हिंदू धर्म के अनुसार सभी एकादशियों का काफी महत्व माना गया है लेकिन इन सब में आमलकी एकादशी को सर्वोत्तम स्थान पर रखा गया. आमलकी एकादशी पर भगवान श्री हरि विष्णु की अराधना की जाती है. कहा जाता है इस दिन विष्णु भगवान की पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और अंत में दुर्लभ मोक्ष की प्राप्ति होती है. साल भर में 24 या 25 एकादशी व्रत आते हैं. अत्यंत श्रेष्ठ मानी जाने वाली आमलकी एकादशी होली के त्योहार के पहले आती है. इस साल 25 मार्च 2021 को आमलकी एकादशी मनाई जा रही हैं.


आमलकी एकादशी पर आंवले का प्रयोग बेहद कल्याणकारी


शास्त्रों के अनुसार आमलकी एकादशकी को दिन आंवले का उपयोग करने से भगवान श्री हरि विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं. कहा जाता है कि आंवले के पेड़ को भगवान विष्णु ने ही जन्म दिया था. इसलिए इस वृक्ष के हर एक भाग में ईश्वर का स्थान माना गया है. ये भी कहा जाता है कि आवंले के वृक्ष में श्री हरि और माता लक्ष्मी का वास होता होता है. इस कारण आमलकी एकादशी के दिन आवंले के पेड़ के नीचे बैठकर ही भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है.


समस्त यज्ञों के बराबर फलदायी है आमलकी एकादशी


 ये भी मान्यता है कि आमलकी एकादशी के दिन आवंले का उबटन लगाना चाहिए और आवंले के जल से ही स्नान करना चाहिए. इतना ही नहीं इस दिन आवंले को पूजने, दान करने और खाने की भी सलाह दी जाती है. मान्यता है कि समस्त यज्ञों के बराबर फलदायी आमलकी एकादशी पर विधि –विधान और सच्चे हृद्य से व्रत करने से भक्त को मोक्ष प्राप्ति होती है.


उदया तिथि में रखें व्रत


ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक आमलकी एकादशी व्रत को सदैव उदया तिथी में रखना चाहे. 24 मार्च की सुबह को 10 बजकर 23 मिनट तक दशमी उसके बाद एकादशी तिथि शुरू हो जाएगी. ये 25 मार्च की सुबह 9 बजकर 47 मिनट तक रहेगी. इसके बाद द्वादशी तिथि शुरू हो जाएगी. इस कारण 25 मार्च को उदया तिथि में एकादशी व्रत रखा जाएगा.


आमलकी एकादशी 2021 पूजन का मूहर्त


आमलकी एकादशी व्रत पारण का समय- 26 मार्च को सुबह 6 बजकर 18 मिनट से 8 बजकर 21 मिनट तक


अभिजीत मुहूर्त- दोपहर के 12 बजकर 8 मिनट से 12 बजकर 56 मिनट तक


अमृत काल- रात के 9 बजकर 13 मिनट से रात 10 बजकर 48 मिनट तक


ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 4 बजकर 53 मिनट से सुबह 5 बजकर 41 मिनट तक.


द्वादशी तिथि पर व्रत का पारण करें


एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि पर यानी व्रत के अगले दिन किया जाता है. लेकिन इस व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अत्यंत आवश्यक है. यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो रही हो तो भी एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही करना चाहिए. ध्यान रखें कि एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी न करें. हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि को कहा जाता है.व्रत का पारण करने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करना चाहिए.


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