Anant Chaturdashi 2023 Date: 28 सितंबर 2023 को अनंत चतुर्दशी का व्रत किया जाएगा. यह व्रत भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को किया जाता है। इसमें उदयव्यापिनी तिथि ली जाती है.


इसी दिन बप्पा की प्रतिमा का विसर्जन कर 10 दिन के गणेश उत्सव का समापन किया जाता है. जानें ज्योतिषाचार्य और वास्तु विशेषज्ञ अरविंद राय से अनंत चतुर्दशी पर श्रीहरि की पूजा विधि, अनंत सूत्र का महत्व, कथा और लाभ



अनंत चतुर्दशी व्रत महत्व (Anant Chaturdashi Significance)


उदये त्रिमुहूर्तापि ग्राह्यानन्तव्रते तिथि: ।


तथा भाद्रपदस्यान्ते चतुर्दश्यां द्विजोत्तम:।।


पौर्णमस्या: समायोगे व्रतं चानन्तकं चरेत् ।


अनंत चतुर्दशी व्रत करके विद्यार्थी जिस भी विषय का अध्ध्यन प्रारम्भ करेंगे, उन्हें निश्चय ही उस विषय का उत्तम ज्ञान प्राप्त होगा. धन की कामना करने वाले को प्रचुर धन की प्राप्ति होगी और ईश्वर की कामना करने वाले को अनन्त काल तक के लिए ईश्वर का सानिध्य प्राप्त होगा.भुक्ति और मुक्ति दोनों प्राप्त करने का उत्तम साधन है अनंत चतुर्दशी व्रत. विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए चौदह वर्षों का अखण्ड व्रत करें.


अनंत चतुर्दशी पूजा विधि (Anant Chaturdashi 2023 Puja Vidhi)



  • ज्योतिषाचार्य अरविंद राय ने बताया कि अनंत चतुर्दशी पर स्नानादि करके "ममखिलपापक्षयपूर्वक शुभफलवर्द्धये श्रीमदनन्तप्रीतिकामनया अनन्तव्रत अहं करिष्ये ।। इस मंत्र जाप करते हुए व्रत का संकल्प लें.

  • किसी नदी, सरोवर अथवा गृह पूजन स्थान को स्वच्छ करके सर्वतोभद्र मण्डल का निर्माण करें.

  • इसके बाद धातु अथवा मिट्टी का कलश स्थापित कर उसपर अनंत स्वरूप भगवान श्री विष्णु की शेषनागमयी प्रतिमा स्थापित करें.

  • मूर्ति के समक्ष चौदह ग्रन्थि से युक्त रेशम या कच्चे सूत की डोर रखें.

  • चौदह गाँठों में चौदह देवताओं का स्थान है इसलिए इस व्रत में चौदह ग्रंथि देवताओं का पूजन है.

  • "ॐ अनन्ताय नमः" का स्मरण करते हुए भगवान विष्णु और अनन्तसूत्र का षोडशोपचार पूजन करें.

  • कथा सुनें. तिल, घी, खांड, मेवा एवं खीर इत्यादि से हवन करके यथासंभव गोदान, शय्यादान और अन्नदान का भी विधान है.

  • इसके बाद केले के वृक्ष का भी पूजन करें. सामर्थ्य अनुसार चौदह ब्राह्मणों को भोजन कराकर अपना व्रत समाप्त करें, इस दिन नमक का सेवन न करें.

  • पूजन के उपरान्त अनन्तसूत्र को पुरूष दाहिने और स्त्री बाएं भुजा पर बांध लें.


अनंत सूत्र बांधने का मंत्र (Anant Chaturdashi Mantra)


अनन्त संसार महासमुद्रे मग्नान् समभ्युद्धर वासुदेव।


अनन्तरूपे विनियोजितात्मा ह्यनन्तरूपाय नमो नमस्ते।।


अनंत चतुर्दशी की कथा (Anant Chaturdashi Katha)


प्राचीन काल में एक वशिष्ठ गोत्रीय मुनि थे सुमन्तु. उनकी पुत्री का नाम शीला था. पुत्री का गुण उसके नाम के अनुरूप ही था. सुमन्तु ने उसका विवाह कौण्डिन्य मुनि के साथ कर दिया. कौण्डिन्य मुनि सुमन्तु मुनि की कन्या के साथ विवाह करके अपने घर लौट रहे थे और समय मार्ग में नदी के तट पर स्त्रियों को अनन्त व्रत करते हुये देखकर शीला ने भी अनन्त का व्रत किया और अपनी बाहु में अनन्त सूत्र को बांध लिया , जिसके प्रभाव से थोड़े ही दिनों में उसका घर धन धान्य से परिपूर्ण हो गया.


एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के बाहु में बँधे हुए सूत्र पर पड़ी , जिसे देखकर मुनि ने स्त्री से कहा - क्या तुमने मुझे वश में करने के लिए यह सूत्र बाँधा है? तब शीला ने कहा नहीं, यह अनन्त भगवान का सूत्र है लेकिन ऐश्वर्य के नशे में चूर कौण्डिन्य मुनि ने उसे तोड़कर अग्नि में फेंक दिया. जिसके परिणाम स्वरूप कुछ ही समय में उनकी स्थिति दीन हीन हो गई. अपनी भूल का ज्ञान होने के बाद अपने दोष का उपाय करने के लिए अनन्त भगवान से क्षमा मांगने हेतू घर छोड़कर वन में चले गये और वहां जाकर भगवान श्री अनन्त जी को प्रसन्न करने के लिए उपासना करने लगे.


बहुत दिनों तक उपासना करने के पश्चात् भी भगवान का आशीर्वाद न मिलने से निराश होकर वृक्ष की शाखा से लटककर मृत्यु का वरण करने ही जा रहे थे, तभी एक वृद्ध ब्राह्मण वहाँ उपस्थित होकर उन्हें रोक दिया और कहा कि चलो गुफा में तुम्हें अनन्त भगवान का दर्शन करता हूँ. वृद्ध के भेष में भगवान श्री अनन्त ने गुफा में लेजाकर अपने चतुर्भुज स्वरूप में दर्शन दिया और कहा- तुमने जो अनन्त सूत्र का तिरस्कार किया है, उसकी भूल सुधारने के लिए तुम चौदह वर्षों तक अनन्त व्रत का पालन करो, इससे तुम्हारी नष्ट हुयी सम्पत्ति पुनः प्राप्त हो जाएगी. कौण्डिन्य मुनि ने इसे सहस्र स्वीकार किया. जैसे जैसे वर्ष बीतते गए भगवान श्री अनन्त की कृपा से कौण्डिन्य मुनि की संपत्ति और ऐश्वर्य उन्हें पुनः प्राप्त हो गया.


अनंत चतुर्दशी के व्रत से मिलता है धन, पद, प्रतिष्ठा (Anant Chaturdashi Vrat Benefit)


इस व्रत के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि जब युधिष्ठिर अपने भाइयों और द्रोपदी के साथ वनवास में अनेक कष्टों को सहन कर रहे थे, उस समय श्रीकृष्ण ने उन्हें कष्टों से मुक्ति के लिए और अपना खोया राज्य एवं ऐश्वर्य पुनः प्राप्त करने के लिए उन्हें अनन्त व्रत करने का उपदेश दिया था. अतः इसमें कोई संशय नहीं है कि जो भी मनुष्य श्रद्धा से भगवान श्री अनन्त का व्रत करता है, उसे निश्चय ही उसके इच्छानुसार अनन्त फल की प्राप्ति होती है.


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