आंवला को क्यों देते हैं अमृत का दर्जा ? जानिए आंवला का शास्त्रीय स्वरूप
'आंवला' जिसे अंग्रेजी में 'गूसबेरी' के नाम से जाना जाता है. इसे आयुर्वेद में बहुत ही उपयोगी बताया गया है. धार्मिक ग्रंथों के जानकार अंशुल पांडे से जानते और समझते हैं आंवला का शास्त्रीय स्वरूप.
आंवला (Gooseberry) का शास्त्रीय स्वरूप
सर्दी का मौसम आ चुका है. बाजार सब्जी और फलों से पटे पड़े हैं. चारों तरफ ताजगी का बोलबाला है. इन सबो में से आज हम आपको आंवला के गुणों के बारे में बताएंगे. आंवला को यूं ही नहीं अमर-फल कहा गया है. इसके चमत्कारी औषधीय, पौष्टिक और स्वाद से भरपूर तत्वों के फल स्वरूप ही यह अमर-फल के पद तक पहुंचा है. यह एक अत्यंत प्राचीन फल है जिसका उल्लेख हमारे शास्त्रों में पाया जाता है.
आप इस फल का सेवन किसी भी रूप में कर सकते हैं. सर्दियों में आंवला कच्चा ही खा सकते हैं, चटनी बना सकते है. आनेवाले दिनों के लिए आप इसका मुरब्बा बना सकते हैं, शर्बत बना सकते हैं, अचार या पाउडर बना सकते है. आंवले की प्रकृति ऐसी है कि इसकी पौष्टिकता में पकाने पर, सुखाने पर या किसी अन्य प्रक्रिया करने पर कोई ज्यादा असर नहीं होता. इसीलिए आप इसका प्रयोग वर्षभर कर सकते हैं. बड़े महानगरों में तो कच्चे आंवले वर्ष भर उपलब्ध रहते हैं. आयुर्वेदिक चिकित्सकों के अनुसार आंवला 100 से अधिक रोगों को ठीक कर सकता हैं वो भी वैज्ञानिक प्रमाण अनुसार.
आंवला का शास्त्रीय स्वरुप-
आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति और उसका माहात्म्य का आगे वर्णन है. स्कंद पुराण (वैष्णवखण्ड, कार्तिकमास-माहात्म्य अध्याय क्रमांक 12) के अनुसार, कार्तिक के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को आंवले का पूजन करना चाहिए. आंवले का वृक्ष सब पापों का तिरोहित करनेवाला है. इस चतुर्दशी को वैकुण्ठ चतुर्दशी भी कहते है. उस दिन आंवले की छाया में बैठकर राधा सहित श्रीहरि का पूजन करें. उसके बाद आंवले के पेड़ की एक सौ आठ प्रदक्षिणा करें और श्रीकृष्ण की प्रार्थना करें. पूर्वकाल में जब सारा संसार जलमें डूब गया था, समस्त चराचर प्राणी नष्ट हो गये थे, उस समय ब्रह्माजी परब्रह्म का जप करने लगे थे. ब्रह्म का जप करते-करते उनका श्वास निकला. साथ ही भगवत दर्शन के प्रेमवश उनके नेत्रों से जल निकल आया. वह जल की बूंद पृथ्वी पर गिर पड़ी उसी से आंवले का वृक्ष उत्पन्न हुआ, जिसमें बहुत सी शाखाएं और उप-शाखाएं निकली थीं.
वह फलों के भार से लदा हुआ था. सब वृक्षों में सबसे पहले आंवला ही प्रकट हुआ, इसलिए उसे 'आदिरोह' कहा गया. ब्रह्मा जी ने पहले आंवले को उत्पन्न किया. उसके बाद समस्त प्रजा की सृष्टि की. जब देवता आदि की भी सृष्टि हो गयी, तब वे उस स्थान पर आये जहां भगवान विष्णु को प्रिय लगने वाला आंवले का वृक्ष था. उसे देखकर देवताओं को बड़ा आश्चर्य हुआ. उसी समय आकाशवाणी हुई - “यह आंवले का वृक्ष सब वृक्षों से श्रेष्ठ है; क्योंकि यह भगवान विष्णु को प्रिय है”. इसके दर्शन से दो गुना और फल खाने से तीन गुना पुण्य होता प्राप्त होता है. इसलिए प्रयत्न करके आंवले का सेवन करना चाहिये. क्योंकि वह भगवान विष्णु को प्रिय एवं सब पापों का नाश करने वाला है.
जो मनुष्य कार्तिक मास में आंवले के वन में भगवान श्री हरि की पूजा करता है, उसके पाप नष्ट हो जाते हैं. आंवले की छाया में वह जो भी पुण्य करता है, वह कई गुना हो जाता है. प्राचीन काल की बात है, कावेरी के उत्तर तट पर देवशर्मा नाम का एक ब्राह्मण था, जो वेद-वेदांगों के पारंगत विद्वान् थे. उसका एक पुत्र हुआ जो बड़ा दुराचारी निकला. पिता ने उसे हित की बात बताते हुए बोला कि “बेटा! इस समय कार्तिक का महीना है जो भगवान विष्णु को बहुत ही प्रिय है. तुम इसमें स्नान, दान, व्रत और नियमों का पालन करो; तुलसी के फूल सहित भगवान् विष्णु की पूजा करो”. पिता की यह बात सुनकर वह क्रोध से बोला कि वह कार्तिक में कोई पुण्य-संग्रह नहीं करेगा. पुत्र का यह वचन सुनकर देवशर्मा ने क्रोधपूर्वक शाप देते हुए कहा कि ”वह वृक्ष के खोखले में चूहा बन जाये”.
इस शाप के भय से डरे पुत्र ने पिता को पूछा की चूहे की घृणित योनि से उसकी मुक्ति कैसे होगी. पुत्र के द्वारा प्रसन्न किये जाने पर ब्राह्मण ने शाप निवृत्ति का तरीका बताया- ”जब तुम भगवान को प्रिय लगने वाले कार्तिक व्रत का पवित्र माहात्म्य सुनोगे, उस समय उस कथा के श्रवण मात्र से तुम्हारी मुक्ति हो जायेगी”. पिता के ऐसा कहने पर वह उसी क्षण चूहा हो गया और कई वर्षों तक सघन वन में निवास करता रहा. एक दिन कार्तिक मास में विश्वामित्र जी अपने शिष्यों के साथ उधर से निकले तथा नदी में स्नान करके भगवान की पूजा करने के पश्चात् आंवले की छाया में बैठे. वहां बैठकर वे अपने शिष्यों को कार्तिक मास का माहात्म्य सुनाने लगे. उसी समय कोई दुराचारी व्याध शिकार खेलता हुआ वहां आया. वह प्राणियों की हत्या करने वाला था. ऋषियों को देखकर उन्हें भी मार डालने की इच्छा करने लगा. परंतु उन महात्माओं के दर्शन से उसके भीतर सुबुद्धि जाग उठी.
उसने ब्राह्मणों को नमस्कार करके कहा- ”आप लोग यहां क्या करते हैं?” उसके ऐसा पूछने पर विश्वामित्र बोले-“कार्तिक मास सब महीनों में श्रेष्ठ बताया जाता है. उसमें जो कर्म किया जाता है, वह बरगद के बीज की भांति बढ़ता है. जो कार्तिक मास में स्नान, दान और पूजन करके ब्राह्मण-भोजन कराता है, उसका वह पुण्य अक्षय फल देने वाला होता है”. विश्वामित्र जी के कहे हुए इस धर्म को सुनकर वह शाप भ्रष्ट ब्राह्मण कुमार चूहे का शरीर छोड़कर तत्काल दिव्य देह से युक्त हो गया और विश्वामित्र को प्रणाम करके अपना वृत्तान्त निवेदन कर ऋषि की आज्ञा से विमान पर बैठकर स्वर्ग को चला गया. इससे विश्वामित्र और व्याध दोनों को बड़ा विस्मय हुआ. व्याध भी कार्तिक व्रत का पालन करके भगवान् विष्णु के धाम में गया. इसलिए कार्तिक में सब प्रकार से प्रयत्न करके आंवले की छाया में बैठकर भगवान श्रीकृष्ण के सम्मुख कथा-श्रवण करें.
जो मनुष्य आंवले की छाया में बैठकर दीप माला समर्पित करता है, उसको अनन्त पुण्य प्राप्त होता है. विशेषतः तुलसी-वृक्ष के नीचे राधा और श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए. तुलसी के अभाव में यह शुभ पूजा आंवले के नीचे करनी चाहिए. लक्ष्मी प्राप्ति की इच्छा रखने वाला मनुष्य सदा आंवलों से स्नान करे. विशेषतः एकादशी तिथि को आँवले से स्नान करने पर भगवान विष्णु सन्तुष्ट होते हैं. नवमी, अमावास्या, सप्तमी, संक्रान्ति-दिन, रविवार, चन्द्र ग्रहण तथा सूर्य ग्रहण के दिन आंवले से स्नान नहीं करना चाहिए. जो मनुष्य आंवले की छाया में बैठकर पिण्डदान करता है, उसके पितर भगवान विष्णु के प्रसाद से मोक्ष को प्राप्त होते हैं. तीर्थ या घर में जहां-जहां मनुष्य आंवले से स्नान करता है, वहां- वहां भगवान् विष्णु स्थित होते हैं. जिसके शरीर की हड्डियां आंवले के स्नान से धोयी जाती हैं, वह फिर गर्भ में वास नहीं करता. जिस घर में सदा आंवला रखा रहता है, वहां भूत, प्रेत और राक्षस नहीं जाते. जो कार्तिक में आंवले की छाया में बैठकर भोजन करता है, उसके एक वर्ष तक के उत्पन्न हुए पाप का नाश हो जाता है.
पूजा में आंवले का उपयोग: –
- अग्नि पुराण 72.12-14 के अनुसार, भगवान को सुगन्ध और आंवला आदि राजोचित उपचार से स्नान कराने का विधान है.
- अग्नि पुराण78.39-40 के अनुसार, अघोर-मन्त्र के अन्त में 'वषट्' जोड़कर उसके उच्चारण पूर्वक उत्तर दिशा में आंवला अर्पित करने का विधान है.
स्वास्थ के लक्षण में शास्त्र आंवला के बारे में क्या कहते हैं?
- अग्नि पुराण 279.25 अनुसार आंवला वात रोग (Arthritis) को ठीक कर सकता है.
- अग्नि पुराण 279.34–67 के अनुसार आंवला विसर्पी (फोड़े-फुंसी) को ठीक कर सकता है.
- अग्नि पुराण 283.35-40 के अनुसार आंवला विसर्प रोग (खुजली) को ठीक कर सकता है.
- अग्नि पुराण 285.1-5 के अनुसार आंवला ज्वर रोग (बुखार) को ठीक कर सकता है.
- अग्नि पुराण 285.1-5 के अनुसार आंवला, नीम आदि का काढ़ा शरीर की बाहरी शुद्धि के लिए भी गुणकारी है.
- सुश्रुत संहिता (उत्तर तंत्र अध्याय 12) के अनुसार, आंवला आंखों के रोग के लिए लाभकारी है.
- अग्नि पुराण 222.8-10 के अनुसार आंवला विष पिए हुए व्यक्ति को भी ठीक कर सकता है.
- आयुर्वेद में आंवला को मुख्य स्थान दिया है, लगभग सारे रोगों का निवारण आंवला कर सकता है.
- पुरातात्विक साक्ष्य (Archaeological evidence) के अनुसार ऋग्वैदिक काल में भी मिलते हैं.
इसलिए गिलौई के बाद आंवला को संजीवनी कहना गलत नहीं होगा
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