Ambedkar Death Anniversary 2023: संविधान के जनक डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर की मृत्यु 06 दिसंबर 1956 को हुई थी. इस दिन को बाबा साहेब की पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाता है. बाबा साहेब की पुण्यतिथि पर ही महापरिनिर्वाण दिवस (Mahaparinirvan Diwas) भी मनाया जाता है.


भीमराव अंबेडकर ने कमजोर वर्ग, निचले तबके के लोग, मजदूर और महिलाओं को सशक्त बनाने और इन्हें समानता का अधिकार दिलाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. उनका मकसद था समाज से जात-पात, छुआछूत और वर्ण व्यवस्था को पूरी तरह से खत्म करना. लेकिन उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया, जब उन्होंने हिंदू धर्म को छोड़ बौद्ध धर्म अपना लिया.


हिंदू धर्म का त्याग कर भीमराव अंबेडकर ने क्यों अपनाया बौद्ध धर्म


13 अक्टूबर 1935 में भीमराव अंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़ने का निर्णय किया. उन्होंने कहा कि, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व ये तीनों ही चीजें विकास के लिए बहुत जरूरी है और मुझे वह धर्म पसंद है, जो ये तीनों चीजें सिखाता हो. बाबा साहेब का मानना था कि, धर्म मनुष्य के लिए है ना कि मनुष्य धर्म के लिए. बाबा साहेब के मतानुसार, हिंदू धर्म में इन तीनों चीजों का अभाव था, इसलिए भीमराव अंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धर्म अपना लिया.


धर्म परिवर्तन के समय बाबा साहेब के शब्द थे- “मैं हिंदू के रूप में पैदा हुआ हूं, लेकिन हिंदू के रूप में मरूंगा नहीं, कम से कम यह तो मेरे वश में है.” उनका मानना था कि, बौद्ध धर्म में प्रज्ञा (अंधविश्वास और परालौकिक शक्तियों के विरुद्ध समझदारी), करुणा (प्रेम, दुख और पीड़ितों के लिए संवेदना) और समता (धर्म, लिंग, जात आदि से ऊपर उठकर समानता का सिद्धांत) है.


अंबेडकर की पुण्यतिथि पर क्यों मनाया जाता है महापरिनिर्वाण दिवस


बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर बौद्ध धर्म अपना चुके थे. दलित वर्ग और गरीबों की स्थिति में सुधार लाने में उनका अहम योगदान रहा. ऐसे में बुद्ध अनुयायियों का मानना था कि, अपने कामों से अंबेडकर भी निर्वाण कर चुके थे. इसलिए हर साल उनकी पुण्यतिथि के दिन को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाते हैं और उनकी प्रतिमा पर फूल-मालाएं चढ़ाकर व मोमबत्तियां जलाकर श्रद्धांजलि दी जाती है. इस दौरान बौद्ध अनुयायी या बौद्ध भिक्षु पवित्र गीत गाकर बाबा साहेब के नारे भी लगाते हैं.


बता दें कि, परिनिर्वाण का अर्थ है ‘मृत्यु पश्चात निर्वाण’ यानी मौत के बाद का निर्वाण होता है. यह बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धांतों व लक्ष्यों में एक है. जो व्यक्ति निर्वाण करता है वह सांसारिक मोह माया, इच्छा, जीवन की पीड़ा यहां तक कि जीवन चक्र से मुक्त हो जाता है. निर्वाण हासिल करने के लिए सदाचारी और धर्मसम्मत जीवन जीना पड़ता है.


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