भी देवता की पूजा न हो तो अपने इष्ट देव का स्मरण करें. व्रत के दिन देवताओं के साथ अपने पूर्वजों व पितृगणों का स्मरण अवश्य करना चाहिए. इससे देवाशीर्वाद के साथ- साथ पूर्वजों का आशीष भी मिल जाता है और जिस कार्य के निमित्त व्रत किया जाता है वह शीघ्रता से पूर्ण होता है. व्रत पूर्ण होने पर उसका शास्त्र के अनुसार हवनादि के द्वारा उद्यापन जरूर करना चाहिए, क्योंकि उद्यापन न करने से व्रत का फल नहीं मिलता.
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