Apara Ekadashi 2024: अपरा एकादशी 2 या 3 जून कब ? नोट करें सही डेट, मुहूर्त
Apara Ekadashi 2024: ज्येष्ठ माह में अपरा एकादशी का व्रत किया जाता है. इसे अचला एकादशी भी कहते हैं. क्या आप जानते हैं अपरा एकादशी क्यों मनाई जाती है. इस साल जून 2024 में अपरा एकादशी कब है. जानें.
Apara Ekadashi 2024: ज्येष्ठ का महीना 24 मई 2024 से शुरू हो रहा है. ज्येष्ठ माह में दोनों कृष्ण पक्ष की अपरा एकादशी और शुक्ल पक्ष में आने वाली निर्जला एकादशी (Nirjala ekadashi) बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है.
ज्येष्ठ माह में गर्मी चरम पर होती है और एकादशी में 24 घंटे व्रत किया जाता है, जो सबसे कठिन होता है. ऐसे इस महीने एकादशी (Jyestha ekadashi 2024) व्रत करने वालों को सालभर की एकादशी का पुण्य प्राप्त होता है. आइए जानते हैं इस साल अपरा एकादशी 2024 की डेट, पूजा मुहूर्त और क्यों किया जाता है ये व्रत.
अपरा एकादशी 2024 तिथि (Apara Ekadashi 2024 Date)
ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अपरा एकादशी तिथि 2 जून 2024 को सुबह 05.04 पर शुरू होगी और अगले दिन 03 जून 2024 को प्रात: 02.41 मिनट पर समाप्त होगी. इस साल अपरा एकादशी 2 और 3 जून दोनों दिन है.
अपरा एकादशी 2 या 3 जून 2024 में कब ? (When is Apara Ekadashi 2 or 3 june 2024)
अपरा एकादशी 2 जून 2024 को है. जब पंचांग में एकादशी के लिए लगातार दो दिन सूचीबद्ध किए गए हो तब पहले दिन को प्राथमिकता दी जाती है. ऐसे में गृहस्थ जीवन वालों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए.
दूसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं, संन्यासियों और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए. 3 जून 2024 को वैष्णव संप्रदाय के लोग एकादशी व्रत करेंगे.
अपरा एकादशी 2024 मुहूर्त (Apara Ekadashi 2024 Muhurat)
- विष्णु पूजा मुहूर्त - सुबह 07.07 - दोपहर 12.19
अपरा एकादशी 2024 व्रत पारण समय (Apara Ekadashi 2024 Vrat Parana time)
- अपरा एकादशी का व्रत पारण 3 जून को सुबह 08.05 से सुबह 08.10 मिनट के बीच किया जाएगा.
- वहीं जो वैष्णव एकादशी का व्रत पारण 4 जून को सुबह 05.23 से सुबह 08.10 के बीच किया जाएगा
अपार धन देता है अपरा एकादशी व्रत (Apara Ekadashi Significance)
अपरा एकादशी व्रत के प्रताप से भौतिक सुख, संसाधनों में वृद्धि होती है. व्यक्ति को अपार धन प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है.पांडवों ने अपरा एकादशी की महिमा भगवान श्रीकृष्ण के मुख से सुनी थी. श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन में इस व्रत को करके महाभारत युद्ध में विजय हासिल की थी.
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